मंगलवार, 2 जनवरी 2024

अधिक मास, क्षय मास, सायन सौर,निरयन सौर चान्द्र वर्ष और मास तथा ग्रहण आवृत्ति।

*जिन दो संक्रान्तियों के बीच दो अमावस्या हो अथवा यह कहें कि, दो अमावस्या के बीच कोई संक्रान्ति नही पड़े तो वह चान्द्रमास अधिकमास कहलाता है।*
 और *उसका अगला मास शुद्ध मास कहलाता है।* 

इसके ठीक विपरीत क्षय मास होता है।
*जिन दो अमावस्या के बीच दो संक्रान्तियाँ हो अथवा यह कहें कि, दो संक्रान्तियों के बीच कोई अमावस्या नही पड़े तो वह चान्द्रमास क्षयमास कहलाता है।*
सभी जानते हैं कि, 
सायन सौर मास ३०.४३६८४९१७ दिन का होता है। और 
नाक्षत्रीय सौर मास (या निरयन सौर मास ) ३०.४३८०३०२५ दिन का होता है। जबकि,
औसत चान्द्रमास २९.५३०५८९ दिन का होता है।
अर्थात सौर मास चान्द्रमास से बड़ा होता है।  
ऐसे ही औसत सायन सौर वर्ष ३६५.२४२१९ दिन का होता है। एवम्
नाक्षत्रीय सौर वर्ष (या निरयन सौर वर्ष) ३६५.२५६३६३ दिन का होता है। जबकि
औसत शुद्ध चान्द्र वर्ष ३५४.३६७०६८ दिन का होता है। अर्थात शुद्ध चान्द्रवर्ष सौर वर्ष से लगभग ग्यारह दिन छोटा होता है। इसी कारण प्रत्येक तीसरे वर्ष २८ माह से ३२ माह १५ दिन के बाद एक चान्द्रमास अधिक होता है । परिणाम स्वरूप अधिक मास वाला औसत चान्द्रवर्ष ३८३. ८९७६५७ दिन का होता है।फिर भी 
क्रमशः १९ वर्ष में उसके बाद १२२ वर्ष में और उसके बाद १४१ वर्ष में क्षय मास होता है। इससे पुनः सौर वर्ष और चान्द्रवर्ष में एक रूपता बनी रहती है।
वर्तमान मन्दोच्च सायन १०३°१७'५६" पर है। अर्थात सायन कर्क १३°१७'५६" पर होने की स्थिति के कारण शचि मास सबसे बड़ा और सहस्य मास सबसे छोटा होता है।
ऐसे ही नाक्षत्रीय/ निरयन गणनानुसार मन्दोच्च निरयन ७९°०८'४९" पर अर्थात मिथुन १९°०८'४९" पर चल रहा है। इस कारण निरयन मिथुन मास सबसे बड़ा और निरयन धनु मास सबसे छोटा होता है।
इस कारण वर्तमान में अधिकांशतः फाल्गुन और चैत्र से कार्तिक मास तक के माह ही अधिक होते हैं।
मार्गशीर्ष मास कभी कभार ही क्षय होता है।पौष और माघ मास कभी क्षय नही होता, शेष कोई भी मास क्षय होता है।
प्रत्येक क्षय मास के पहले वाला माह और क्षय मास के बाद वाला माह अधिक होता है। कभी कभी एक माह पहले या बाद में अधिक मास पड़ता है। इस प्रकार हर क्षय वर्ष में संवत्सर में तेरह महीने होते हैं। अर्थात क्षय मास वाला वर्ष भी अधिक मास वाले वर्ष के समान ही ३८३. ८९७६५७ दिन का होता है।
*संसर्प मास एवं अहंस्पति मास ---*
*जिस वर्ष क्षय मास हो, उस वर्ष 2 अधिमास अवश्य होते हैं- प्रथम क्षय मास से पूर्व तथा द्वितीय क्षय मासोपरांत। क्षय मास के पूर्व आने वाले अधिक मास को संसर्प मास कहते हैं। संसर्प मास में मुंडन, व्रतबंध (जनेऊ), विवाह, अग्न्याधान, यज्ञोत्सव एवं राज्याभिषेकादि वर्जित हैं। अन्य पूजा आदि कार्यों के लिए यह स्वीकार्य है। क्षय मास के अनंतर पड़ने वाले अधिक मास को अहंस्पति मास कहते हैं।"*
*क्षय मास के पहले वाला संसर्प मास को भी पूजा-पाठ आदि में शुद्ध मास जैसा ही मानते हैं। जैसे 
*शकाब्द १९०४ ( अर्थात १९८२ ईस्वी) में १७ सितम्बर १९८२ शुक्रवार को १७:३९ बजे (अपराह्न ०५:३९ बजे) से १६ उपरान्त १७ अक्टूबर १९८२ शनिवार (Sunday) को पूर्वाह्न ०५:३४ बजे उत्तररात्रि तक अधिक (आश्विन) मास संसर्प मास माना गया। जिसकी नवरात्र और दीपावली आदि की पूजा मान्य रही।* 
फिर १६ उपरान्त १७ अक्टूबर १९८२ शनिवार (Sunday) को पूर्वाह्न ०५:३४ बजे उत्तररात्रि से १५ नवम्बर १९८२ सोमवार को २०:४० बजे (अपराह्न ०८:४० रात्रि) तक शुद्ध आश्विन मास रहा।
 *१४ जनवरी १९८३ शुक्रवार को पूर्वाह्न १०:३८ से १२ उपरान्त १३ फरवरी १९८३ शनिवार (Sunday) को पूर्वाह्न ०६:०२ बजे तक पौष मास क्षयमास था। इसे ही माघ मास माना गया।* 
 *फिर १३ फ़रवरी १९८३ शनिवार (Sunday) को पूर्वाह्न ०६:०२ से १४ मार्च १९८३ सोमवार को २३:१३ बजे (अपराह्न ११:१३ बजे रात्रि) तक अधिक फाल्गुन मास अहंस्पति मास माना गया।* फिर 
१४ मार्च १९८३ सोमवार को २३:१३ बजे (अपराह्न ११:१३ बजे रात्रि) से १३ अप्रेल १९८३ बुधवार को १३:२८ बजे तक (अपराह्न ०१:२८ दोपहर) तक शुद्ध फाल्गुन मास रहा।* 

*शकाब्द १८८५ ( अर्थात १९६३ ई.) में १४१ वर्ष बाद वाला क्षय मास पड़ा था। फिर शकाब्द १९०४ (अर्थात १९८३ ईस्वी) में १९ वर्ष बाद क्षय मास पड़ा था। अब शके २०२६ में अर्थात २१०४ ईस्वी में १२२ वर्ष वाला क्षय मास पड़ेगा।*

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