विधर्मी और विदेशियों का मूँह बन्द करने के लिए उचित विकल्प यह है कि, हम ब्रह्म (वेदों) की ओर चलें, आत्मसुधार करें, भोजन, पानी, उर्जा, मशीनरी, शस्त्रास्त्र में उत्पादन बढ़ाकर प्रतिस्पर्धा करके निर्यात बढ़ाकर आर्थिक सुदृढ़ हों। स्वतः सबके मूँह बन्द हो जाएँगे।
पहले विश्वास दृढ़ करेंगे, तभी कुछ कर पाएँगे। क्योंकि, रक्षात्मक खेलने वाला हमेशा पीछे ही रहता है। कभी जीत नही सकता।
जब हमारे पूर्वजों ने उनके पूर्वजों के कृतित्व का सत्यानाश कर दिया तो, हम अपने पूर्वजों की गलतियों को क्यों ढोते चलें, इसके बजाय हर स्तर पर सुधार करते करते सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ें।
हम स्वयम् को इतना सक्षम सिद्ध कर दें कि, कोई आँख उठाकर बात भी न कर पाए।
खदेड़ने की राजनीति राजपूतों की थी। क्या हुआ। पीठ फेरी और पीछे-पीछे वापस हमारे साथ ही आ गये।
शिवाजी ने कभी दिल्ली पर आक्रमण नही किया। क्या हुआ मुगलों का पतन यूरोपीयों के हाथों हुआ और मराठे सब ओर से घीर गये।
चन्द्रगुप्त मौर्य नें स्वयम् को इतना सक्षम किया कि, अशोक अ शोक हो गया। लेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य का अपना कुछ नही था। चाणक्य नें ध्यान देना कम किया तो चन्द्रगुप्त मौर्य जैन संन्यासी हो गया। यही दोष अशोक को भी ले डुबा; उसे बुद्धु बना दिया और वापस जस के तस हो गये।
यदि वह स्वयम् बौद्धिक सक्षम होता तो आज इतिहास उल्टा होता।
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