मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

दीपावली पूजन

आचार्य श्री कमलाकर भट्ट प्रणीत
निर्णय सिन्धु/प्रथम परिच्छेद/पूर्णिमा - अमावस्या तिथि विचार। ---

पौर्णमास्यमावास्ये तु सावित्रीव्रतम् विना परे ग्राह्ये। भूतविद्धे न कर्तव्ये दर्शपूर्णे कदाचन। वर्जयित्वा मुनिश्रेष्ठ सावित्री व्रतमुत्तमम्। इति ब्रह्मवैवर्तात।

पूर्णिमा तिथि तथा अमावस्या तिथि सावित्री व्रत के विना परा ग्रहण करनी चाहिये। ब्रह्मवैवर्त पुराण का मत है कि,-- हेमुनिश्रेष्ठ, व्रतों में उत्तम सावित्री व्रत को छोड़कर चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या तथा पूर्णिमा कभी भी नहीं करना चाहिये।


आचार्य काशीनाथ उपाध्याय कृत धर्मसिन्धु/द्वितीय परिच्छेद/ अथामावस्याभ्यङ्गनिर्णयः--

अथाश्विनामावस्यायाम् प्रातरभ्यङ्गः प्रदोषे दीपदानलक्ष्मीपूजनादि विहितम्।।
तत्र सूर्योदयम् व्याप्यास्तोत्तरम् घटिकाधिरात्रिव्यापिनि दर्शे सति न सन्देहः।।
अत्र प्रातरम्यङ्गदेवपूजनादिकम् कृत्वापराह्ने पार्वणश्राद्ध कृत्वा प्रदोष समये दीपदानोल्काप्रदर्शनलक्ष्मीपूजनानि कृत्वा भोजनम् कार्यम् ।। 
अत्र दर्शेबालवृद्धादिभिन्नेर्दिवा न भोक्तव्यम्।।
रात्रो भोक्तव्यमिति विशेषो वाचनिकः।।
तथा च पर दिने एव दिनद्वयेपि वा प्रदोषव्यापौपरा।।
पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा।। अभ्यङ्गस्नानादौ परा।।
एवमुभयत्र प्रदोषव्याप्त्यभावेपि पुरुषार्थचिन्तामणौ तु पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामत्रयाधिकव्यापिदर्शे दर्शापेक्षया प्रतिपद्वृद्धिसत्तवे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवैत्युक्तम् ।।
एतन्मते उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिव्याप्तित्वात्परैव युक्तेति भाति।।
चतुर्दश्यादिदिनत्रयेपि दीपावलिसञ्ज्ञके यत्रयत्राह्नि स्वातीनक्षत्रयोगस्तस्यतस्य प्राशस्त्यातिशयः अस्यामेव निशिथोत्तरम् नगरस्त्रीभिः स्वगृहाङ्गणादलक्ष्मीनिःसारणम् कार्यम्।।

मिहिरचन्द्र कृत अनुवाद ---
इसके अनन्तर आश्विन की अमावस्या को प्रातःकाल अभ्यङ्ग करें। प्रदोष काल में दीपदान, लक्ष्मी पूजन आदि कहा है। 
उसमें यदि सूर्योदय से सूर्यास्त के अनन्तर एक घड़ी से अधिक रात्रि तक अमावस्या हो तो, कुछ सन्देह नहीं है। इसमें प्रातः काल अभ्यङ्ग, देवपूजा आदि करके अपराह्न में पार्वण श्राद्ध करके प्रदोषकाल में दीपदान उल्का प्रदर्शन , लक्ष्मी पूजन, करके भोजन करना। इस अमावस्या के दिन में बालक, वृद्ध आदि को छोड़कर कोई भोजन न करें, रात्रि में ही भोजन करें। यह विशेष वाचनिक है सो दर्शाया जाता है कि, दूसरे दिन (परले दिन ) या दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो, दूसरी (परली) लेना। इस प्रकार दोनों दिन प्रदोष व्याप्ति के अभाव में भी दुसरी (परली) लेना। 
पुरुषार्थ चिन्तामणि में कहा है कि, पहले दिन व्याप्ति हो।
इस पक्ष में यदि आगे तीन प्रहर से अधिक अमावस्या आचार्य श्री कमलाकर भट्ट प्रणीत
निर्णय सिन्धु/प्रथम परिच्छेद/पूर्णिमा - अमावस्या तिथि विचार। ---

पौर्णमास्यमावास्ये तु सावित्रीव्रतम् विना परे ग्राह्ये। भूतविद्धे न कर्तव्ये दर्शपूर्णे कदाचन। वर्जयित्वा मुनिश्रेष्ठ सावित्री व्रतमुत्तमम्। इति ब्रह्मवैवर्तात।

पूर्णिमा तिथि तथा अमावस्या तिथि सावित्री व्रत के विना परा ग्रहण करनी चाहिये। ब्रह्मवैवर्त पुराण का मत है कि,-- हेमुनिश्रेष्ठ, व्रतों में उत्तम सावित्री व्रत को छोड़कर चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या तथा पूर्णिमा कभी भी नहीं करना चाहिये।


आचार्य काशीनाथ उपाध्याय कृत धर्मसिन्धु/द्वितीय परिच्छेद/ अथामावस्याभ्यङ्गनिर्णयः--

अथाश्विनामावस्यायाम् प्रातरभ्यङ्गः प्रदोषे दीपदानलक्ष्मीपूजनादि विहितम्।।
तत्र सूर्योदयम् व्याप्यास्तोत्तरम् घटिकाधिरात्रिव्यापिनि दर्शे सति न सन्देहः।।
अत्र प्रातरम्यङ्गदेवपूजनादिकम् कृत्वापराह्ने पार्वणश्राद्ध कृत्वा प्रदोष समये दीपदानोल्काप्रदर्शनलक्ष्मीपूजनानि कृत्वा भोजनम् कार्यम् ।। 
अत्र दर्शेबालवृद्धादिभिन्नेर्दिवा न भोक्तव्यम्।।
रात्रो भोक्तव्यमिति विशेषो वाचनिकः।।
तथा च पर दिने एव दिनद्वयेपि वा प्रदोषव्यापौपरा।।
पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा।। अभ्यङ्गस्नानादौ परा।।
एवमुभयत्र प्रदोषव्याप्त्यभावेपि पुरुषार्थचिन्तामणौ तु पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामत्रयाधिकव्यापिदर्शे दर्शापेक्षया प्रतिपद्वृद्धिसत्तवे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवैत्युक्तम् ।।
एतन्मते उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिव्याप्तित्वात्परैव युक्तेति भाति।।
चतुर्दश्यादिदिनत्रयेपि दीपावलिसञ्ज्ञके यत्रयत्राह्नि स्वातीनक्षत्रयोगस्तस्यतस्य प्राशस्त्यातिशयः अस्यामेव निशिथोत्तरम् नगरस्त्रीभिः स्वगृहाङ्गणादलक्ष्मीनिःसारणम् कार्यम्।।

मिहिरचन्द्र कृत अनुवाद ---
इसके अनन्तर आश्विन की अमावस्या को प्रातःकाल अभ्यङ्ग करें। प्रदोष काल में दीपदान, लक्ष्मी पूजन आदि कहा है। 
उसमें यदि सूर्योदय से सूर्यास्त के अनन्तर एक घड़ी से अधिक रात्रि तक अमावस्या हो तो, कुछ सन्देह नहीं है। इसमें प्रातः काल अभ्यङ्ग, देवपूजा आदि करके अपराह्न में पार्वण श्राद्ध करके प्रदोषकाल में दीपदान उल्का प्रदर्शन , लक्ष्मी पूजन, करके भोजन करना। इस अमावस्या के दिन में बालक, वृद्ध आदि को छोड़कर कोई भोजन न करें, रात्रि में ही भोजन करें। यह विशेष वाचनिक है सो दर्शाया जाता है कि, दूसरे दिन (परले दिन ) या दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो, दूसरी (परली) लेना। इस प्रकार दोनों दिन प्रदोष व्याप्ति के अभाव में भी दुसरी (परली) लेना। 
पुरुषार्थ चिन्तामणि में कहा है कि, पहले दिन व्याप्ति हो।
इस पक्ष में यदि आगे तीन प्रहर से अधिक अमावस्या हो तो दर्श की अपेक्षा से प्रतिपदा की वृद्धि हो तो लक्ष्मी पूजन आदि भी दुसरे दिन (परले दिन) ही करें। इस मत में दोनों दिन प्रदोष व्याप्ति के पक्ष में भी दुसरे दिन (परले दिन) अमावस्या साढ़े तीन प्रहर से अधिक हो तो, इससे दूसरी (परली) ही युक्त है, यह प्रतीत होता है। दीपावली नामक चतुर्दशी आदि तीनों दिन मे जिस जिस दिन स्वाति नक्षत्र का योग हो उस उस दिन की प्रशंसा अधिक है। इसी अमावस्या को अर्धरात्रि के अनन्तर नगर की स्त्रियाँ अपने घर के आंगन में अलक्ष्मी (दारिद्र) का निस्तारण करें (निकालें)।।

धर्मसिन्धु 
पर दिने एव दिन द्वयेऽपिया प्रदोषव्याप्तौपरा। पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा। 

तिथि निर्णय 
इयम् प्रदो, व्यापिनी ग्राह्या, दिनद्वये सत्त्वाऽसत्त्वे परा।

पुरुषार्थ चिन्तामणी 
सदा साहाम्हमारभ्य प्रवृत्तोतरदिने किञचिन्नयुनयामत्रयम् अमावस्या तदत्तुरदिने यामत्रयमिता प्रतिपत्तदाऽमावस्याप्रयुक्त दीपदानलक्ष्मीपूजादिकम् पूर्वत्र। यदा तु द्वितीयदिने यामत्रयममावस्या तदुत्तररदिने सार्धमात्रयम् प्रतिपत्तदा परा।

अर्थात 
 अमावस्या के तीन प्रहर और प्रतिपदा के साढ़े तीन प्रहर समाप्त हो जाने के बाद अगले दिन लक्ष्मी पूजनादि करना चाहिए।
जिस दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की सम्भावना कम हो शाम के समय अमावस्या और प्रदोष लग रही हो ; यानी, अमावस्या प्रतिपदा युक्त हो, उसी दिन लक्ष्मी-पूजा करनी चाहिए।

 *उक्त समस्त शास्त्र वचनों को दृष्टिगत रखते हुए दीपावली की लक्ष्मी-पूजन दिनांक 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को किया जाना ही उचित है।* 
 *यद्यपि 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को इन्दौर में प्रदोषकाल में अमावस्या मात्र 24 मिनट ही रहेगी, तथापि, सायंकाल में दीपदान कर प्रदोषकाल में, स्थिर वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजा विधि पूर्वक करें।* 
 *ऐसा संयोग पूर्व में भी 28 अक्टूबर 1962 मे, 17 अक्टूबर 1963 मे और 02 नवम्बर 2013 में हो चुका है। तब भी प्रदोषकाल में अल्पकालिक अमावस्या में ही लक्ष्मी पूजा की गई थी।* 
अतः किसी के बहकावे में न आकर *शास्त्र सम्मत दीपावली 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को ही मनाएँ।*


अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को दोपहर 03:52 से 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को रात्रि 06:06 बजे तक रहेगी। 
इन्दौर में प्रदोष काल सूर्यास्त समय 05:52 बजे से रात्रि 08:23 बजे तक रहेगा।
वृषभ लग्न रात्रि 06:35 से 08:33 बजे तक रहेगा।
इस प्रकार प्रदोषकाल में अमावस्या तिथि सूर्यास्त समय 05:52 बजे से रात्रि 06:06 बजे तक 24 मिनट रहेगी।
सूर्यास्त समय 05:52 बजे से रात्रि 06:06 बजे के बीच दीपमाला की पूजा कर, दीपदान कर, लक्ष्मी पूजा हेतु घी का दीपक प्रज्वलित कर ले फिर वृषभ लग्न में रात्रि 06:35 से 08:33 बजे के बीच लक्ष्मी पूजा करें।

स्वाति नक्षत्र 31 अक्टूबर उपरान्त 01 नवम्बर 2024 गुरुवार Friday को उत्तर रात्रि 00:44 बजे (12 बजकर 44 मिनट) से 01 उपरान्त 02 नवम्बर 2024 शुक्रवार Saturday को उत्तर रात्रि 03:30 बजे तक रहेगा।

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