वहीँ संज्ञा, क्रिया, विशेषण, क्रिया विशेषण सब दिखेंगे, बच्चों को पहले उन्हें दिखाकर समझाओ,बच्चा पूछे तो भी बतलाओ।
इस ढंग से भाषा, गणित, भुगोल, भौतिकी, रसायन जैसे सभी विषयों को प्रत्यक्ष दिखाओ, करने दो और करवाओ। इस प्रकार उसकी रुचि देखी- समझी और कौशल देखा-परखा जाए। और उसके योग्य क्षेत्र में ही उसे शिक्षित और प्रशिक्षित किया जाए।
जितना विकास करता जाए, करने दो। स्वरोजगार से धनार्जन भी कर लेगा और अपनी रुचि और कौशल के अनुसार व्यवसाय भी खड़ा कर लेगा।
कृषि-बागवानी हो, निर्माण प्रकल्प हो, उद्योग हो सभी परस्पर पूरक योग्यता वाले लोग मिलकर सामुदायिक रूप से सहकारिता के साथ स्थापित कर संचालित करें। कोई नोकर नहीं कोई मालिक नहीं। सभी समान साझेदार होंगे।
यही सब गुरुकुल में होता था। ब्रह्मचारी और शुद्र सेवा करते-करते ही सीख जाता था।
चाहे गोपालन / गयें चराने जाना हो या खेत की मेढ़ बान्धकर पानी रोकना हो या आश्रम की साफ सफाई, रसोई बनाना हो, बर्तन मार्जन हो चाहे गुरु के वस्त्र प्रक्षालन हो इन सेवाओं से बड़े बड़े ज्ञानी हुए हैं।
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