प्रत्येक तिथि औसत 23 घण्टे 37 मिनट 28.09 सेकण्ड की होती है जो कम से कम 19 घण्टे 59 मिनट से लेकर अधिकतम 26 घण्टे 47 मिनट तक की हो सकती है । अर्थात सप्त वृद्धि दश क्षय का सिद्धान्त ही सही है (अर्थात कोई भी तिथि सात घड़ी तक बढ़ सकती है और दस घड़ी तक घट सकती है यह सिद्धान्त ही सही है), न कि, बाण वृद्धि रस क्षय (पाँच घटि वृद्धि और छः घटि क्षय होने) का सिद्धान्त। उल्लेखनीय है कि किसी भी पञ्चाङ्ग शोधन समिति में कोई भी विद्वान बाण वृद्धि रस क्षय का का प्रमाण नही दे पाया। फिर भी इसी को आधार बनाकर उज्जैन के महाकाल पञ्चाङ्ग और जबलपुरी लालाओं के केलेण्डर पञ्चाङ्ग धड़ल्ले से बिक रहे हैं।
एक तिथि मतलब सूर्य और चन्द्रमा में 12° का अन्तर। तदनुसार
कृष्ण पक्ष की अमावस्या का अर्थ है सूर्य से 348 से 360° (या 000°) तक चन्द्रमा आगे होना।ऐसे ही
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का अर्थ है; सूर्य से चन्द्रमा 00°00' से 12°00' का आगे होना।
शुक्ल पक्ष की द्वितीया का अर्थ है सूर्य से 12° से 24° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की तृतीया का अर्थ है सूर्य से 24° से 36° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का अर्थ है सूर्य से 36° से 48° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की पञ्चमी का अर्थ है सूर्य से 48° से 60° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी का अर्थ है सूर्य से 60° से 72° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की सप्तमी का अर्थ है सूर्य से 72° से 84° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की अष्टमी का अर्थ है सूर्य से 84° से 96° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की नवमी का अर्थ है सूर्य से 96° से 108° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की दशमी का अर्थ है सूर्य से 108° से 120° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की एकादशी का अर्थ है सूर्य से 120° से 132° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की द्वादशी का अर्थ है सूर्य से 132° से 144° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी का अर्थ है सूर्य से 144° से 156° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का अर्थ है सूर्य से 156° से 168° तक चन्द्रमा आगे होना।
शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का अर्थ है सूर्य से 168° से 180° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का अर्थ है सूर्य से 180° से 192° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की द्वितीया का अर्थ है सूर्य से 192° से 204° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की तृतीया का अर्थ है सूर्य से 204° से 216° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का अर्थ है सूर्य से 216° से 228° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की पञ्चमी का अर्थ है सूर्य से 228° से 240° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की षष्ठी का अर्थ है सूर्य से 240° से 252° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की सप्तमी का अर्थ है सूर्य से 252° से 264° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की अष्टमी का अर्थ है सूर्य से 264° से 276° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की नवमी का अर्थ है सूर्य से 276° से 288° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की दशमी का अर्थ है सूर्य से 288° से 300° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की एकादशी का अर्थ है सूर्य से 300° से 312° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की द्वादशी का अर्थ है सूर्य से 312° से 324° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का अर्थ है सूर्य से 324° से 336° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का अर्थ है सूर्य से 336° से 348° तक चन्द्रमा आगे होना।
कृष्ण पक्ष की अमावस्या का अर्थ है सूर्य से 348 से 360° तक चन्द्रमा आगे होना।
यह अन्तर कलकत्ता, दिल्ली, या उज्जैन स्थित भारत शासन की वैधशाला में जाकर वैध लेकर देखे जा सकते हैं। इसलिए तिथि निर्धारण कोई विवाद का विषय नहीं है।
फिर भी भारत में भारत शासन की पञ्चाङ्गों, बङ्गाल शासन की पञ्चाङ्ग, उज्जैन वैधशाला की पञ्चाङ्ग, लाहिरी की इण्डियन इफेमेरीज के अलावा केतकी ज्योतिर्गणितम, केतकी ग्रह गणितम् और केतकी वैजयन्ती ग्रन्थों पर आधारित पञ्चाङ्गों में ही सही तिथियाँ मिलती है।
लेकिन लोग गलत पञ्चाङ्ग केलेण्डर खरीदकर अपने व्रत-पर्व-उत्सव और त्योहार गलत तिथियों में मनाते हैं, तो बढ़ा आश्चर्य मिश्रित दुःख होता है।
करण
तिथि के अर्धभाग को करण कहते हैं। करण निम्नानुसार होते हैं।
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी पूर्वार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी उत्तरार्ध में शकुनि करण।
कृष्ण पक्ष अमावस्या पूर्वार्ध में चतुष्पाद करण।
कृष्ण पक्ष अमावस्या उत्तरार्ध में नाग करण।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पूर्वार्ध में किंस्तुघ्न करण।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा उत्तरार्ध में बव करण।
शुक्ल पक्ष द्वितीया पूर्वार्ध में बालव करण।
शुक्ल पक्ष द्वितीया उत्तरार्ध में कौलव करण।
शुक्ल पक्ष तृतीया पूर्वार्ध में तैतिल करण।
शुक्ल पक्ष तृतीया उत्तरार्ध में गर करण।
शुक्ल पक्ष चतुर्थी पूर्वार्ध में वणिज करण।
शुक्ल पक्ष चतुर्थी उत्तरार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
शुक्ल पक्ष पञ्चमी पूर्वार्ध में बव करण।
शुक्ल पक्ष पञ्चमी उत्तरार्ध में बालव करण।
शुक्ल पक्ष षष्ठी पूर्वार्ध में कौलव करण।
शुक्ल पक्ष षष्ठी उत्तरार्ध में तैतिल करण।
शुक्ल पक्ष सप्तमी पूर्वार्ध में गर करण।
शुक्ल पक्ष सप्तमी उत्तरार्ध में वणिज करण।
शुक्ल पक्ष अष्टमी पूर्वार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
शुक्ल पक्ष अष्टमी उत्तरार्ध में बव करण।
शुक्ल पक्ष नवमी पूर्वार्ध में बालव करण।
शुक्ल पक्ष नवमी उत्तरार्ध में कौलव करण।
शुक्ल पक्ष दशमी पूर्वार्ध में तैतिल करण।
शुक्ल पक्ष दशमी उत्तरार्ध में गर करण।
शुक्ल पक्ष एकादशी पूर्वार्ध में वणिज करण।
शुक्ल पक्ष एकादशी उत्तरार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
शुक्ल पक्ष द्वादशी पूर्वार्ध में बव करण।
शुक्ल पक्ष द्वादशी उत्तरार्ध में बालव करण।
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी पूर्वार्ध में कौलव करण।
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी उत्तरार्ध में तैतिल करण।
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी पूर्वार्ध में गर करण।
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी उत्तरार्ध में वणिज करण।
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा पूर्वार्ध में विष्टि (भद्रा) करण
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा उत्तरार्ध में बव करण।
कृष्ण पक्ष प्रतिपदा पूर्वार्ध में बालव करण।
कृष्ण पक्ष प्रतिपदा उत्तरार्ध में कौलव करण।
कृष्ण पक्ष द्वितीया पूर्वार्ध में तैतिल करण।
कृष्ण पक्ष द्वितीया उत्तरार्ध में गर करण।
कृष्ण पक्ष तृतीया पूर्वार्ध में वणिज करण।
कृष्ण पक्ष तृतीया उत्तरार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
कृष्ण पक्ष चतुर्थी पूर्वार्ध में बव करण।
कृष्ण पक्ष चतुर्थी उत्तरार्ध में बालव करण।
कृष्ण पक्ष पञ्चमी पूर्वार्ध में कौलव करण।
कृष्ण पक्ष पञ्चमी उत्तरार्ध में तैतिल करण।
कृष्ण पक्ष षष्ठी पूर्वार्ध में गर करण।
कृष्ण पक्ष षष्ठी उत्तरार्ध में वणिज करण।
कृष्ण पक्ष सप्तमी पूर्वार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
कृष्ण पक्ष सप्तमी उत्तरार्ध में बव करण।
कृष्ण पक्ष अष्टमी पूर्वार्ध में बालव करण।
कृष्ण पक्ष अष्टमी उत्तरार्ध में कौलव करण।
कृष्ण पक्ष नवमी पूर्वार्ध में तैतिल करण।
कृष्ण पक्ष नवमी उत्तरार्ध में गर करण।
कृष्ण पक्ष दशमी पूर्वार्ध में वणिज करण।
कृष्ण पक्ष दशमी उत्तरार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
कृष्ण पक्ष एकादशी पूर्वार्ध में बव करण।
कृष्ण पक्ष एकादशी उत्तरार्ध में बालव करण।
कृष्ण पक्ष द्वादशी पूर्वार्ध में कौलव करण।
कृष्ण पक्ष द्वादशी उत्तरार्ध में तैतिल करण।
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी पूर्वार्ध में गर करण।
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी उत्तरार्ध में वणिज करण।
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी पूर्वार्ध में विष्टि (भद्रा) करण।
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी उत्तरार्ध में शकुनि करण।
कृष्ण पक्ष अमावस्या पूर्वार्ध में चतुष्पाद करण।
कृष्ण पक्ष अमावस्या उत्तरार्ध में नाग करण।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पूर्वार्ध में किंस्तुघ्न करण।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा उत्तरार्ध में बव करण।
चन्द्रमा के नक्षत्र का अर्थ।
वैदिक काल में नक्षत्र का तात्पर्य क्रान्ति वृत के आसपास उत्तर दक्षिण में नौ-नौ अंशों की नक्षत्र पट्टी में एक निश्चित आकृति बनाने वाले तारामण्डल (कांस्टिलेशन Constilation) होता था।
उस समय चित्रा नक्षत्र का केवल एक ही तारा होता था। जिसका भोगांश 00°23'31" होता है। जबकि,
स्वाती नक्षत्र का भोग 20°50'57" था, जबकि धनिष्ठा नक्षत्र का भोग 25°14'08" था; ऐसे ही सभी सत्ताइस नक्षत्रों के भोगांश असमान और अलग अलग थे। न कि, वर्तमान में प्रचलित 13°20'।"
पहले अभिजीत नक्षत्र सहित अट्ठाइस नक्षत्र मान्य थे लेकिन अभिजीत नक्षत्र क्रान्ति वृत के आसपास उत्तर दक्षिण में नौ-नौ अंशों की नक्षत्र पट्टी से दूर हो जाने के कारण अभिजीत नक्षत्र की मान्यता समाप्त करना पड़ी। और अब असमान भोगांश वाले केवल सत्ताइस नक्षत्र माने जाते हैं। लेकिन आधुनिक एस्ट्रोनॉमी में अठासी तारामण्डल (कांस्टिलेशन Constilation) माने जाते हैं। और तेरह आर्याएँ (साइन Sign) माने जाते हैं। जबकि पूर्व में बेबीलोन की बारह राशियाँ (साइन Sign) मानी जाती थी।
वर्तमान भारतीय पञ्चाङ्गों में 13°20' के सत्ताइस नक्षत्र माने जाते हैं। एक चन्द्र नक्षत्र औसत 24 घण्टे 17 मिनट 09.317 सेकण्ड का होता है।
नक्षत्र निम्नानुसार हैं।---
000° से 13°20' तक अश्विनी नक्षत्र। या
00-00°00' से 00-13°20' तक अश्विनी नक्षत्र।
13°20' से 26°40' तक भरणी नक्षत्र। या
00-13°20' से 00-26°40' तक भरणी नक्षत्र।
26°40' से 40°00' तक कृतिका नक्षत्र। या
00-26°40' से 01-10°00' तक कृतिका नक्षत्र।
40°00' से 53°20' तक रोहिणी नक्षत्र। या
01-10°00' से 01-23°20' तक रोहिणी नक्षत्र।
53°20' से 66°40' तक मृगशीर्ष नक्षत्र। या
01-23°20' से 02-06°40' तक मृगशीर्ष नक्षत्र।
66°40' से 80°00' तक आर्द्रा नक्षत्र। या
02-06°40' से 02-20°00' तक आर्द्रा नक्षत्र।
80°00' से 93°20' तक पुनर्वसु नक्षत्र। या
02-20°00' से 03-03°20' तक पुनर्वसु नक्षत्र।
93°20' से 106°40' तक पुष्य नक्षत्र। या
03-03°20'' से 03-16°40' तक पुष्य नक्षत्र।
106°40' से 120°00' तक आश्लेषा नक्षत्र। या
03-16°40' से 04-00°00' तक आश्लेषा नक्षत्र।
120°00' से 133°20' तक मघा नक्षत्र। या
04-00°00' से 04-13°20' तक मघा नक्षत्र।
133°20' से 146°40' तक पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र। या
04-13°20' से 04-26°40' तक पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र।
146°40' से 160°00' तक उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र। या
04-26°40' से 05-10°00' तक उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र।
160°00' से 173°20' तक हस्त नक्षत्र। या
05-10°00' से 05-23°20' तक हस्त नक्षत्र।
173°20' से 186°40' तक चित्रा नक्षत्र। या
05-23°20' से 06-06°40' तक चित्रा नक्षत्र।
186°40' से 200°00' तक स्वाति नक्षत्र। या
06-06°40' से 06-20°00' तक स्वाति नक्षत्र।
200°00' से 213°20' तक विशाखा नक्षत्र। या
06-20°00' से 07-03°20' तक विशाखा नक्षत्र।
213°20' से 226°40' तक अनुराधा नक्षत्र। या
07-03°20' से 07-16°40' तक अनुराधा नक्षत्र।
226°40' से 240°00' तक ज्येष्ठा नक्षत्र। या
07-16°40' से 08-00°00' तक ज्येष्ठा नक्षत्र।
240°00' से 253°20' तक मूल नक्षत्र। या
08-00°00' से 08-13°20' तक मूल नक्षत्र।
253°20' से 266°40' तक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र। या
08-13°20' से 08-26°40' तक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र।
266°40' से 280°00' तक उत्तराषाढा नक्षत्र। या
08-26°40' से 09-10°00' तक उत्तराषाढा नक्षत्र।
280°00' से 293°20' तक श्रवण नक्षत्र। या
09-10°00' से 09-23°20' तक श्रवण नक्षत्र।
293°20' से 306°40' तक धनिष्ठा नक्षत्र। या
09-23°20' से 10-06°40' तक धनिष्ठा नक्षत्र।
306°40' से 320°00' तक शतभिषा नक्षत्र। या
10-06°40' से 10-20°00' तक शतभिषा नक्षत्र।
320°00' से 333°20' तक पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र। या
10-20°00' से 11-03°20' तक पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र।
333°20' से 346°40' तक उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र। या
11-03°20' से 11-16°40' तक उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र।
346°40' से 360°00' तक या000°00' तक रेवती नक्षत्र। या
11-16°40' से 12-00°00' तक या 00-00°00' तक रेवती नक्षत्र।
इसी प्रकार वर्तमान में प्रचलित बारह राशियाँ निम्नलिखित हैं।---
00° से 30° तक मेष राशि।
30° से 60° तक वृष राशि।
60° से 90° तक मिथुन राशि।
90° से 120° तक कर्क राशि।
120° से 150° तक सिंह राशि।
150° से 180° तक कन्या राशि।
180° से 210° तक तुला राशि।
210° से 240° तक वृश्चिक राशि।
240° से 270° तक धनु राशि।
270° से 300° तक मकर राशि।
300° से 330° तक कुम्भ राशि।
330° से 360° तक (या 000° तक) मीन राशि।
जब सूर्य उक्त राशियों में रहता है, उसे निरयन सौर मास कहते हैं। वर्तमान में सूर्य का मन्दोच्च निरयन 2-19°08'37" पर है। अर्थात चित्रा तारे से 180° पर स्थित निरयन मेषादि बिन्दु से 79° 08' 37" पर है। इस कारण तीसरा महिना अर्थात मिथुन मास सबसे बड़ा होता है और धनुर्मास सबसे छोटा होता है।
वार
दो सूर्योदय के बीच की अवधि वासर या वार कहलाती है। इसलिए वार हमेशा सूर्योदय से ही बदलते हैं।
वैदिक काल में पारिश्रमिक वितरण हेतु दशाह चलता था। लेकिन सप्ताह शब्द भी मिलता है।
वैदिक काल में ग्रहों के नाम वाले वार प्रचलित नहीं थे।
ग्रहों का कक्षाक्रम निम्नानुसार है।---
0 सूर्य से, 1 चन्द्रमा, 2 बुध, 3 शुक्र, 4 भूमि (प्रकारान्तर से सूर्य), 5 मङ्गल, 6 गुरु ब्रहस्पति, 7 शनि, 8 युरेनस (हर्षल), 9 नेपच्यून।
इसका उल्टा क्रम है --- 7 शनि, 6 गुरु, 5 मंगल, 4 सूर्य (भूमि), 3 शुक्र, 2 बुध, 1 चन्द्रमा।
तदनुसार
रविवार को चौबीस घण्टों के होरा बनते हैं।
01 रवि, 02 शुक्र, 03 बुध, 04 सोम, 05 शनि, 06 गुरु ब्रहस्पति, 07 मङ्गल, 08 रवि, 09 शुक्र, 10 बुध, 11 सोम, 12 शनि, 13 गुरु ब्रहस्पति, 14 मङ्गल 15 रवि, 16 शुक्र, 17 बुध, 18 सोम, 19 शनि, 20 गुरु ब्रहस्पति, 21 मङ्गल, 22 रवि, 23 शुक्र 24 बुध और अगला रहेगा सोम का होरा। यही सोम का होरा सोमवार का पहला होरा रहेगा। अतः अगला वार सोमवार रखा गया।
ऐसे ही सोमवार को चौबीसवाँ होरा गुरु ब्रहस्पति का रहेगा। अतः उसका अगला होरा मंगल का रहेगा इसलिए अगला वार मंगलवार माना गया। ताकि, मंगलवार को पहला होरा मंगल का ही पड़े।
यह वारो के क्रम का रहस्य है।
योग ---
सायन सूर्य और सायन चन्द्रमा के अंशों का योग (जोड़) जब 180° होता है तब व्यतिपात योग होता है। और सायन सूर्य और सायन चन्द्रमा के अंशों का योग (जोड़) जब 360° या 000° होता है तब वैधृति पात योग होता है।
ये भी राहु और केतु के समान पात हैं।
लेकिन इस आधार पर सूर्य और चन्द्रमा के निरयन भोगांश के योग को सत्ताइस से विभाजित कर सत्ताइस योग बनाते हैं। जिस समय सूर्य और चन्द्रमा के निरयन भोगांश के योग में सत्ताइस का भाग लगने पर नक्षत्रों के भोगांश 13°20' या 26°40' जैसे पूरा भाग लग जाता है वह समय योग का अन्तिम घण्टा-मिनट या घटि-पल होता है और अगले योग का प्रारम्भ का समय होता है।
सत्ताइस योगों के नाम 01 विष्कुम्भ, 02 प्रीति, 03 आयुष्मान, 04 सौभाग्य, 05 शोभन, 06 अतिगण्ड, 07सुकर्मा, 08धृति, 09शूल, 10 गण्ड, 11 वृद्धि, 12 ध्रुव, 13 व्याघात, 14 हर्षण, 15 वज्र, 16 सिद्धि, 17 व्यतिपात, 18 वरियान, 19 परिघ, 20 शिव, 21 सिद्ध, 22 साध्य, 23 शुभ, 24 शुक्ल, 25 ब्रह्म, 26 इन्द्र और 27 वैधृति।
ये यथा नाम तथा फलम् माने जाते हैं। अर्थात जैसा नाम है वैसा ही फल दर्शाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें