मंगलवार, 6 जून 2023

मृत्यु बाण, अग्निबाण, राजबाण, चोरबाण,रोगबाण तथा पञ्चक की परिभाषा, प्रभाव और निवारण आदि

मृत्यु बाण सूर्य गतांश ०१°, १०°, १९°, २८° हो तो मृत्यु बाण होता है।
शनिवार को पड़ने वाला पञ्चक मृत्यु पञ्चक कहलाता है। 

अग्निबाण सूर्य गतांश ०२°, ११°, २०°, २९° हो तो अग्नि बाण होता है।
मंगलवार को पड़ने वाला पञ्चक अग्नि पञ्चक कहलाता है।
धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।

राजबाण/ नृपबाण सूर्य गतांश ०४°, १३°, २२° हो तो नृपबाण/ राज बाण होता है।
सोमवार को पड़ने वाला पञ्चक राज पञ्चक कहलाता है।

चोरबाण सूर्य गतांश ०६°, १५°, २४° हो तो चोर बाण होता है।
शुक्रवार को पड़ने वाला पञ्चक चोर पञ्चक कहलाता है।

रोगबाण सूर्य गतांश ०८°, १७°, २६° हो तो रोग बाण होता है।
रविवार को पड़ने वाला पञ्चक रोग पञ्चक कहलाता है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।

 *मुहूर्त - चिंतामणि* के अनुसार ---
'अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।
संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पञ्चके।।'-
 *अर्थात* :- पञ्चक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।

*पञ्चक के नक्षत्रों का प्रभाव* ---
1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
2. शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना रहती है।
3. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।
4. उतरा भाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है।
5. रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना रहती है।
 
१लकड़ी एकत्र करना या खरीदना, 
२ मकान पर छत डलवाना, 
३ शव जलाना, 
४ पलंग या चारपाई बनवाना और 
५ दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना।

 *पञ्चक के प्रकार  ---* 
रविवार को पड़ने वाला पञ्चक रोग पञ्चक कहलाता है।
सोमवार को पड़ने वाला पञ्चक राज पञ्चक कहलाता है।
मंगलवार को पड़ने वाला पञ्चक अग्नि पञ्चक कहलाता है।
शुक्रवार को पड़ने वाला पञ्चक चोर पञ्चक कहलाता है।
शनिवार को पड़ने वाला पञ्चक मृत्यु पञ्चक कहलाता है। 
६ इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को पड़ने वाले पञ्चक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है।
ध्यान रखें कि, वार सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक रहते हैं। और सूर्योदय से ही बदलते हैं। रात बारह बजे डे एवम् डेट (Day & Date) ही बदलते हैं।
तिथि और नक्षत्र लाहिरी अयनांश या चित्रा पक्षीय अयनांश वाली दृगतुल्य पञ्चाङ्ग से ही देखें।

पञ्चक में जन्म मृत्यु का प्रभाव ---
यदि धनिष्ठा में जन्म-मरण हो, तो उस गांव-नगर में पांच और जन्म-मरण होता है। शतभिषा में हो तो उसी कुल में, पूर्वा में हो तो उसी मुहल्ले-टोले में, उत्तरा में हो तो उसी घर में और रेवती में हो तो दूसरे गांव-नगर में पांच बच्चों का जन्म एवं पांच लोगों की मृत्यु संभव है। 

 *समाधान* ---
यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पञ्चक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं। यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें। 

यदि पञ्चक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी अवश्य जलाएं। इसी तरह यदि पञ्चक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पञ्चक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें। अंत में यह कि यदि पञ्चक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। ऐसा करने से पञ्चक दोष दूर हो जाता है।

पञ्चक में मृत्यु होनें पर गरुड़ पुराण के अनुसार  समाधान ---

१ शव के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पञ्चक दोष समाप्त हो जाता है।
 
 २ अगर पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसमें कुछ सावधानियां बरतना चाहिए। सबसे पहले तो दाह-संस्कार संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति देकर नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है। नियमपूर्वक दी गई आहुति पुण्यफल प्रदान करती हैं। साथ ही अगर संभव हो दाह संस्कार तीर्थस्थल में किया जाए तो उत्तम गति मिलती है।

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