सूर्य भूमि और चन्द्रमा में अमावस्या को ०००° का कोण बनता है। एकाष्टका (शुक्ल पक्ष की अष्टमी) को ९०° का कोण बनता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी को १२०° का कोण बनता है। पूर्णिमा को १८०° का कोण बनता है। अष्टका (कृष्ण पक्ष की अष्टमी) को २७०° का कोण बनता है। कृष्ण पक्ष की एकादशी को ३००° का कोण बनता है। इस लिए इन्ही तिथियों में व्रतोपवास अधिक होते हैं।
कारण कि, बल समानान्तर चतुर्भुज के सिद्धान्त से परिणामी बल उर्ध्व दिशा में खींचता है। इस कारण भौतिक कार्यों और भोजन पाचन में असुविधा जनक होता है। और विचलित मन को स्थिर करने हेतु आराधना उपासना का सहारा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
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