मुर्ख प्रारम्भ बड़ी तीव्रता पूर्वक करते हैं। दृष्टि केवल अगली सीढ़ी पर रखते हैं। वह सीढ़ी चढ़ने पर फिर अगली सीढ़ी दिखती है। ऐसे आधे रास्ते में ही घबरा जाते हैं।
न वापस होनें के न आगे बढ़ने की क्षमता दिखाई देती है। तो हताश होकर बैठ जाते हैं।
तप और ध्यान की तीन विधियाँ है,
१ आसुरी वृत्ति वाले राक्षस और जैन काम, क्रोध आदि षड अरियों से संघर्ष कर विजेता होना चाहते हैं, लेकिन दलदल से बाहर निकलने के लिए जितने हाथ-पैर चलाओगे उतना ही धँसते जाओगे।
२ राजसी विधि - दुनिया जमाने की जानकारी एकत्र कर, ये भी करलूँ, वो भी करलूँ, इसको छोड़ा, उसको पकड़ा इसी में जीवन बिता देते हैं।
३ सात्विक विधि - समर्पण भाव से अपने कर्तव्य कर्म करते रहो, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ एकनिष्ठ हो लगन लगाकर मगन (मग्न) रहो।
कहाँ क्या हो रहा है इसकी चिन्ता प्रभु पर छोड़ दो।
दुनियादारी प्रभु देखेंगे हम केवल प्रभु को देखेंगे
बस ये ही तीन नीतियां धर्म, संस्कृति, व्यक्तिगत जीलन, सामाजिक जीवन, राजनीति, अर्थ नीति, सब जगह समान है।
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