बुधवार, 20 दिसंबर 2023

काल का आधिदैविक रूप तथा महाकाल रुद्र मूर्ति में अन्तर।

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ११ श्लोक ३२


"श्री भगवानुवाच

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो

लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे

येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।।
 "

हिन्दी अनुवाद 
 ।।11.32।।श्रीभगवान् बोले -- मैं लोकों का नाश करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ। मैं जिस लिये बढ़ा हूँ वह सुन? इस समय मैं लोकों का संहार करने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ? इससे तेरे बिना भी ( अर्थात् तेरे युद्ध न करनेपर भी ) ये सब भीष्म? द्रोण और कर्ण प्रभृति शूरवीर -- योद्धालोग जिनसे तुझे आशङ्का हो रही है एवं जो प्रतिपक्षियों की प्रत्येक सेना में अलग-अलग डटे हुए हैं -- नहीं रहेंगे।


विश्वरूप के नाम से प्रचारित किया जाने वाला चित्र परब्रह्म (विष्णु- माया) या  ब्रह्म (जगत के सृजेता, प्रेरक और रक्षक सवितृ- सावित्री) का नहीं अपितु श्रीमद्भगवद्गीता ११/३२ में अर्जुन को बतलाया गया काल रूप का है। और मूलतः काल अपर ब्रह्म (नारायण- श्री लक्ष्मी) का है।

उज्जैन में दक्षिण मुखी महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजितमहाकाल मूलतः ; अष्टमूर्ति रुद्र की महाकाल नाम से प्रसिद्ध एक मूर्ति काल भैरव स्वरूप का  है। 

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