मंगलवार, 3 सितंबर 2024

निरयन सौर मास आधारित चान्द्र मासों का नामकरण पूर्णिमा के नक्षत्र के आधार पर हुआ था।

चैत्र वैशाख आदि नाक्षत्रीय सौर मास और उनके नाम का सम्बन्ध लगभग पूरी रात्रि भर सम्बन्धित नक्षत्र या उस नक्षत्र के योग तारा के दिखने से है।
मूलतः इन नाक्षत्रीय सौर मास या प्रकारान्तर से निरयन सौर मास के अनुरूप चलने वाले चान्द्रमास 
की पूर्णिमा अमान्त चान्द्रमास के मध्य में पड़ती है, इसलिए स्वाभाविक रूप से उस माह में पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा उस चित्रा, विशाखा आदि नक्षत्र या चित्रा, विशाखा आदि नक्षत्रके योग तारा के साथ ही होगा।

नक्षत्रों के योग ताराओं के निरयन भोग नीचे दिए गए हैं।
*चित्रा 5-29°59'01* 
स्वाति 06-00'22'34"
विशाखा 06-21°13'30"
 *Orionis Centauri 07-00°56"*
ज्येष्ठा 07-15°54'18"
 *मूल 08-00°43'43"* 
पूर्वाषाढ़ 08-10°43'26"
उत्तराषाढ़ 08-18'31'42"
 *श्रवण 09-07°55'20"* 
 *पूर्वा भाद्रपद 10-29°37'40"* 
रेवती 11-21°01'25"
अश्विनी 00-10°06'46"
 *Algol Persei 01-02°18'36"* 
कृतिका 01-06'07'07"
 *मृगशीर्ष 02-00°51'59"* 
 *पुनर्वसु 02-29°20'18"* 
 *Procvon Canis Minoris 03-01°55'29"* 
 *मघा 04-05°52'14"* 
 *उत्तरा फाल्गुनी 04-27°45'31"*

1 चैत्र 
  *चित्रा 5-29°59'01*  
      (स्वाति 06-00'22'34")
चित्रा मेषारम्भ से 180° पर तुलारम्भ के 00°00'59" पहले आता है।

2 वैशाख 
*Orionis Centauri 07-00°56"*
 वृषभारम्भ से 180° पर वृश्चिकारम्भ के 00°00'56" बाद में आता है। लेकिन कोई नक्षत्र नहीं बैठ रहा है।

3 ज्येष्ठ 
ज्येष्ठा तो नहीं बैठता
 लेकिन *मूल 08-00°43'43"*  
 मिथुनारम्भ से 180° पर धन्वारम्भ के 00°43'43" बाद आता है।

4 (आषाढ़) 
उत्तराषाढ़ 08-18'31'42"
कर्कारम्भ से 180° पर मकरारम्भ के 11°28'18" पहले आता है।
(श्रवण 09-07°55'20")
 मकरारम्भ से 07°55'20" बाद में।
 आषाढ़ में नक्षत्र नहीं बैठ रहा।

5 श्रावण 

सिंहारम्भ से 180° पर कुम्भारम्भ के आसपास कोई नक्षत्र नहीं है।
श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र नहीं बैठता है।
(श्रवण 09-07°55'20") मकर राशि के सूर्य में आता है, न कि, कुम्भ राशि के सूर्य में।

6 (भाद्रपद)  
*पूर्वा भाद्रपद 10-29°37'40"*
कन्यारम्भ से 180° पर) मीनारम्भ के 00°22'20" पहले आता है।

7 (आश्विन ) 
अश्विनी 00-10°06'46" मेषारम्भ के 10°06'46" बाद में। 
रेवती 11-21°01'25"
तुलारम्भ से 180° पर मेषारम्भ के 8°58'25" पहले आता है।
जबकि अश्विनी नक्षत्र 00-10°06'46" मेषारम्भ के 8°58'25" बादमें आता है।
मतलब आश्विन में भी कोई नक्षत्र नहीं बैठता।
 
8 कार्तिक 
Algol Persei 1-02°18'36"
तथा कृतिका 1-06°07'07"
वृश्चिकारम्भ से 180° पर Algol Persei वृषभारम्भ के 02°18'36" बाद में आता है।तथा 
कृतिका 06°07'07" बाद में आता है।

9 *मार्गशीर्ष* 
 *मृगशीर्ष* 2-00°51'59"
धनु प्रारम्भ से 180° पर मिथुन प्रारम्भ के 00°51'59" बाद में आता है ‌।

10 पौष
Procvon Canis Minoris 03-01°55'29"
मकर प्रारम्भ से 180° पर कर्क प्रारम्भ से 01°55'29" बाद में आता है। लेकिन कोई नक्षत्र नहीं पड़ता है।

11 माघ
मघा 4-05°52'14" 
कुम्भ प्रारम्भ से 180° पर सिंह प्रारम्भ के 05°52'14" बाद में आता है।

12 फाल्गुन 
उत्तरा फाल्गुनी 04-27°45'31" 
मीन प्रारम्भ से 180° पर कन्या प्रारम्भ के 02°14'29" पहले आता है।

अर्थात केवल 
1 मेष - चैत्र,  
2 कन्या - भाद्रपद 
3 (वृश्चिक - कार्तिक)
4 धनु - मार्गशीर्ष 
5 (कुम्भ - माघ) और
6 मीन - फाल्गुन 
नाक्षत्रीय सौर मास (निरयन सौर मास) के नाम ही नक्षत्र के आधार पर सही बैठते है।

1 चित्रा (तुला) (निरयन सौर चैत्र) में, 
2 Orionis Centauri (वृश्चिक) (निरयन सौर वैशाख में),
3 मूल (धनु)( निरयन सौर ज्येष्ठ में), 
4 ( उत्तरषाढ़) (वृश्चिक) (नियन सौर आषाढ),
5 (श्रवण) (मकर) - (निरयन सौर श्रावण में नहीं बैठता) , 
6 पूर्वा भाद्रपद (कुम्भ) ( निरयन सौर भाद्रपद में), 
7 अश्विनी (तुला) निरयन सौर आश्विन में नहीं आता।
8 Algol Persei और आंशिक रूप से कृतिका (वृषभ) (निरयन सौर कार्तिक में), 
9 मृगशीर्ष (मिथुन) (निरयन सौर मार्गशीर्ष में), 
10 Procvon Canis Minoris और 
(आंशिक रूप से पुनर्वसु)(कर्क) (निरयन सौर पौष में), 

11 मघा (सिंह) (निरयन सौर माघ में)
12 उत्तराफाल्गुनी (सिंह) निरयन सौर फाल्गुन में
ही अंशात्मक दृष्टि से ठीक बैठते हैं।

1 वैशाख, 2 ज्येष्ठ, 3श्रावण, 4आश्विन, 5पौष के लिए कोई नक्षत्र नहीं बैठता।

मतलब केवल उन्नीस वर्षीय चक्र में नाक्षत्रीय (निरयन) सौर मास आधारित चान्द्र मासों की पूर्णिमा पर ही क्रमश चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ / उत्तराषाढ़, श्रवण, पूर्वा भाद्रपद/ उत्तरा भाद्रपद, अश्विनी, कृतिका, मृगशीर्ष, पुष्य, मघा और पूर्वाफाल्गुनी/ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र पड़ते है।

पूर्णिमा के चन्द्रमा के आधार पर चैत्र वैशाख आदि मास केवल तीस-तीस समान अंशो वाली निरयन राशि के सूर्य के मास के अनुसार निरयन प्रणाली वाले सौर मास के अनुकूल चान्द्रमासों का नाम ही चैत्र, वैशाख आदि हो सकता है। सायन संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्र मास के नाम भी चैत्र वैशाख आदि नहीं रख सकते क्योंकि उनमें तेरह हजार साल बाद चैत पूर्णिमा को आनेवाली पूर्णिमा आश्विन पूर्णिमा को आयेगी।

चुंकि, निश्चित आकृति वाले राशि और नक्षत्र मण्डल केवल स्थिर भचक्र मे ही होते हैं। इसलिए सायन पद्यति में राशि तथा नक्षत्र नहीं होने के कारण सायन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्र मास के नाम चैत्र वैशाख आदि नहीं हो सकते।

सर्व श्री पण्डित बालगङ्गाधर तिलक,पं. व्यंकटेश बापुजी केतकर और पं. शंकर बालकृष्ण दीक्षित जैसे मुर्धन्य विद्वानों के अनुसार जो वैदिक काल में सायन मेष संक्रान्ति से सायन तुला संक्रान्ति तक पूर्व गोल और उत्तरायण माना जाता था। तथा सायन मेष- वृषभ के सूर्य में वसन्त ऋतु होती थी। जो भौगोलिक दृष्टि से आज भी ब्रह्मावर्त में सायन मेष- वृषभ में वसन्त ऋतु होती थी। तथा तदनुसार को सायन मेष के सूर्य को मधु मास और सायन वृषभ के सूर्य को माधव मास कहते थे वे नहीं मानते है।
 
आधुनिक एस्ट्रोनॉमी भी और वैदिक काल में भी सायन गणना विषुव वृत में होती थी, और आधुनिक एस्ट्रोनॉमी के तेरह साइन और अठासी कांस्टीलेशन तथा वैदिक अट्ठाईस नक्षत्र जो बाद में अभीजित तारे के नक्षत्र पट्टी से बाहर होने पर सत्ताइस नक्षत्र भू परिभ्रमण मार्ग क्रान्ति वृत में स्थिर नक्षत्र पट्टी (फिक्स्ड झॉडिएक) में होते हैं। दोनों का घालमेल सम्भव नहीं है। इसलिए राशि -नक्षत्र (साइन और कांस्टिलेशन) के लिए निरयन पद्यति ही सही हैं। जिसके लिए अथर्ववेद और तैत्तरीय संहिता तथा तैत्तिरीय आरण्यक में प्रमाण के आधार पर चित्रा तारे को नक्षत्र पट्टी (फिक्स्ड झॉडिएक) का मध्य भाग मानकर उससे 180° पर निरयन मेषादि बिन्दु से अंशात्मक गणना की जा सकती है राशि और नक्षत्र उनके आकार के अनुसार असमान अंशों के होना स्वाभाविक है, अतः यह भी सही है, लेकिन उनके प्रारम्भ, मध्य और अन्त के अंशादि निरयन गणना से हो।

 राष्ट्रीय केलेणण्डर में जो सायन मेष संक्रान्ति से चैत्र, सायन वषभ संक्रान्ति से वैशाख और सायन मिथुन संक्रान्ति से ज्येष्ठ चालू होना बतलाया है उसके स्थान पर सायन मेष से मधुमास और सायन वृषभ से माधव मास बतलाना चाहिए। क्योंकि माहों के चैत्र वैशाख आदि नाम केवल निरयन सौर मास आधारित चान्द्रमासों में ही सही बैठते हैं।
क्योंकि यजुर्वेदीय मास मधु- माधव की वसन्त, शुक्र- शचि की ग्रीष्म और नभः-नभस्य की वर्षा, ईष-उर्ज की शरद, सहस-सहस्य की हेमन्त और तपस-तपस्य की शिशिर ऋतु बतलाई है। 

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