बुधवार, 29 मई 2024

आचार्य बादरायण रचित उत्तर मीमांसा दर्शन को ब्रह्मसूत्र और बादरायण को वेदव्यास कैसे माना जाने लगा।

 वेद मन्त्रों को ब्रह्म और उपनिषद के मन्त्रों को ब्रह्म सूत्र कहते हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन में उपनिषदों के मन्त्रों की ही व्याख्या की गई है इसलिए उपनिषद और श्रीमद्भगवद्गीता में कई श्लोक तो उपनिषदों के ही हैं और कई श्लोक उपनिषद के मन्त्रों की व्याख्या है। इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता को उपनिषद का सार कहते हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन को भी प्रस्थानत्रयी में स्थान देकर श्रीमद्भगवद्गीता को उपनिषद और उत्तर मीमांसा दर्शन को भी ब्रह्म सूत्र कहने लगे।

आचार्य जैमिनी श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास अर्थात वेदव्यास जी के शिष्य थे। वेदव्यास जी ने जैमिनी को सामवेद की शिक्षा दी थी। महाभारत में प्रथक से जैमीनीयाश्वमेधपर्व है। 
आचार्य जैमिनी ने भी पूर्व मीमांसा दर्शन में आचार्य बादरी और आचार्य बादरायण का उल्लेख किया है।  आचार्य बादरायण के मत का खण्डन भी किया है। आचार्य जैमिनी अपने गुरु को बादरायण क्यों कहते? साथ ही जैमिनी ने अपने गुरु के मत का खण्डन क्यों करते ?

चूंकि आचार्य जैमिनी ने भी पूर्व मीमांसा दर्शन में आचार्य बादरी और आचार्य बादरायण के मत का उल्लेख और खण्डन किया है और आचार्य बादरायण ने उत्तर मीमांसा दर्शन में आचार्य जैमिनी के मत का खण्डन किया है अतः आचार्य जैमिनी और आचार्य बादरायण दोनों समकालीन सिद्ध हुए।
आचार्य बादरायण ने उत्तर मीमांसा दर्शन मे ही  श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों को स्मृतिच लिखकर सन्दर्भित किया है। इसलिए निश्चित तौर पर महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता के बाद का ग्रन्थ है।
यहाँ तक कि, उत्तर मीमांसा दर्शन में विष्णु पुराण आदि पुराणों के वाक्य भी सन्दर्भित किये हैं। बौद्ध परम्परा - शुन्यवाद और विज्ञानवाद तथा जैन परम्परा के सिद्धान्तों का भी खण्डन किया गया है। इससे प्रमाणित होता है कि, श्रीकृष्ण के चचेरे भाई अरिष्टनेमि का नेमीनाथ के रूप में सन्यस्त होकर अपना मत प्रचलित करने के भी बहुत बाद उनके मत के व्यापक प्रचार-प्रसार हो जाने के भी बाद उत्तर मीमांसा दर्शन रचा गया।

उत्तर मीमांसा दर्शन के भाष्यकार आचार्य वाचस्पति मिश्र ने आचार्य बादरायण को व्यास की उपाधि से विभूषित किया। इससे आचार्य बादरायण को वेदव्यास समझा जाने लगा।
उत्तर मीमांसा दर्शन का नाम ब्रह्म सूत्र तो भाष्यकारों का दिया हुआ है। वैसे ही शारीरिक सूत्र, भिक्षु सूत्र आदि नाम भी बाद के ही हैं।
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा शब्द से ब्रह्म सूत्र नाम पड़ा। जो वैद मन्त्रों में प्रथम पद में जिस देवता का नाम आता है उस मन्त्र उस देवता को ही उस मन्त्र का देवता मानने की परिपाटी है। इसी परिपाटी में अथातो ब्रह्म जिज्ञासा वाक्य के आधार पर उत्तर मीमांसा दर्शन को ब्रह्म सूत्र कहा गया।
 बौद्ध परम्परा के बाद देह के अन्तर्वर्ती तत्वों के विवेचन को अध्यात्म कहा जाने लगा। उत्तर मीमांसा दर्शन अध्यात्म विषयक होने से शारीरिक सूत्र नाम पड़ा।
विज्ञान भिक्षु द्वारा भाष्य होने के कारण भिक्षु सूत्र नाम पड़ा।

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