रविवार, 7 अप्रैल 2024

वट-पीपल आदि की पूजा का तात्पर्य।

पूजा मतलब सेवा, सफाई करना, बान्दे हटाना, स्वच्छता रखना, जल सिञ्चन, खाद देना, आसपास की मिट्टी खोदना (गुड़ाई करना) (हलना- बखरना जैसा काम है), आश्रित पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना, सूर्योदय पूर्व अन्धेरे में और सूर्यास्त पश्चात सायंकाल में अन्धकार छाने पर (प्रदोषकाल में) पथिकों के लिए दीपक लगाना ये सब पीपल आदि वृक्षों के माध्यम से भूत यज्ञ का भाग है।
जो जनेऊ- और नाड़ा (लच्छा), वस्त्र आदि चढ़ाया जाता है उसका आषय यह है कि, इमरजेंसी में जरुरत मन्द वहाँ से प्राप्त कर सकता है और उसे किसी के सामने बोलना भी नहीं पड़ेगा।
जैसे किसी कारण पथिक की जनेऊ टूट गई, अब बोलकर मांगे बिना तो कोई अपरिचित से जनेऊ ले नहीं सकता, और जनेऊ टूटने पर नवीन जनेऊ धारण करने तक मौन रहना आवश्यक है। ऐसे में वह ऐसे स्थानों से प्राप्त कर लेता था।

इतना सेवा भावी धर्म है हमारा, जिसके मर्म को कोई नहीं समझकर कोरे कर्मकाण्ड करते हैं।

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