कोई भी व्यक्ति जिस स्थान पर बैठता है तदनुसार चर्चा और व्यवहार करता है। देवस्थान में धार्मिक आचरण, कार्यस्थल पर अपने व्यवसाय का आचरण स्वाभाविक है। ऐसे ही ग्रहों का अपना स्वभाव तो है लेकिन जिस तारामण्डल अर्थात नक्षत्र या राशि में रहता है उस नक्षत्र या राशि के स्वभाव अनुकूल उस ग्रह का प्रदर्शन बदल जाता है।
वास्तविकता में सायन पद्यति में राशियाँ और नक्षत्र होते ही नहीं। सायन गणना में केवल भोगांश/ विशुवांश में ही ग्रह स्थिति दर्शाई जाती है।
क्योंकि यदि सायन भोगांश को तीस अंश से विभाजित कर राशियों में दर्शाया जाए और उन राशियों में ग्रह दर्शाये जाएँ तो सन २८५ में जो मेष राशि का तारा मण्डल था वही मेष राशि का तारा मण्डल ईस्वी पूर्व ४०१२ में मिथुन राशि का तारा मण्डल था, ईसापूर्व १८६४ में वृष राशि का तारा मण्डल था सन २८५ ईस्वी में मेष राशि का तारा मण्डल था और ईस्वी सन २४३३ में मीन राशि का तारा मण्डल होगा और ईस्वी सन ६९५२ में कुम्भ राशि का तारा मण्डल हो जाएगा।
उस तारा मण्डल अर्थात नक्षत्र या राशि का स्वभाव तो नियत ही रहेगा लेकिन सायन राशि का स्वभाव नियत नहीं रह सकता।
अतः सायन राशियों का स्वभाव निर्धारित नहीं किया जा सकता।
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