वैदिक भाषा में पूज धातु सेवा के अर्थ में प्रयोग होती है।
जैसे माता- पिता बच्चों का लालन पालन नियमित और योग्य तौर तरीके से शास्त्रोक्त विधि से कुशलतापूर्वक करेंगे तो ही बच्चा स्वस्थ,सुघड़ और सुसंस्कृत होगा अन्यथा परिणाम विपरीत होंगे।
यदि व्यक्ति बिमारों, अपङ्गो, पाल्य पशु - पक्षियों, वनस्पतियों का और गुरुजनों की सेवा नियमित और योग्य तौर तरीके से कुशलतापूर्वक करेंगे तो ही माता - पिता, बिमारों, अपङ्गो, पाल्य पशु - पक्षियों, वनस्पतियों का और गुरुजनों के शुभाशीर्वाद स्वतः प्राप्त होंगे।
यही वास्तविक पूजा है। लेकिन इसे शास्त्रोक्त विधि से नियम पूर्वक ही की जाना चाहिए।
जिस कार्य की विधि- निषेध जिस शास्त्र में वर्णित हो, उसी विधि को शास्त्रोक्त विधि कहते हैं।
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