जब परीक्षित अभिमन्यु पत्नी उत्तरा गर्भ में थे, उसके बहुत पहले शुकदेव जी का ब्रह्मलोक प्रयाण हो चुका था। यह बात महाभारत युद्ध समाप्त होकर युधिष्ठिर के राज्याभिषेक होने के पश्चात धर्मनीति जिज्ञासु युधिष्ठिर आदि पाण्डवों को शर शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने कही। प्रमाण देखें--- महाभारत शान्ति पर्व/ मौक्षधर्म पर्व/ अध्याय ३३२ एवम् ३३३ गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत पञ्चम खण्ड (शान्ति पर्व) पृष्ठ ५३२५ से ५३२९ तक देखें। विशेषकर श्लोक २६-१/२ पृष्ठ ५३२८ देखें।
शुकदेव जी के ब्रह्मलोक प्रयाण के बहुत बाद में परीक्षित जन्में तो परीक्षित की मृत्यु के समय शुकदेव जी भागवत कथा सुनाने कैसे आ गये, यह बात शुकदेव जी के पिता वेदव्यास जी कैसे लिख सकते हैं? मतलब आश्चर्य तो यह भी है कि, परीक्षित की मृत्यु तक भी पाण्डु और धृतराष्ट्र के जैविक पिता वेदव्यास जी तीसरी पीढ़ी के समाप्ति कैसे तक जीवित थे! और न केवल जीवित रहे अपितु पुराणों की रचना कर रहे थे! यह विचारणीय है।
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