रविवार, 2 जून 2024

स्मार्त और वैष्णव एकादशी व्रत।

वैदिक परम्परा के बाद स्मृतियों के आधार पर गुरुकलों में प्रचलित नियमों को स्मृति के रूप में प्रस्तुत किया गया। जिनमें देश-काल के अनुसार कुछ अन्तर है लेकिन बहुत अधिक मतान्तर नही है।
लेकिन पुराणों में बहुत मतभेद हैं।
फिर मठों और सम्प्रदायों नें मनमानी करने के लिए आगम ग्रन्थ रच लिए। उसके कारण वैष्णव -शैव-शाक्त- गाणपत्य -सौर सब परस्पर लड़ने -भिड़ने लगे। तो आद्य शंकराचार्य जी ने पञ्चदेवोपासन पद्यति लागू कर समझोता करवाया।
फिर रामानन्दाचार्य नें वैष्णव- शैव झगड़े मिटाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
*स्मार्त वैष्णव/ भागवत कौन?*
 *जिन्होंनेश्री निम्बार्काचार्य जी, श्री रामानुजाचार्य जी, श्री माध्वाचार्य जी, श्री वल्लभाचार्य जी, श्रीकृष्ण चेतन्य महाप्रभु जी, स्वामीनारायण सम्प्रदाय या रामानन्द सम्प्रदाय के आचार्यों से दीक्षा लेकर भूजा पर शंख चक्र अंकित करवाया है वे ही भागवत या परम भागवत द्वादशी तिथि में एकादशी का व्रत करते हैं।*
 *शेष सभी स्मार्त ही हैं और स्मार्त एकादशी व्रत अर्थात पहली एकादशी करके द्वादशी में व्रत का पारण (व्रत खोलना) करते हैं।* 
श्रीमन्नारायण, हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, प्रजापति ब्रह्मा, इन्द्र, द्वादश आदित्यगण,अष्ट वसुगण, एकादश रुद्रगण अर्थात विश्वेदेवाः के निमित्त एकादशी व्रत होता है।
नारायण, शंकर ,चण्डी, विनायक/ कार्तिकेय और सूर्य इन पाँचो देवताओं की उपासना करने वाले *स्मार्त* कहलाते हैं। ये स्मार्त *एकादशी व्रत करते हैं* ।
*वैष्णव* जन *द्वादशी* , पूर्णिमा, अमावस्या, श्रवण नक्षत्र और बुधवार को विष्णु के निमित्त व्रत करते हैं। ये प्रदोष व्रत नहीं करते।
 *शैव* जन *प्रदोष व्रत* (काम्यव्रत) और मास शिवरात्रि (कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी) और सोमवार का व्रत करते हैं। *शैव एकादशी व्रत नहीं करते।*

*भागवत जन द्वादशी तिथि में एकादशी तिथि का व्रत करेंगे।*
भागवत धर्म का नियम है कि *दशमी तिथि यदि* ---
*सूर्योदय के बाद* 56 घटि (22 घण्टे 24 मिनट) तक रहे तो *पौराणिक वैष्णव द्वादशी तिथि में एकादशी तिथि का व्रत करते हैं।* 
सूर्योदय के बाद 55 घटि (22 घण्टे) तक रहे तो *रामानुजाचार्य के सम्प्रदाय के वैष्णव द्वादशी तिथि में एकादशी तिथि का व्रत करते हैं।* 
सूर्योदय के बाद 45 घटि (18 घण्टे) तक रहे तो *निम्बार्काचार्य जी के सम्प्रदाय के वैष्णव द्वादशी तिथि में एकादशी तिथि का व्रत करते हैं।* 

*एकादशी तिथि प्रारम्भ होने के समय सूर्य से चन्द्रमा की अंशात्मक दूरी 300° होती है और एकादशी तिथि समाप्ति के समय सूर्य से चन्द्रमा की अंशात्मक दूरी 312° हो जाती है। जिसे किसी भी वेधशाला में देखा जा सकता है।* 
एकादशी तिथि में व्रत करनें वालों को द्वादशी में पारण करना पड़ता है। अन्यथा व्रत भङ्ग माना जाता है।
चूंकि, भागवत सम्प्रदाय में द्वादशी तिथि का व्रत करना होता है। इसलिए भागवत सम्प्रदाय के लोग एकादशी व्रत नहीं करते।
लेकिन शास्त्रों में एकादशी व्रत नित्य व्रत बतलाया है अर्थात करना आवश्यक बतलाया है अतः इस झूठ का सहारा लिया जाता है और थोथा तर्क दिया जाता है कि, दशमी विद्धा एकादशी व्रत करने के परिणामस्वरूप गान्धारी के सौ पुत्रों का नाश हो गया। दुर्योधन, दुशासन आदि कौरव परम अधर्मी थे। इन लोगों का वंश नाश इनके दुष्कर्मों के कारण हुआ यह सर्वविदित है।  
*भागवत जनों को जब द्वादशी तिथि का व्रत करना है तो एकादशी के नाम से व्रत करने का झूठ क्यों बोलना। सीधे- सीधे सच बोलना चाहिए कि, द्वादशी तिथि के स्वामी विष्णु हैं अतः हमारे सम्प्रदाय में हम द्वादशी तिथि का व्रत करते हैं। चूंकि एकादशी तिथि के व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करना चाहिए और हमें द्वादशी तिथि में ही व्रत रखना होता है इसलिए एकादशी तिथि का व्रत नहीं करते। बल्कि द्वादशी तिथि का व्रत करते हैं।*
अन्यथा द्वादशी तिथि में एकादशी के नाम से व्रत क्यों करते हैं?
ऐसे लोग सोमवार का व्रत मंगलवार को क्यों नहीं करते ?

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