मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

दासता से बन्धा हिन्दू

वैसे तो भारत भूमि पर असुरों, दैत्यों, दानवों, राक्षसों तक के आक्रमण हुए लेकिन उनका स्थाई प्रभाव कम ही रहा।
लेकिन उससे सीमाएँ कमजोर होती रही और एक समय स्थाई प्रभावकारी दशराज युद्ध का सामना मनुर्भरतों के तृत्सु वंश के राजा दिवोदास और उनके पुत्र सुदास को करना पड़ा। जिसमें समझोते में अनु, दृह्यु, यदु, पुरु, तुर्वसु वंशियों को भारतभूमि में प्रवेश और निवास तथा अपने शासन स्थापित करने की अनुमति देना पड़ी। परिणाम स्वरूप बाद में नाग और आग्नेय भी आ गये और उनने भी भारत भूमि पर कब्जा करना शुरू कर दिया।
ऋषियों की सन्तान ब्राह्मण, स्वायम्भूव मनु की सन्तान मनुर्भरत क्षत्रिय और उनके निकट सम्बन्धी सूर्यवंशी दबते गये और ये आक्रान्ता पुरु और यदु वंशीय और नाग वंशीय विकास करते गये। महाभारत युद्ध ने तो सबकुछ बदल दिया। वैदिक ब्राह्मण धर्म सनातन धर्म हो गया। जैन और बौद्ध पन्थ जन्मे, और भारत में सनातन वैदिक धर्म संस्कृति समाप्त प्राय होकर नवीन स्मार्त और पौराणिक संस्कृति जन्मी।
शक हूण आदि तुर्क, अफगान, ईरानी, कजाक आक्रमणकारियों नें धार्मिक और सांस्कृतिक हमला भी बोला। 
सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन ज्योतिष और कालगणना में आया। वसन्त सम्पात से प्रारम्भ होने वाला नव युगाब्द संवत्सर, उत्तरायण, वसन्त ऋतु और मधु मास के स्थान पर पहले निरयन मेष संक्रान्ति से प्रारम्भ होने वाले निरयन सौर युधिष्ठिर संवत और विक्रम संवत चले। उत्तरायण वसन्त सम्पात/ सायन मेष संक्रान्ति के स्थान पर सायन मकर संक्रान्ति से प्रारम्भ होने लगा। वसन्त ऋतु वसन्त सम्पात/सायन मेष संक्रान्ति के स्थान पर सायन मीन संक्रान्ति से प्रारम्भ होने लगी। मधु मास भी वसन्त सम्पात/सायन मेष संक्रान्ति के स्थान पर सायन मीन संक्रान्ति से प्रारम्भ होने लगा। और उसके स्थान पर मेष, वृषभादि निरयन मास प्रचलित होगये। आज भी दक्षिण भारत में चलते हैं।
कुषाण आक्रमण ने तो तुर्किस्तान में प्रचलित सायन सौर 
संक्रान्ति आधारित चान्द्र वर्ष के भारतीय संस्करण निरयन सौर संक्रान्ति आधारित चान्द्र वर्ष शकाब्द प्रचलित कर दिया। अब वैदिक सायन सौर मधु- माधव मास और गतांश के स्थान पर चैत्र - वैशाख आदि चान्द्र-सौर मास और तिथियों का महत्व हो गया। सौर मास और गतांश विस्मृत हो गये।
केवल ग्रहों के उच्चांश और पञ्च बाण में ही सिमट गये।
दशाह के स्थान पर सप्ताह चल गया।

लेकिन तुर्क, अफगान, ईरानी, कजाक और ईराकी मुस्लिम आक्रमणों ने भारत पर प्रथम बार एकदम विपरीत मानसिकता, पूर्णतः विपरीत विचारों वाले धार्मिक- सांस्कृतिक हमले हुए। जिसने यहाँ का आत्मविश्वास डिगा दिया। स्वाभिमान नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। हम मानसिक दास होगये। हमने स्वयम् को हिन्दू अर्थात दास मान लिया। फारसी भाषा प्रधान हो गई। संस्कृत केवल शास्त्रियों तक सीमित हो गई। सलवार कुर्ता प्रचलित हो गये। विवाह में श्वेत और पीत (पीले) वस्त्रों के स्थान पर निषिद्ध अशुभ माने लाल कपड़े पहने जाने लगे। भूत-प्रेत की नवीन अवधारणा आ गई । भूत-प्रेत लगने और तन्त्र - मन्त्र से उतारने वाले जादूगर जासूस पीरों फकीरों का धन्धा चल निकला।
रही बची-खुची कसर युरोपीय आक्रमणकारियों ने पूर्ण करदी।
अब भारत में भारतीयता ही नहीं बची। हम थोड़े- थोड़े अरबी और काले अंग्रेज हो गये। हमारा अपना कुछ नहीं बचा । सनातन वैदिक धर्म की जगह हिन्दू धर्म बन गया। न त्रिकाल संध्या, न पञ्चमहायज्ञ, न गौ सेवा बस सुबह शाम प्रार्थना करलो कर्तव्य पूर्ण।न संस्कार बचे न संस्कृति बची।
 गुरुकुल स्कूल-कॉलेज में बदल गये। संस्कृत की जगह हिन्दी भाषा आ गई। वैदिक काल गणना , संवत्सर की जगह ग्रेगोरी केलेण्डर और रात बारह बजे बदलने वाले डेट एण्ड डे आगये।, न भाव, न श्रद्धा, न वेशभूषा न रहन सहन, न संयुक्त परिवार न भोजन, न चिकित्सा,
प्राकृतिक चिकित्सा की जगह फिजियोथेरेपी, आयुर्वेद की जगह एलोपैथी, चिकित्सालय की जगह हॉस्पिटल हो गये।न उद्योग-धन्धे, न कारोबार- व्यापार- व्यवसाय- वाणिज्य, न इतिहास कुछ भी तो अपना नहीं बचा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें