विक्रमादित्य और चन्द्रगुप्त द्वितीय
*विक्रमादित्य के पितामह महाराज नाबोवाहन ने हरियाणा के ऋषिदेश, गोड़ देश, मालव प्रान्त, कुरुक्षेत्र से आकर उक्त मध्यप्रदेश के सोनकच्छ जिला मुख्यालय से लगभग तीस किलोमीटर दूर ग्राम गंधर्वपुरी को राजधानी बनाया था।*
बाद में नाबोवाहन के पुत्र गन्धर्वसेन गन्धर्वपुरी के राजा हुए। जिन्हें महेन्द्रादित्य भी कहा जाता था। उनकी पत्नी सोम्यदर्शना थी जिनका अन्य नाम वीरमती था।
गन्धर्वसेन कट्टर वेदिक धर्मावलम्बी और विष्णु और शिव के भक्त थे। इस कारण जैन आचार्य महेसरा सूरी उनसे रुष्ट थे। *जैन आचार्य महेसरा सूरी उर्फ कालकाचार्य ने गन्धर्वपुरी से अफगानिस्तान तक पैदल जाकर शक राजा/ कुषाण क्षत्रप के दरबार में गंधर्वसेन के विरुद्ध गुहार लगाई तथा कुषाण क्षत्रप / शकराज को गन्धर्वसेन पर आक्रमण हेतु आमन्त्रित किया। ईसापूर्व ५० में प्राकृत भाषा में रचित जैन कल्प सूत्र में कालकाचार्य कथा में इसका उल्लेख है।*
*शक शासक/ कुषाण क्षत्रप ने शिकार पर गये महाराज गन्धर्वसेन को अकेला पाकर उनपर अनेक अत्याचार किये परिणाम स्वरूप महाराज गंधर्वसेन की जंगल में ही मृत्यु हो गई। जैन ग्रन्थों में गन्धर्वसेन को गर्दभिल्ल, गदर्भ भिल्ल, गदर्भ वेश भी कहा गया है।*
*गन्धर्वसेन के दो पुत्र भृतहरि और विक्रमसेन (विक्रमादित्य) और पुत्री मैनावती थी।* मैनावती के पुत्र गोपीचन्द थे। भृतहरि की पत्नी पिङ्गला से अलाका, शंख नामक दो पुत्र हुए।
*गन्धर्वसेन के बड़े पुत्र भृतहरि ने उज्जैन को राजधानी बनाया।भृतहरि ने अपने अनुज विक्रमसेन को सेनापति बनाया।*
लेकिन भृतहरि की प्रिय पत्नी महारानी पिङ्गला ने महाराज भृतहरि को विक्रमसेन के विरुद्ध भड़का कर विक्रमसेन को देश निकाला दिलवा दिया। सुदृढ़ सेनापति के अभाव में उज्जैन पर शकों के आक्रमण बढ़ने लगे।
*भृतहरि और विक्रम की बहन मैनावती के पुत्र गोपीचन्द पहले ही नाथ सम्प्रदाय के सम्पर्क में आकर नाथयोगी हो गये। योगी गोरखनाथ भृतहरि को अपना शिष्य बनाना चाहते थे। इसलिए गोरखनाथ जी ने भृतहरि को रानी पिङ्गला की आसक्ति से मुक्त कर भृतहरि को धारा नगरी में नाथ पन्थ में दीक्षित किया।*
*नाथ पन्थ में दीक्षित होकर वैरागी होने के कारण राजा भृतहरि ने अपने अनुज विक्रम सेन को खोज कर राज्यभार विक्रम सेन को सोंप दिया। विक्रम सेन ने सैन्य सङ्गठन मजबूत कर शकों को देश से निकाल कर अपनी राज्य सीमा अरब तक पहूँचा दी। इस उपलक्ष्य में विक्रम सेन सम्राट विक्रमादित्य कहलाये। और उननें विक्रम संवत प्रवर्तन किया। जो वर्तमान में भी पञ्जाब हरियाणा में प्रचलित नाक्षत्रीय निरयन सौर विक्रम संवत के मूल स्वरूप में प्रचलित है ।*
*भविष्य पुराण, स्कन्दपुराण तथा तुर्की के शहर इस्ताम्बुल के पुस्तकालय मकतब - ए - सुल्तानिया में रखी अरब के अरबी कवि जरहाम किनतोई की पुस्तक सायर उल - ओकुल पुस्तक में उल्लेख के अनुसार ईरान,अरब, ईराक, सीरिया, टर्की, मिश्र देशों पर विक्रमादित्य की विजय का उल्लेख है और अरबी कवि जरहाम किनतोई की पुस्तक सायर उल - ओकुल पुस्तक में विक्रमादित्य से सम्बन्धित शिलालेख का उल्लेख है; जिसमे विक्रमादित्य को उदार, दयालु, कर्तव्यनिष्ठ, प्रत्यैक व्यक्ति का हितचिन्तक और हितकारी कहकर विक्रमादित्य के शासन काल में जन्में और जीवन व्यतीत करने वाले लोगों को सौभाग्यशाली कहा है। साथ ही कहा है विक्रमादित्य नें मिश्र, टर्की, सीरिया, ईराक, सऊदी अरब, यमन और ईरान में वेदिकधर्म के प्रकाण्ड पण्डित विद्वानों को भेजकर ज्ञानप्रकाश फैलाया।*
*गुप्त वंशीय समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त (चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़े भाई) राजा हुए।उनके सिक्के पुरातत्वीय खुदाई में मिलने से प्रमाणित हुआ कि, समुद्रगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय के पहले रामगुप्त शासक हुए।*
*रामगुप्त की पत्नी ध्रुव स्वामिनी पर शक राजा आसक्त हो गया और बौद्धों के सहयोग से ध्रुव स्वामिनीका अपहरण कर तिब्बत ले गया।*
जिसे चन्द्रगुप्त द्वितीय नें रानी के लिए आवश्यक वस्त्र, श्रंगार और दासियों को भेजने के नाम पर सैनिकों के साथ पालकियों में सवार होकर शकराज के रनिवास में पहूँच कर पहरेदारों को मारकर वहाँ से ध्रुव स्वामिनी को वापस लाये। और बाद में चन्द्रगुप्त द्वितीय नें ध्रुव स्वामिनी से विवाह किया।
*भृतुहरि-पिङ्गला- अश्वपाल और विक्रमसेन की घटनाओं में साम्य होने से और चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा उज्जैन को राजधानी बनाने के कारण अंग्रेज- मुस्लिम और वामपन्थी इतिहासकारों ने भारत के गौरव सम्राट विक्रमादित्य और भारतीय इतिहास के स्वर्णयुग के सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय को बड़ी सफाई से एक ही व्यक्ति घोषित कर दिया।*
*जबकि टर्की (तुर्किये) में विक्रमादित्य के शासन की प्रशंसा में मे शिलालेख मिलना और उसका काल विक्रमादित्य से मैल खाना विक्रमादित्य के इतिहास को प्रमाणित करता है।*
शक और कुषाण और हूण कौन थे?
*शक और कुषाण उत्तर कुरु/ ब्रह्मावर्त अर्थात तिब्बत के तरीम बेसिन और टकला मकान क्षेत्र में शिंजियांग उइगुर प्रान्त (चीनी तुर्किस्तान) में गांसु प्रदेश में जिउक्वान शहर क्षेत्र में डुहुआंग नगर, उत्तर अक्षांश 40 ° 08″32" N और पुर्व देशान्तर 94 ° 39 '43" E पर स्थित डुहुआंग नगर, (डुनहुआंग नगरपालिका क्षेत्र) के मूल निवासी थे।*
हूण भी इसी क्षेत्र के उत्तर में मङ्गोलिया से लगे श्रेत्र के निवासी थे।
इसलिए वर्तमान में लोग इन्हें विदेशी कहते हैं।
"पुराणों अनुसार *शक जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है। राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित किया था। वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण वे म्लेच्छ हो गए थे। उन्हीं के वंशज शक कहलाए।* महाभारत में भी शकों का उल्लेख है। शक साम्राज्य से संबंधित मथुरा के राजकीय संग्रहालय में मूर्ती, स्तंभ, सिंह शीर्ष स्तंभ, मुद्रा आदि कई वस्तुएं रखी हुई है। गार्गी संहिता, बाणभट्ट कृत हर्षचरित में भी शकों का उल्लेख मिलता है।
कुषाण -- मथुरा के इतिहासकार मानते हैं कि वे *शिव के उपासक और कुष्मांडा जाति के थे। इस जाति के लोग प्राचीन काल में भारत से बाहर जाकर बस गए थे और जब वे शक्तिशाली बन गए तो उन्होंने भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गुर्जर इतिहासकार उसे गुर्जर मानते हैं।*
कुछ लोग पाटिदारों को भी कुषाण मानते हैं। पर पाटिदार नहीं मानते।
हूण --- *हुंडिया एक यक्ष था। उस काल में यक्षों का मूल स्थान तिब्बत और मंगोल के बीच का स्थान था। कुबेर वहीं के राजा थे।कई ऐसे यक्ष थे, जो चमत्कारिक थे। उस काल में भी नास्तिक श्रमण लोगों में यक्षों-यक्षिणिनियों की लोकपूजा भी होती थी। और आज भी जैन पन्थ में यक्ष पूजा होती है।यह वेद विरुद्धकर्म है।*
यक्ष उपासक जैन लोग हुंडिय को महावीर स्वामी के पहले के अर्थात पार्श्वनाथ आदि की परम्परा के अनुयाई मानते हैं।
इतिहासकार ऐसा लिखते हैं कि, उक्त जातियों का राजपूतो की अलग-अलग जातियों से वैवाहिक सम्बन्ध होते थे। जैसे हूणों के वैवाहिक सम्बन्ध गुहिलोत और राठोड़ सूर्यवंशी राजपुतों से होते थे।
कृपया देखें - राजस्थानी ग्रन्थागार प्रकाशन जोधपुर से प्रकाशित श्री ठाकुर बहादुर सिंह बिदासर रचित *क्षत्रिय जाति की सुची* पुस्तक का *पृष्ठ क्रमांक 159,*
विक्रम संवत और शकाब्द ।
*विक्रम संवत लागू होनें के १३५ वर्ष बाद विक्रम संवत १३६ में आन्ध्र प्रदेश के सातवाहन वंशीय गोतमीपुत्र सातकर्णी नें अपने राज्यारोहण या मतान्तर से नासिक क्षेत्र महाराष्ट्र के पेठण विजय के अवसर पर अपने राज्य क्षेत्र महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलङ्गाना, और मध्य भारत में निरयन सौर मासों से सम्बद्ध चान्द्र संवत शालिवाहन शकाब्द आरम्भ किया।*
*लगभग इसी समय वर्तमान पाकिस्तान के पञ्जाब प्रान्त के पैशावर के कुशाण वंशीय क्षत्रप कनिष्क नें मथुरा विजय के उपलक्ष्य में मथुरा और उत्तर भारत में निरयन सौर मासों से सम्बद्ध चान्द्र संवत शकाब्द लागू किया।*
*वर्तमान में यह भ्रम प्रचलित है कि, विक्रम संवत भी शुद्ध निरयन सौर वर्ष न होकर आरम्भ से निरयन सौर मासों पर आधारित चान्द्र वर्ष ही था।* यदि यह कथन सही माना जाए तो प्रश्न खड़ा होता है कि,
*निरयन सौर विक्रम संवत लागू होने के केवल १३५ वर्ष बाद ही शक संवत में निरयन सौर मासों पर आधारित चान्द्र मास वाली यह नवीन प्रणाली लागू करने के लिए शक संवत आरम्भ करने की क्या आवश्यकता थी?*
*विक्रमादित्य के पूर्वजों के क्षेत्र पञ्जाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में आज तक विक्रम संवत निरयन सौर मास और गते क्यों प्रचलित रहते?*
*कुछ लोग गुजरात के कार्तिकादि संवत को विक्रम संवत मानते हैं। यह भी उचित नहीं है। क्योंकि यह केवल गुजरात में ही सीमित है।*
* केवल, सातवाहन और कुशाणों के बहुत बड़े राज्यक्षेत्र में निरयन सौर मास पर आधारित चान्द्र वर्ष वाला शकाब्द पञ्चाङ्ग प्रचलित है और, शेष भारत में अर्थात पञ्चाङ्ग, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, बङ्गाल,उड़िसा, असम आदि सेवन सिस्टर्स प्रदेश, तमिलनाडु, केरल आदि प्रदेशों में निरयन सौर मासों और गते या गतांश ही प्रचलित है।*
*केवल पौराणिकों नें विक्रम संवत को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होना बतलाया जिसका अनुकरण सिद्धान्त ग्रन्थों में भी हुआ। लेकिन सिद्धान्त ग्रन्थों में गणना का आधार सदैव शकाब्द ही लिया है। और सिद्धान्त ग्रन्थों नें ही निरयन सौर मास आधारित चैत्र वैशाख वाला शकाब्द लागू किया।*
गुप्त संवत का आरम्भ चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त प्रकाल नाम से 319 ई. में किया था। किन्तु यह वर्तमान में अप्रचलित है। किन्तु गुप्तकालीन दस्तावेजों में गुप्त प्रकाल का उल्लेख मिलता है।
अब आप बतलाइएगा कि, विक्रम संवत को किस आधार पर सौरचान्द्र वर्ष कहा जा सकता है? और शकाब्द को सौर वर्ष गणना आधारित कैसे कहा जा सकता है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें