*विष्णु पुराण/तृतीय अंश/ सौलहवाँ अध्याय/ श्लोक 1, 2 एवम् 3 से* ---
श्राद्ध कर्म में विहित और अविहित वस्तुओं का विचार के अन्तर्गत *मत्स्य, मान्स और प्राकृतिक मदिरा मधु के द्वारा श्राद्ध करने का विधान* ।
और्व उवाच
हविष्यमत्स्यमान्सैस्तु शशस्य नकुलस्य च।
सौकरच्छागलैणेयरौरगवैर्गवयेन च।।१।।
औरभ्रगव्यैश्च तथा मासवृद्ध्या पितामहाः।
प्रयान्ति तृप्तिम् मान्सैस्तु नित्यम् वार्घीणसामिषै।।२।।
अर्थात ---
और्व बोले -- हविष्यान्न, मत्स्य, शशक (खरगोश), नकुल, शुकर (सूअर), छाग, कस्तुरी मृग, कृष्ण मृग, गवय (नीलगाय/ वनगाय) और भेड़ प्रजाति का पशु मेष (मेढ़ा) के मान्सों से तथा देशी गौ के दूध, दहीँ, मक्खन और घी आदि गव्य से पितृगण क्रमशः एक-एक मास अधिक तृप्ति लाभ करते हैं। और वार्घ्रीणस पक्षी के मान्स से सदा तृप्त रहते हैं। 1 एवम 2
खड्गमान्समवीवात्र कालशांक तथा मधु।
शस्तानि कर्मण्यत्यन्ततृप्तिदानि नरेश्वर।।3
हे नरेश्वर! श्राद्ध कर्म में गेण्डे का मान्स, कालकाश और मधु अत्यन्त प्रशस्त और अत्यन्त तृप्तिदायक है।
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