बुधवार, 31 जनवरी 2024

वाल्मीकी रामायण उत्तर काण्ड शम्बुक वध को छोड़कर जाति-प्रथा की उँच-नीच नहीं मिलता। शम्बुक वध का कारण भी तान्त्रिक साधना और तामसी तप होना भी सम्भव है।महाभारत में भी उँच-नीच नहीं दिखती है। परशुराम जी ने गङ्गा पुत्र और वसु अंश मानकर भीष्म को धनुर्वेद की शिक्षा देने के बाद में संकल्प ले लिया कि, केवल विप्र वर्ण के बालकों को ही धनुर्वेद शिक्षा दूँगा। ताकि, चन्द्र वंशियों के अनाचार से समाज सुरक्षित रहे।और द्रोणाचार्य राज्य कर्मचारी होने के नाते अपने और राज परिवार के अतिरिक्त अन्य को धनुर्वेद शिक्षा नहीं दे सकते थे। इसलिए उन्होंने कर्ण और एकलव्य को शिक्षा नहीं दी।लेकिन इसके पीछे कोई जाति-प्रथा नहीं थी। यह केवल दुष्प्रचार मात्र है।सिकन्दर, शक-हूण और पारसी आक्रमण के बाद पञ्चम वर्ण अस्तित्व में आया जिसने म्लेच्छों की सेवा स्वीकार कर ली।

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