गुरुवार, 8 जून 2023

बौद्ध मत

महायान सम्प्रदाय ---
प्रथम संगीति ईसापूर्व ४४३ से ४४२ ईसापूर्व में मगधसम्राट अजातशत्रु ने महाकाश्यप की अध्यक्षता में आयोजित की थी। 
प्रथम बौद्ध संगीति में-
१ सुत्त पिटक का संकलन आनंद ने किया।
 २ विनय पिटक का संकलन उपाली ने किया।
महायान सम्प्रदाय के माध्यमिक/ शुन्यवादी और योगाचार/ विज्ञानवादी दोनों महायान सम्प्रदाय के अन्तर्गत आते हैं। ये चीन जापान और कोरिया में पाये जाते हैं।

१ *माध्यमिक मत* के अनुसार विज्ञान भी सत्य नहीं है। सब कुछ शून्य है। शून्य का अर्थ निरस्वभाव, नि:स्वरूप अथवा अनिर्वचनीय है। *शून्यवाद* का यह शुन्यवाद के शून्य वेदांत के ब्रह्म के बहुत निकट आ जाता है। शुन्यवाद के  प्रवर्तक नागार्जुन २०० ईस्वी।  माध्यमिक सुत्त पिटक और विनय पिटक को ही आधार मानते हैं।

२ *योगाचार* मत के अनुसार बाह्य पदार्थों की सत्ता नहीं। हमे जो कुछ दिखाई देता है वह विज्ञान मात्र है। योगाचार मत विज्ञानवाद कहलाता है। प्रवर्तक मैत्रेय (३०० ईस्वी) हैं  और विकास - असङ्ग और वसुबन्धु  ने किया। योगाचारी/ विज्ञानवादी भी सुत्त पिटक और विनय पिटक को ही आधार मानते हैं।


हीनयान सम्प्रदाय - या थेरवाद --
अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में आयोजित तीसरी बौद्ध संगीति में २४९ ईसापूर्व में मोगलीपुत्त तिस्सा ने अभिधम्म पिटक की रचना की थी। इनके अनुयाई थेरवादी कहलाते है। ये ब्रह्मदेश/ म्यांमार और श्रीलंका में पाये जाते हैं। नव बौद्ध भी थेरवादी हैं।

३ *वैभाषिक* मत बाह्य वस्तुओं की सत्ता तथा स्वलक्षणों के रूप में उनका प्रत्यक्ष मानता है। अत: उसे बाह्य *प्रत्यक्षवाद* अथवा " *सर्वास्तित्ववाद* " कहते हैं। वैभाषिक अभिधम्म पिटक को ही आधार मानते हैं।

४ *सैत्रांतिक* मत के अनुसार पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं, अनुमान होता है। अत: उसे *बाह्यानुमेयवाद* कहते हैं।सैत्रांतिक मत का विकास कुमारलात ने किया।सैत्रांतिक मत का प्रचार श्रीलंका में अधिक सेहै।
सैत्रांतिक अभिधम्म पिटक को ही आधार मानते हैं।

५ वज्रयान बौद्ध पन्थ के आचार्य बोधिसत्व मञ्जुश्री के उग्र अवतार भैरव माने जाते हैं। यह परम तान्त्रिक मत है। वज्रयानी बौद्ध तिब्बत में पाये जाते हैं।


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