*संवत्सर व्यवस्था -*
उत्तरायण की तीन ऋतु - वसन्त, ग्रीष्म और वर्षा। -
*देवा ऋतवः वसन्त, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु उत्तरायण में होती है।*
शतपथ ब्राह्मण 2/1/3 तथा तै.सं. 6/5/3 तथा नारायण उपनिषद अनु. 80
*उदगयन शब्द और देवयान / देवलोक शब्द स्पष्ट आये हैं।*
मैत्रायण्युपनिषद में उत्तरायण और नारायण उपनिषद अनु 80
(भा. ज्यो.पृष्ठ 44 एवम् 45)
*वसन्त को प्रथम ऋतु और संवत्सर का शिर, ग्रीष्म को दक्षिण पक्ष (पंख) और शरद को उत्तर पक्ष कहा है।*
तै.ब्रा. 1/1/2/6 एवम् 7 एवम् 3/10/4/1
*हेमन्त को संवत्सर का मध्य और वर्षा को पुच्छ कहा है।*
तै.ब्रा. 3/10/4/1
(भा. ज्यो. पृष्ठ 47)
उक्त आधार पर प्रमाणित होता है कि, वसन्त सम्पात से शरद सम्पात तक वैदिक उत्तरायण होता था। और शरद सम्पात से वसन्त सम्पात तक वैदिक दक्षिणायन होता था। वैदिक काल के उत्तरायण में वसन्त, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु होती थी। और दक्षिणायन में शरद, हेमन्त और शिशिर ऋतु होती थी।
तदनुसार संवत्सर का प्रारम्भ वसन्त सम्पात, उत्तरायण, वसन्त ऋतु और मधुमास से होता था।
*तीन मौसम / ऋतु के नाम आये हैं।*
अग्निर्ऋतुः सूर्य ऋतुश्चन्द्रमा ऋतु।
तैत्तिरीय ब्राह्मण 1/10/1
(भा.ज्यो पृष्ठ 49)
इससे प्रमाणित होता है कि, वर्तमान के ही समान वैदिक युग में भी तीन मौसम मुख्य रहते थे १ गर्मी, वर्षा और ठण्ड।
वसन्त सम्पात अर्थात सायन मेष संक्रान्ति। जो प्रायः 20/21 मार्च को होती है। और शरद सम्पात अर्थात सायन तुला संक्रान्ति जो प्रायः 22/23 सितम्बर को होती है।
अतः वैदिक उत्तरायण 21 मार्च से 22 सितम्बर तक होता है। इसे उत्तरगोल भी कहते हैं।
और वैदिक दक्षिणायन 23 सितम्बर से 19/20 मार्च तक होता है। इसे दक्षिण गोल भी कहते हैं।
उत्तर परम क्रान्ति अर्थात सायन कर्क संक्रान्ति प्रायः 22/ 23 जून को होती है। और दक्षिण परम क्रान्ति सायन मकर संक्रान्ति प्रायः 22 दिसम्बर को होती है।
उत्तर परम क्रान्ति अर्थात सायन कर्क संक्रान्ति 23 जून से दक्षिण परम क्रान्ति सायन मकर संक्रान्ति 21 दिसम्बर तक वैदिक उत्तर तोयन कहते हैं। पौराणिक काल में इसे दक्षिणायन कहा जाने लगा।
दक्षिण परम क्रान्ति सायन मकर संक्रान्ति 22 दिसम्बर से उत्तर परम क्रान्ति अर्थात सायन कर्क संक्रान्ति 22 जून तक वैदिक दक्षिण तोयन होता है। पौराणिक काल में इसे उत्तरायण कहा जाने लगा।
इसलिए
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