बुधवार, 14 जून 2023

यूरोपीयों द्वारा किए गए वैज्ञानिक अनुसंधान और फ्रायड का मनोविश्लेषण का आधार भारतीय ग्रन्थ।

१ सभी विधाओं के मुख्य विज्ञानियों के नाम और उनके शोध का वर्ष देखिये। जिससे सिद्ध हो जाएगा कि, यूरोपीय सभी नये आविष्कार सन १५०० ईस्वी के बाद ही हुए। जब यूरोपियों का भारत से सीधा सम्पर्क हुआ। महाभारत के बाद, विशेष कर विक्रमादित्य के बाद और वास्को डि गामा के पहले वे अरबियों, तिब्बती और चीनियों के माध्यम से भारतीय ज्ञान से परिचित थे।

२ लोगों को केवल अंग्रेजी राज याद है वे पुर्तगालियों के बारे में थोड़ा बहुत जानते हैं, उससे कम  फ्रांसीसियों के बारे मे जानते हैं। लेकिन जर्मनों के बारे में कुछ नहीं जानते क्योंकि जर्मनी का प्रत्यक्ष शासन भारत पर नही रहा। लोग जर्मन बौद्धिकता से अपरिचित हैं। जर्मनों नें वैदिक ग्रन्थों और संस्कृत के ग्रन्थों का गहन अध्ययन कर दानवी सभ्यता की परम्परा अनुसार वैदिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक में बदल दिया।

३ जन साधारण के दिमाग में भरा है कि, मेक्समूलर द्वारा वेदों के अनुवाद के बाद ही यूरोपीय वैदिक विज्ञान से परिचित हुए। जबकि, मेक्समूलर नें सनातन वैदिक भारतियों को भ्रमित करने का काम अधिक किया और अप्रत्यक्षतः बौद्धों की महत्ता बखानी। जिसका प्रभाव आजतक भारतियों पर है।
 सत्रहवीं सदी तक सम्पूर्ण यूरोपीय विद्वान वैदिक विज्ञान से परिचित हो चुके थे। 

हमारे शास्त्रों में स्वभाव को तीन भागों में विभाजित माना है। ठीक वैसे ही फ्रायड द्वारा स्वभाव और व्यक्तित्व को तीन भागों में बांटना कोई संयोग नही लगता।- 

स्व से स्व भाव अर्थात स्वभाव हुआ। स्वभाव तीन प्रकार के होते हैं।

तीन प्रकार का स्व भाव---
1 सात्विक स्व भाव या वैकारिक स्व भाव अर्थात स्वाहा अर्थात आधिदैविक शक्ति । 
स्वाहा --  श्रद्धा, भक्ति, ईश्वर प्रणिधान, स्व का त्याग, समर्पण, त्याग, वैराग्य ये स्वाहा के ही परिणाम हैं।
आधिदैविक शक्ति -- आधिदैविक शक्ति  मतलब वैराज देवताओं अर्थात व्यापक आकाश, वायु, सूर्य, विद्युत, अग्नि, जल, भूमि आदि प्राकृतिक देवताओं से जुड़ी सामर्थ्य है।

मनोविज्ञान के मनोविश्लेषण में  वैकारिक स्व भाव अर्थात  (आधिदैविक शक्ति) स्वाहा मतलब स्व का हनन (सुपर इगो) है। इसमें व्यक्ति नैतिक हो जाता है। इस समय इसकी प्रकृति (सम आधि) आधिदेविक साक्षात्कार वाली होती है।

2  राजस स्व भाव या तेजस स्व भाव अर्थात वषट अर्थात अध्यात्मिक शक्ति।
वषट अर्थात मस्तिष्क सम्बन्धी। (ध्यान दें - न्यास में शिखाये वोषट बोलते हैं।) वषट से बुद्धिवादी, तार्किक, गणितीय, वैज्ञानिक सोच होती है। वषट से ही वोषट, वौषट आदि शब्द बनें हैं।
अध्यात्मिक शक्ति अर्थात अध्यात्म मतलब देहेन्द्रिय से अन्तर्वर्ती या इन्द्रियों से अन्तः प्रवेश करते करते आत्म तक पहूँचने से प्राप्त सामर्थ्य है । 

मनोविज्ञान के मनोविश्लेषण में  तेजस स्व भाव अर्थात (अध्यात्मिक शक्ति) वषट (इगो) मतलब मस्तिष्क सम्बन्धी इसमे व्यक्ति अध्यात्मिक (माध्यमिक) (सब कांशियस) प्रवृत्ति का तार्किक और अत्यन्त सक्रिय होता है। सबके सामने सात्विक एकान्त में राजसी स्वभाव होता है।

3 तामस स्व भाव या भूतादिक स्व भाव अर्थात स्वधा  अर्थात अधिभौतिक शक्ति।
स्व धा मतलब स्व का धारण, स्व वादी धारणा, आत्म केन्द्रित, स्वयम् की सुख सुविधा प्रधान मानसिकता, कामना।  
आधिभौतिक शक्ति अर्थात भौतिक विज्ञान में अध्ययन की जाने वाली उर्जा।

मनोविज्ञान के मनोविश्लेषण में  भूतादिक स्व भाव अर्थात (अधिभौतिक शक्ति)। स्वधा मतलब स्व का धारण (इड / कामना) है। 
इसमें व्यक्ति अत्यल्प नैतिक रह जाता है। इस समय इसकी प्रकृति अधिभौतिक तामसिक (अन कांशियस) (निष्क्रियता, निद्रा, आलस्य) प्रधान वाली होती है। नैतिकता इसके लिए गौण और स्वार्थ, लौभ, दैहिक सुख प्रधान होते हैं। काम से कामना (इड) और कामना से वासना (लिबिडो) ध्यान रखियेगा। फ्रायड के दर्शन के इसी भाग की कटु आलोचना होती है

1 (क) सात्विक स्व भाव या वैकारिक स्व भाव अर्थात स्वाहा अर्थात आधिदैविक शक्ति से प्रत्यक्ष या प्रकट स्वभाव हुआ।

मनो विश्लेषण के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण ---  प्रत्यक्ष या प्रकट स्वभाव पूर्ण सचेत अवस्था है। पूर्ण जागृत अवस्था है। ऐसी स्थिति तभी बनती है जब चित्त सम अवस्था सम आधि में हो। इस लिए इसे कांशियस (चेतन) कहा गया।

2 (क) राजस स्व भाव या तेजस स्व भाव अर्थात वषट अर्थात अध्यात्मिक शक्ति से अर्धप्रत्यक्ष या अर्धप्रकट स्वभाव हुआ। स्वप्नावस्था, मोहित अवस्था और सम्मोहन अवस्था इसके साक्षात उदाहरण हैं।

मनो विश्लेषण के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण --- अर्धप्रत्यक्ष/ अर्ध प्रकट स्वभाव अर्धचेत अवस्था है। मनोराज्यम्/ कल्पना में खोया/ मोहित/ सम्मोहित अवस्था है। यह तन्द्रा अवस्था है। ऐसी स्थिति तभी बनती है जब चित्त अर्ध जाग्रत और अर्ध सुप्त अवस्था में हो। इस लिए इसे सबकांशियस (अर्ध चेतन) कहा गया। अधिकांश परिकल्पनाएँ (अधम्शन्स) इसी अवस्था में होती है।

3 (क) तामस स्व भाव या भूतादिक स्व भाव अर्थात स्वधा अर्थात अधिभौतिक शक्ति से परोक्ष या अप्रत्यक्ष या अप्रकट स्वभाव हुआ।

मनो विश्लेषण के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण ---अप्रत्यक्ष या अप्रकट स्वभाव तम समाधि या योग निद्रा अवस्था है या पूर्ण सुषुप्त अवस्था है। ऐसी स्थिति में भी चित्त सम अवस्था सम आधि में ही होता है लेकिन चेतन नही होता/ सचेत नही होता। तम समाधि इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इस लिए इसे अन् कांशियस (अचेतन) कहा गया। सम्पूर्ण संस्कार इसी अवस्था में व्यवस्थित (सेट) होते हैं।

मनो विश्लेषण के सम्बन्ध में संक्षिप्त स्पष्टीकरण --- मनोविज्ञान में - 
१ स्वाहा को सुपर इगो कहा गया है -  प्रत्यक्ष/ प्रकट स्वभाव को कांशियस कहा गया है।  
२ वषट को इगो कहा गया है -  अर्धप्रत्यक्ष/ अर्धप्रकट स्वभाव को सब कांशियस कहा गया है। और 
३ स्वधा  को इड (कामना) कहा गया है - परोक्ष/ अप्रकट स्वभाव को अन् कांशियस कहा गया है।


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