गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पौराणिक ग्रन्थों पर कोई सन्देह नहीं करता है।
महर्षि वाल्मीकि श्री रामचन्द्र जी के राज्यक्षेत्र में ही रहते थे। इसलिए ही गर्भवती सीता जी को उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में ही भेजा था। जहाँ कुश और लव जन्में और शिक्षित-प्रशिक्षित हुए। महर्षि वाल्मीकि ने कुश और लव को स्वरचित रामायण कण्ठस्थ करवाई और श्री रामचन्द्र जी के अश्वमेध यज्ञ में कुश और लव ने जा कर सुनाई। श्री रामचन्द्र जी ने उनकी कथा का अनुमोदन किया।
अतः वाल्मीकि रामायण में लिखे श्री रामचन्द्र जी के इतिहास पर कोई सन्देह नहीं किया जा सकता।
अतः कोई भी यदि वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित तथ्य से भिन्न मत व्यक्त करे तो वह अमान्य ही होगा।
अयोध्या काण्ड द्वितीय सर्ग श्लोक 12 में---कल प्रातः पुष्य नक्षत्र में मैं युवराज के पद पर नियुक्त करूंगा।
अयोध्या काण्ड तृतीय सर्ग श्लोक 4 में स्पष्ट वर्णन है कि, यह चैत्र मास है। श्रीरामचन्द्र जी को युवराज पद पर अभिषेक की तैयारी का निर्देश दिया।
श्लोक 15 में कल स्वस्तिवाचन होगा। कहा है।
चतुर्थ सर्ग श्लोक 21 में आज पुनर्वसु नक्षत्र है। कल पुष्य नक्षत्र रहेगा।
आगे श्लोक 22 में पुनः कहा है कि,
इसलिए पुष्य नक्षत्र में तुम (युवराज पद पर) अपना अभिषेक करा लो। कल पुष्य नक्षत्र में मैं अवश्य युवराज पद पर तुम्हारा अभिषेक कर दूंगा।
स्पष्ट है कि, श्री रामचन्द्र जी का युवराज पद पर अभिषेक चैत्र मास में पुष्य नक्षत्र में होना निश्चित था। चैत्र मास में पुष्य नक्षत्र चैत्र शुक्ल नवमी या दशमी को ही होता है।
षष्ट सर्ग श्लोक 2 से 4 तक श्री रामचन्द्र जी ने भगवान नारायण के निमित्त अग्निहोत्र कर आहुति दी। और यज्ञ शेष हविष्य ग्रहण किया ।
(मतलब भगवान श्री रामचन्द्र जी नारायण उपासना करते थे।)
विजया दशमी (दसरा) के बाद तो सुग्रीव ने वानर दलों को बुलवा कर सीता जी की खोज हेतु भेजा। उनके पास पुष्पक विमान नहीं था। वानर दलों तक सन्देश जाने और उनके एकत्र होने, उन्हें कार्य समझाने का समय जोड़ें।
अङ्गद के नेतृत्व में हनुमानजी, जामवन्त जी आदि विंध्याचल पहूँचे, वहाँ पूरे एक महीने खोज की। वाल्मीकि रामायण/किष्किन्धाकाण्ड/पचासवाँ सर्ग/श्लोक 3
उसके बाद स्वयम्प्रभा की गुफा में प्रवेश कर भोजन आदि ग्रहण कर थकान दूर की।
स्वयम्प्रभा की गुफा से विन्द्याचल के दक्षिण पश्चिम मे पहुँचे जहाँ से एक ओर विन्द्याचल दुसरी ओर सतपुड़ा पर्वत और सामने (अरब) सागर दिख रहा था ऐसा स्थान खम्बात की खाड़ी के तट पर भरुच क्षेत्र में है। वाल्मीकि रामायण/किष्किन्धाकाण्ड/ तिरेपनवाँ सर्ग/श्लोक 1 एवम् 2
भरूच के पास पर्वत शिखर पर सम्पाति मिले। उन्होंने पूरी जानकारी ली, फिर वहाँ से 1287 किलोमीटर दक्षिण में (लक्ष्यद्वीप के किल्तान द्वीप पर) रावण की लंका में अशोक वाटिका में सीता जी का होने की सूचना दी। वाल्मीकि रामायण/किष्किन्धाकाण्ड/ तिरेपनवाँ सर्ग / श्लोक 15 से 20
तब हनुमान जी ने लंका के लिए छलांग लगाई।
फिर हनुमान जी लंका में अशोक वाटिका में सीता जी से मिले, विभिषण से मिले, लंका जलाई, निकुम्भला के मन्दिर और मूर्तियाँ तोड़ी। फिर सीता जी का सन्देश लेकर वानर दल वहाँ से वापस लौटकर किश्किन्धा पहूँचे। सुग्रीव और श्री रामचन्द्र जी को सीता जी की जानकारी दी और सन्देश दिया।
तब जाकर श्रीरामचन्द्र जी और सुग्रीव ने युद्ध का निर्णय किया। फिर सेना तैयार की गई, पहाड़ खोदने और वृक्ष उखाड़ने/ काटने के बड़े-बड़े यन्त्र लेकर पश्चिम घाट पर यात्रा करके केरल के कोझिकोड पहुँचे। तीन दिन समुद्र से प्रार्थना कर मार्गदर्शन मांगा। तब समुद्र ने मार्गदर्शन दिया। और नल-नील का परिचय दिया। तब सेतु निर्माण प्रारम्भ हुआ। वाल्मीकि रामायण/युद्ध काण्ड/ बाईसवाँ सर्ग/ श्लोक 45 से 65
फिर नल-नील के नेतृत्व में केरल के कोझिकोड से लक्ष्यद्वीप के किल्तान द्वीप तक तीन सौ किलोमीटर का रामसेतु पाँच दिन में बनाया। वाल्मीकि रामायण/युद्ध काण्ड/ बाईसवाँ सर्ग/ श्लोक 69 से 72
तब वानर सेना ने रावण की लंका में प्रवेश किया।
तब अवलोकन और अध्ययन कर रावण पर आक्रमण किया।
वाल्मीकि रामायण/ युद्ध काण्ड/ बानवेंवाँ सर्ग/ श्लोक 66-67 के अनुसार
मेघनाद वध से दुःखी और क्रुद्ध रावण को दी गई राय के आधार पर अमान्त फाल्गुन पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या को रावण द्वारा पूर्ण तैयारी से श्री रामचन्द्र जी के विरुद्ध युद्ध होना निश्चित हुआ।
और
वाल्मीकि रामायण/ युद्ध काण्ड/ एकसौ आठवाँ सर्ग/ श्लोक 17-23 के अनुसार
अमान्त फाल्गुन पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या को सन्ध्या समय हुए इस अन्तिम युद्ध में ही श्री रामचन्द्र जी द्वारा रावण की छाती पर मारा बाण रावण का हृदय वेधता हुआ आर-पार हो गया और पहले धरती में धँस गया। फिर तरकस मे लौट आया।
रावण की मृत्यु होते ही रावण की मृत शरीर रथ से धरती पर गिर पड़ा।
अतः श्री रामचन्द्र जी द्वारा लक्ष्मण जी को रावण के पास राजनीति सीखने की बात शुद्ध गप्प है।
तत्पश्चात् रावण की अन्त्येष्टि और विभिषण का राज्याभिषेक के उपरान्त विभिषण सीता जी को लेकर आया। उसके बाद ही श्री रामचन्द्र जी को पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या के लिए रवाना हुआ।
चैत्र शुक्ल पञ्चमी के दिन श्री रामचन्द्र जी सीता जी और लक्ष्मण जी तथा हनुमान जी, सुग्रीव सहित महर्षि भरद्वाज के आश्रम पर पहूँचे। दुसरे दिन भरत द्वारा विनय करने पर चैत्र शुक्ल पष्ठी के दिन श्री रामचन्द्र जी सीता जी और लक्ष्मण जी तथा हनुमान जी, सुग्रीव सहित अयोध्या पहूँचे। वाल्मीकि रामायण/ युद्ध काण्ड/ एकसौ चौबीसवाँ सर्ग/ श्लोक १
अतः *रावण वध तिथि अमान्त फाल्गुन/पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या है। आश्विन शुक्ल दशमी (दशहरा) नहीं है।*
और
*श्री रामचन्द्र जी के अयोध्या लौटने की तिथि चैत्र शुक्ल पष्ठी है; अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण दीपावली को नहीं।*
ये सब बाबा वाक्य जो हम बचपन से सुनते आये कितने गलत थे।
मतलब हमें हमारे शास्त्रों का अध्ययन नहीं होने के कारण न तो अपने व्रत-पर्व, उत्सव और त्योहारों का समुचित कारण ज्ञात है, न व्रत-पर्व, उत्सव और त्योहार मनाने की सही विधि भी ज्ञात नहीं है।
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