दो सूर्योदय के बीच की अवधि वासर या वार कहलाती है।
वार सूर्योदय से सूर्योदय तक चलते हैं। अतः वार सूर्योदय से बदलता है। रात बारह बजे Day & Date बदलते हैं वार नहीं।
वैदिक काल में पारिश्रमिक वितरण हेतु दशाह चलता था। लेकिन सप्ताह शब्द भी मिलता है।
वैदिक काल में ग्रहों के नाम वाले वार प्रचलित नहीं थे।
ग्रहों का कक्षाक्रम निम्नानुसार है।---
0 सूर्य, 1 बुध, 2 शुक्र, 3 भूमि (प्रकारान्तर से सूर्य), 4 मङ्गल, 5 गुरु ब्रहस्पति, 6 शनि, 7 युरेनस (हर्षल), 8 नेपच्यून।
तदनुसार
रविवार को चौबीस घण्टों के होरा बनते हैं।
01 रवि, 02 शुक्र, 03 बुध, 04 सोम, 05 शनि, 06 गुरु ब्रहस्पति, 07 मङ्गल, 08 रवि, 09 शुक्र, 10 बुध, 11 सोम, 12 शनि, 13 गुरु ब्रहस्पति, 14 मङ्गल 15 रवि, 16 शुक्र, 17 बुध, 18 सोम, 19 शनि, 20 गुरु ब्रहस्पति, 21 मङ्गल, 22 रवि, 23 शुक्र 24 बुध और अगला रहेगा सोम का होरा। यही सोम का होरा सोमवार का पहला होरा रहेगा। अतः अगला वार सोमवार रखा गया।
ऐसे ही सोमवार को चौबीसवाँ होरा गुरु ब्रहस्पति का रहेगा। अतः उसका अगला होरा मंगल का रहेगा इसलिए अगला वार मंगलवार माना गया। ताकि, मंगलवार को पहला होरा मंगल का ही पड़े।
यह वारो के क्रम का रहस्य है।
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