शनिवार, 23 दिसंबर 2023

स्मार्त - वैष्णव जन्माष्टमी और एकादशी व्रत।

वेद, आरण्यकों-उपनिषदों सहित ब्राह्मण ग्रन्थों, और शुल्बसुत्र, श्रोत सुत्र, गृह्यसुत्र (पास्कल गृह्यसुत्र की विधि से ही शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण सभी कर्मकाण्ड, मुण्मन, उपनयन, विवाह आदि समस्त संस्कार करते हैं।), मनु आदि के धर्मसुत्र (जिसके आधार पर मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि स्मृतियाँ बनी है); उनका स्पष्ट निर्देश है कि, १ किसी भी व्रत, पर्व, उत्सव और त्योहार मनाते समय उस व्रत- पर्व, उत्सव-त्योहार का पर्वकाल जिस दिन उस तिथि में रहे उसी दिन व्रत- पर्व, उत्सव-त्योहार मनाये जाएँ। इसलिए हम हमेशा मध्यरात्रि में अष्टमी होती है उसी दिन जन्माष्टमी मनाते हैं, उदिया तिथि या रोहिणी नक्षत्र की परवाह तब करते हैं जब ऐसा दो दिन हो। या दोनों दिन न हो।
२ ऐसे ही प्रत्येक व्रत की तिथि में अगली तिथि में पारण होना आवश्यक है। अगली तिथि में ही, क्योंकि व्रत तिथि का किया जाता है न कि, अगले दिन में।
इस बार आज द्वादशी तिथि क्षय है। कल सूर्योदय पश्चात द्वादशी तिथि रहेगी ही नहीं अतः द्वादशी में पारण नहीं हो सकता।
इसलिए दिनांक २२ दिसम्बर २०२३ शुक्रवार को स्मार्त एकादशी व्रत था।
महाभारतकार (वेदव्यासजी) नें महाभारत में प्रथम बार भागवत धर्म चलाया। जिसको केवल कथावाचक पौराणिक लोग ही मानते थे। फिर दक्षिण भारतीय आचार्यों (निम्बार्काचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य - मध्वाचार्य के अनुयाई नदीहा बङ्गाल केश्रीकृष्ण चैतन्य, और रायपुर छत्तीसगढ़ के वल्लभाचार्य) ने अपनाया ‌ इसलिए इनके अनुयाई जिनने उनके आचार्यों से दीक्षा लेकर दाहिनी भुजा पर शंङ्ख- चक्र गुदवा कर कण्ठी धारण कर रखी है, केवल वे 
निम्बार्क सम्प्रदाय के महाभागवत ही मध्यरात्रि के बाद एकादशी लगे तो तीसरे दिन चाहे उदिया तिथि द्वादशी तिथि हो तो भी द्वादशी में एकादशी का व्रत करते हैं। या 
रामानुज सम्प्रदाय के भागवत सूर्योदय के बाद २२ घण्टे बाद एकादशी लगे तो तीसरे दिन चाहे उदिया तिथि द्वादशी तिथि हो तो भी द्वादशी में एकादशी का व्रत करते हैं।  
पौराणिक सूर्योदय के 22 घण्टे 24 मिनट बाद एकादशी लगे तो तीसरे दिन चाहे उदिया तिथि द्वादशी तिथि हो तोभी द्वादशी में एकादशी व्रत करते हैं।
इसी बात को प्रकारान्तर से लिखता हूँ ---
रामानुज सम्प्रदाय के भागवत सूर्योदय के दो घण्टे पहले एकादशी लगे तो दुसरे दिन चाहे उदिया तिथि द्वादशी तिथि हो तो भी द्वादशी में एकादशी का व्रत करते हैं।  
पौराणिक सूर्योदय के 01 घण्टा 36 मिनट पहले एकादशी तिथि लगे तो दुसरे दिन चाहे उदिया तिथि द्वादशी तिथि हो तो भी द्वादशी में एकादशी व्रत करते हैं।

कभी किसी के मस्तिष्क में यह प्रश्न क्यों नहीं उठता कि, हम वैदिक मन्त्रों से कर्मकाण्ड, यज्ञ- होम, यहाँ तक कि, मूर्ति पूजा तक में पुरुष सुक्त के सोलह मन्त्रों से षोडशोपचार पूजन करते हैं तो, केवल एकादशी व्रत में ही श्रोत-स्मार्त परम्परा क्यों छोड़ देते हैं? और पौराणिक प्रमाण क्यों खोजते हैं? या श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने के लिए श्रोत-स्मार्त परम्परा क्यों छोड़ देते हैं? जबकि अन्य सभी व्रत,पर्व, उत्सव और त्योहार तो पर्वकालिन तिथि में ही करते हैं। केवल जन्माष्टमी और एकादशी को ही उदिया तिथि क्यों याद आती है? और तो और द्वादशी तिथि में भी एकादशी व्रत क्यों करते हैं?
इन सब का उत्तर है, बाबाओं और कथावाचकों के चक्कर में। बाबाओं और कथावाचकों को शास्त्रीय ज्ञान नहीं होता केवल अपने पन्थ- सम्प्रदाय की परम्पराओं की जानकारी मात्र रहती है।

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