शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

रुद्र गण

माना जाता है कि, शंकरजी के नेतृत्व में दस और लोग पश्चिम एशिया या मध्य एशिया से आये थे। जो पशुओं के रक्षक/ ग्वाले/ गड़रिया वेश में रहते थे और पशुओं की रक्षा का कार्य करते थे इसलिए पशुपति कहलाए। ईरान में मीढ संस्कृति में उनको मान दिया इसलिए मीढीश कहलाते हैं।हिमालय के प्रमथ गणों के नायक होने के कारण शंकर जी गणपति कहलाते हैं। और बाद में अपने पुत्र विनायक को गणपति पद सोपने के कारण महा गणाधिपति कहलाते हैं। उस समय गौवंश मुख्य सम्पत्ति माना जाता था इसलिए निधिपति कहलाते हैं। इसी कारण निधिपति कुबेर शंकर जी के मित्र माने जाते हैं। सत्यनिष्ठा पूर्वक सबकी सेवा करने, औषध विज्ञान, शल्यक्रिया और विष विज्ञान के ज्ञाता होने तथा सङ्गीतज्ञ और नाट्यशास्त्र में प्रवीण (अभिनेता) होने से सबके प्रिय होने से प्रियपति कहलाते हैं।  सैन्यकर्म और कोतवाली कर्म (पौलिस के कार्य) में प्रवीण से इन ग्यारहों की गणना रुद्र देवताओं में होने लगी। यह सम्भव है कि, ये समस्त गुण एक ही में न होकर दस अलग-अलग रुद्रों में हो।

रुद्र सुक्त में सैनिक, पूलिस, वनवासी, गिरिवासी, पगड़ी धारी, पशुपालक, लुटेरे, सेंधमार, आतङ्की, सर्पधारी/ सपेरे, सर्प, बिच्छू जैसे विषैले जीवों, घोंघा (पाइला) आदि सभी रुलाने वालों की गणना अनेक रुद्र में की गई है और प्रार्थना की गई है कि, हे रुद्र हमें मत मारो, हमारे परिवार जनों को और बच्चों को मत मारो, हमारी गौओंको और पशुओं को मत मारो, अपना धनुष पर चढ़ा बाण नीचे करलो, हमारी रक्षा करो आदि आदि। जैनों में धनुष पर बाण सन्धान कर नीचे की ओर किये एक गण को मन्दिर के द्वार पर रक्षक के रूप में दर्शाया जाता है।

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