*शक और कुषाण उत्तर कुरु/ ब्रह्मावर्त अर्थात तिब्बत के तरीम बेसिन और टकला मकान क्षेत्र में शिंजियांग उइगुर प्रान्त (चीनी तुर्किस्तान) में गांसु प्रदेश में जिउक्वान शहर क्षेत्र में डुहुआंग नगर, उत्तर अक्षांश 40 ° 08″32" N और पुर्व देशान्तर 94 ° 39 '43" E पर स्थित डुहुआंग नगर, (डुनहुआंग नगरपालिका क्षेत्र) के मूल निवासी थे।*
हूण भी इसी क्षेत्र के उत्तर में मङ्गोलिया से लगे श्रेत्र के निवासी थे।
इसलिए वर्तमान में लोग इन्हें विदेशी कहते हैं।
"पुराणों अनुसार *शक जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है। राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित किया था। वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण वे म्लेच्छ हो गए थे। उन्हीं के वंशज शक कहलाए।* महाभारत में भी शकों का उल्लेख है। शक साम्राज्य से संबंधित मथुरा के राजकीय संग्रहालय में मूर्ती, स्तंभ, सिंह शीर्ष स्तंभ, मुद्रा आदि कई वस्तुएं रखी हुई है। गार्गी संहिता, बाणभट्ट कृत हर्षचरित में भी शकों का उल्लेख मिलता है।
कुषाण -- मथुरा के इतिहासकार मानते हैं कि वे *शिव के उपासक और कुष्मांडा जाति के थे। इस जाति के लोग प्राचीन काल में भारत से बाहर जाकर बस गए थे और जब वे शक्तिशाली बन गए तो उन्होंने भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गुर्जर इतिहासकार उसे गुर्जर मानते हैं।*
कुछ लोग पाटिदारों को भी कुषाण मानते हैं। पर पाटिदार नहीं मानते।
हूण --- *हुंडिया एक यक्ष था। उस काल में यक्षों का मूल स्थान तिब्बत और मंगोल के बीच का स्थान था। कुबेर वहीं का राजा था।कई ऐसे यक्ष थे, जो चमत्कारिक थे। उस काल में यक्षों-यक्षिणिनियों की लोकपूजा भी होती थी। यह वेद विरुद्धकर्म था।*
यक्ष उपासक जैन लोग हुंडिय को महावीर स्वामी के पहले के जैन परम्परा के अनुयाई मानते हैं।
इतिहासकार ऐसा लिखते हैं कि, उक्त जातियों का राजपूतो की अलग-अलग जातियों से वैवाहिक सम्बन्ध होते थे। जैसे हूणों के वैवाहिक सम्बन्ध गुहिलोत और राठोड़ सूर्यवंशी राजपुतों से होते थे।
कृपया देखें - राजस्थानी ग्रन्थागार प्रकाशन जोधपुर से प्रकाशित श्री ठाकुर बहादुर सिंह बिदासर रचित *क्षत्रिय जाति की सुची* पुस्तक का *पृष्ठ क्रमांक 159,*
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