सनातन वैदिक धर्म और वैदिक संस्कृति में प्रचलित ज्योतिष पत्रक/ केलेण्डर युगाब्ध जिसकी अनुशासन केलेण्डर रिफार्म्स कमेटी 1955 ने भी की थी, लेकिन चाचा नेहरू ने जिसे राष्ट्रीय शक केलेण्डर के नाम से प्रचलित करवा दिया। फिर भी राष्ट्रीय केलेण्डर के दिनांकों को बैंकों, शैक्षणिक आदि शासकीय कार्यों में गत वर्ष मान्यता दी गई। परिणाम स्वरूप शासकीय कार्यों में ग्रेगोरियन केलेण्डर ही प्रचलित रहा। और टी.वी. तथा सिनेमा नें 31 दिसम्बर की धूमधाम का व्यापक प्रचार कर दिया।---
नव कलियुग संवत और वैदिक उत्तर गोल का प्रारम्भ।
*20 मार्च 2024 को पूर्वाह्न 08:36 बजे प्रातः वसन्त विषुव अर्थात सायन मेष संक्रान्ति होगी।*
*इसी समय से वैदिक संवत्सर/ संवत बदलकर कलियुग संवत 5125 प्रारम्भ हो जाएगा। जो व्यवहार में अगले दिन 21 मार्च 2024 को सूर्योदय से लागू होगा।*
*देवताओं का सूर्योदय तथा पितरों का सूर्यास्त होगा। उत्तरी ध्रुव पर सूर्योदय और दक्षिण ध्रुव पर सूर्यास्त हो जाएगा। इसलिये वैदिक उत्तर गोल प्रारम्भ होगा।*
सूर्य भूमध्य रेखा पर पहूँच कर उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करेगा। पूरे विश्व में दिन-रात बराबर होगें। सूर्योदय ठीक पूर्वदिशा में और सूर्यास्त ठीक पश्चिम दिशा में होगा। ठीक मध्याह्न में भूमध्य रेखा पर खड़े बिजली आदि के खम्बों की छाया लुप्त हो जाएगी। आगामी शरद विषुव अर्थात सायन तुला संक्रान्ति तक सूर्य उत्तरी गोलार्ध में रह कर संचरण करेगा, इसलिए; सायन मेष संक्रान्ति 20 मार्च से सायन तुला संक्रान्ति 22 सितम्बर तक की अवधि को उत्तर गोल कहते हैं।
उत्तरगोल-दक्षिण गोल, उत्तरायण-दक्षिणायन, षड् ऋतुएँ इसी केलेण्डर में हो सकती है।
इसके पश्चात अगला नव संवत्सर *20 मार्च 2025 को अपराह्न 02:31 बजे दोपहर मे (14:21 बजे) वसन्त विषुव अर्थात सायन मेष संक्रान्ति होगी।*
*इसी समय से वैदिक संवत्सर/ संवत बदलकर कलियुग संवत 5126 प्रारम्भ हो जाएगा। जो व्यवहार में अगले दिन 21 मार्च 2025 के सूर्योदय से लागू होगा।*
सनातन धर्म का दुसरा केलेण्डर/पञ्चाङ्ग युधिष्ठिर संवत जो अलग-अलग नामों से पञ्जाब - हरियाणा - हिमाचल प्रदेश -जम्मू और उत्तराखण्ड और के कुछ भागों में विक्रम संवत के नाम से , बङ्गाल - उड़ीसा - असम - मणिपुर में , तमिलनाडु एवम केरल में स्थानीय नामों से प्रचलित है।
युधिष्ठिर संवत 5162 का प्रारम्भ समय, निरयन मेष संक्रान्ति; जब सूर्य के केन्द्र से भूमि चित्रा तारे के समक्ष होगी, अर्थात भूकेन्द्र से सूर्य चित्रा तारे से 180° पर 13 अप्रैल 2024 को अपराह्न 09:03 बजे (21:03 बजे) रात में होगी। इसे ही सम्राट विक्रमादित्य ने अपने राज्यारोहण के समय पुनः लागू किया था। लेकिन इस केलेण्डर का सम्बन्ध अयन और ऋतुओं से न होकर आकाश के तारामंडल में निर्मित सत्ताइस नक्षत्रों या अर्वाचीन अठासी नक्षत्रों (कांस्टिलेशन) और तेरह अरों/ राशियों (साइन Sign) में सूर्य की स्थिति से है। फिर भी पौराणिक काल में प्रत्येक 30° का एक मास निर्धारित कर दिया गया। लगभग 72वर्ष में एक दिन का अन्तर, 2148 वर्ष में 30° के एक मास का अन्तर और 4296 वर्ष में 60° की एक ऋतु का अन्तर पड़ जाता है। और 12890 वर्ष में 180° के एक गोल/ अयन का अन्तर पड़ जाता है। तदनुसार लगभग 8593 वर्ष में चार माह के मौसम अर्थात 120° का अन्तर पड़ जाता है। अर्थात 25780 निरयन सौर वर्ष और 25781 सायन सौर वर्ष में अहर्गण (दिनों की संख्या) बराबर होंगे।
पञ्जाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू में प्रचलित विक्रम संवत 2081 का प्रारम्भ भी निरयन मेष संक्रान्ति से 13 अप्रैल 2024 को अपराह्न 09:03 बजे (21:03 बजे) रात से होगा और व्यवहार में दिनांक 14 अप्रैल 2024 को सूर्योदय से विक्रम संवत 2081 का प्रारम्भ होगा।
यह काल गणना क्षेत्रीय नाम परिवर्तन के साथ बङ्गाल, उड़िसा, असम, तमिलनाडु, केरल आदि प्रदेशों में इसी समय नव संवत्सर प्रारम्भ के रूप में प्रचलित है। आप 14/15जनवरी को जो मकर संक्रान्ति मनाते हैं वह इस केलेण्डर (पञ्चाङ्ग) के दशम मास / पञ्जाब हरियाणा में निरयन सौर माघ मास का प्रारम्भ और तमिलनाडु और केरल में मकर मास का शुभारम्भ है।
प्राचीन सनातन धर्म में ये दोनों ज्योतिष पत्रक/ पञ्चाङ्ग/ केलेण्डर प्रचलित थे।
पहले शकों और बाद में भी तुर्कों - अफगानों के अधीन रहने कारण वैदिक परम्परा से भ्रष्ट हुए वर्तमान भारतीय लोगों का शकाब्द ---
शक संवत 1946 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय से 09 अप्रेल को प्रारम्भ होगा जिसे कर्नाटक , आन्ध्र प्रदेश - तेलङ्गाना, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सातवाहन वंशी गोतमीपुत्र सातकर्णी नें पेठण (महाराष्ट्र) विजय की खुशी में शालिवाहन शकाब्द के नाम से चलाया था और उत्तर भारत में कुषाण वंश के क्षत्रप कनिष्क प्रथम नें मथुरा विजय के उपलक्ष्य में पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) से शक संवत चलाया था। वर्तमान में हिन्दू इसे ही अपना धार्मिक पञ्चाङ्ग/ केलेण्डर मानने लगे हैं। यह न तो गोल/ अयन और ऋतुओं से सम्बन्धित है, न नक्षत्रों से है बल्कि केवल चन्द्रकलाओं से सम्बन्धित है। फिर भी 28 से 38 मास में एक अधिक मास करके और क्रमशः 19 वर्ष, फिर 122 वर्ष, फिर 141 वर्ष में एक क्षयमास और उसी वर्ष में क्षय मास के पहले और बाद में एक-एक अधिक मास करनें से 30° वाले निरयन सौर मास और 360° वाले निरयन सौर युधिष्ठिर संवत्सर/ विक्रम संवत के साथ-साथ चलता रहता है। अतः शकाब्द में भी 2148 वर्ष में एक मास का अन्तर और 4296 वर्ष में एक ऋतु का अन्तर पड़ जाता है। अतः ऋतुओं से शकाब्द का कोई सम्बन्ध नहीं है।
शके 1945 के अन्तिम दिन अमान्त फाल्गुन कृष्ण अमावस्या अर्थात पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण अमावस्या के समाप्ति 08 अप्रैल 2024 को अपराह्न 11:50 बजे (23:50बजे ) रात्रि में होगा, अतः व्यवहार में दुसरे दिन 09 अप्रैल 2024 को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के सूर्योदय समय से शक संवत 1946 का प्रारम्भ होगा। इसे हिन्दू पर्व गुड़ी पड़वा भी कहते हैं। जो लोग यह भ्रम पाले बैठे हैं कि, गुड़ी पड़वा हमेशा वसन्त ऋतु में ही आती है, वे अपना भ्रम निवारण करलें।
वर्तमान में तो अंग्रेजो द्वारा मैकाल शिक्षा प्रणाली द्वारा बनाए गए दासों द्वारा 31 दिसम्बर/ 01 जनवरी को नव वर्ष बतलाया जा रहा है। उनसे मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
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