जो जनेऊ- और नाड़ा (लच्छा), वस्त्र आदि चढ़ाया जाता है उसका आषय यह है कि, इमरजेंसी में जरुरत मन्द वहाँ से प्राप्त कर सकता है और उसे किसी के सामने बोलना भी नहीं पड़ेगा।
जैसे किसी कारण पथिक की जनेऊ टूट गई, अब बोलकर मांगे बिना तो कोई अपरिचित से जनेऊ ले नहीं सकता, और जनेऊ टूटने पर नवीन जनेऊ धारण करने तक मौन रहना आवश्यक है। ऐसे में वह ऐसे स्थानों से प्राप्त कर लेता था।
इतना सेवा भावी धर्म है हमारा, जिसके मर्म को कोई नहीं समझकर कोरे कर्मकाण्ड करते हैं।
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