शनिवार, 9 नवंबर 2024

नव सस्येष्टि होला (होली) और दीवाली (दीपावली) पर्व।

पूर्णिमा और अमावस्या को यज्ञ वेदी पर समिधा जमाकर अन्वाधान करते हैं।
अमावस्या और पूर्णिमा के दूसरे दिन (प्रतिपदा) को किया जाने वाला पाक्षिक यज्ञ इष्टि कहलाता है।

इष्टि यज्ञ का एक प्रकार है। मूलतः होली और दीवाली भी नव सस्येष्टि पर्व ही हैं।
हिरण्यकशिपु -प्रहलाद- सिंहिका (होलिका) से होली का कोई सम्बन्ध नहीं है।
इस पर्व का सही नाम होला था। (उम्बी-होला वाला होला) इसलिए आज भी उम्बी-होला सेंकते हैं। इस दिन जों, गेंहू चना आदि फसलों का हवन कर यज्ञ भाग वितरण होता था।

ऐसे ही दीपावली भी नव सस्येष्टि पर्व था, इसलिए इसमें गन्ना, ज्वार और धान (साल की धानी) का हवन होता है। और पितरों के लिए दीपदान करके उन्हें पितृलोक का मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए आकाशदीप लगाते हैं।
रावण वध अमान्त फाल्गुन पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या तिथि की सन्धि वेला में हुआ था। विजया दशमी (दशहरा) को नहीं।
श्रीरामचन्द्र जी चौदह वर्ष के वनवास उपरान्त चैत्र शुक्ल पञ्चमी को भरद्वाज आश्रम पहूँचे थे। दुसरे दिन चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में भरत जी से मिले। और उसके बाद अयोध्या पधारे थे। अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली) को नहीं।
सर्वपितृ अमावस्या के बाद भी जो पितर बच जाते हैं, उन्हें यम द्वितीया के दिन तक एकत्र कर यमराज साथ ले जाते हैं।

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