धूर्त यूरोपीय लोगों ने ईरान के स्थान पर हमेशा पर्शिया शब्द का उपयोग किया जिसमें ईरान के साथ इराक (असीरिया और बेबीलोन) आ जाता है। और अधिक विस्तार देखें तो सीरिया और पूर्वी टर्की भी आ जाता है। जिससे चन्द्रवंशियों अर्थात आदमियों (खातियों और यादवों) को असली आर्य सिद्ध कर सकें।
चन्द्रवंशियों में एकमात्र अपवाद।
जो सदाचारी थे। जिन्हें वास्तव में आर्य कहा जा सकता है।
लेकिन
हमारे पौराणिकों नें तो श्रीकृष्ण को भी नहीं छोड़ा, उन्हें पक्का हिन्दू अर्थात काला-कलूटा, चोर (चोल), लूटेरा, सेंधमार, लुच्चा- लफंगा, बदमाश, दास- दस्यु (दृविड़), डाकू, बलात्कारी
सिद्ध कर दिया।
यह है तो, थोथा तर्क, लेकिन इस परिकल्पना को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है कि,
जरथ्रुस्त्र से अथर्ववेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ अवेस्ता पर शास्त्रार्थ करने भारत से ईरान गये श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास जी को अवेस्ता के जेन्द भाष्य में श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास जी को कृष्ण वर्णिय देखकर हिन्दू अर्थात काला (कृष्ण) लिखा है।
इससे प्रेरित होकर पारसी शब्द हिन्दू के अर्थ काला-कलूटा, चोर (चोल), लूटेरा, सेंधमार, लुच्चा- लफंगा, बदमाश, दास- दस्यु (दृविड़), डाकू, बलात्कारी जान समझकर पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के चरित्र पर उक्त सभी आरोप लगा कर श्रीकृष्ण चरित्र लिख दिया हो।
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