शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

युधिष्ठिर संवत्सर 5163 विक्रम संवत 2081 का प्रारम्भ

 
निरयन मेष संक्रान्ति आज दिनांक 13 अप्रैल 2024 शनिवार को 21:03 बजे (रात्रि 09:03 बजे) होगी। 
पुण्यकाल अपराह्न 05:51 बजे ( 17:51 बजे) से 06:46 बजे (18:46बजे) तक (इन्दौर में सूर्यास्त समय तक) की अवधि में पवित्र नदियों/ कुण्ड में स्नान और दान करने का पुण्य काल रहेगा।  
वैशाखी पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

नाक्षत्रीय नव वर्ष युधिष्ठिर संवत 5163 निरयन मेष संक्रान्ति पश्चात सूर्योदय से अर्थात 14 अप्रेल 2024 रविवार को सूर्योदय से प्रारम्भ होगा।

 *पञ्जाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड* में जिन दो सूर्योदय के बीच निरयन मेष संक्रान्ति लगती है, उसी दिन (वार) वैशाखी/ वैसाखी नाम से नव वर्ष विक्रम संवत 2081 का प्रारम्भ भी होता है। इसलिए विक्रम संवत का प्रारम्भ होने का *वैशाखी पर्व आज ही मनेगा* ।

 *उड़िसा में* मी सूर्योदय नियमानुसार आज ही *पणा संक्रान्ति नाम से नववर्ष मनाएंगे।* 

इसी नाक्षत्रीय नव वर्ष को 
 *बङ्गाल में* निरयन मेष संक्रान्ति यदि मध्य रात्रि के पूर्व लगे तो उसी दिन नबा वर्षा या पोहेला बोईशाख के नाम से नव वर्ष मनाते हैं। इसलिए *बङ्गाल में भी आज ही नववर्ष पर्व मनेगा।* 

(निरयन मेष संक्रान्ति यदि मध्यरात्रि के बाद लगने पर बङ्गाल में नबा वर्षा दुसरे दिन मनाते हैं।)
 
 *असम में बिहु नाम से नव वर्ष मनाएँगे।* 

तमिलनाडु में यदि सूर्यास्त के पहले निरयन मेष संक्रान्ति लगे तो उसी दिन पथण्डु नाम से निरयन मेष संक्रान्ति से नव वर्ष मनाते हैं।अन्यथा सूर्यास्त के बाद निरयन मेष संक्रान्ति लगनें पर दुसरे दिन नव वर्ष पथण्डु मनाते हैं।अतः *तमिलनाडु में कल दिनांक 14 अप्रैल 2024 रविवार को नववर्ष पथण्डु मनाया जाएगा।* 
ऐसे ही 
केरल में अठारह घटिका नियम चवता है। अर्थात दिनमान के प्रथम 3/5 वें भाग (सूर्योदय से लगभग 7 घण्टे 12 मिनट में) निरयन मेष संक्रान्ति लगे तो उसी दिन अन्यथा दुसरे दिन नव वर्ष विषुकाणि नाम से मनाया जाता है। अतः *केरल में भी कल दिनांक 14 अप्रैल 2024 रविवार को नववर्ष विषुकाणि मनाया जाएगा।* 
 *इस दिन भूमि चित्रा तारे के सम्मुख रहने से सूर्य चित्रा तारे से 180° पर रहता है। इस कारण एक दिन पहले और इसी दिन भी चित्रा तारा सूर्यास्त के साथ उदय होगा और सूर्योदय के साथ अस्त होगा। पूरी रात चित्रा तारा आकाश में दिखता रहेगा।*
लेकिन नाक्षत्रीय नववर्ष पर्व वैदिक नव संवत्सर पर्व के समान ऋतु बद्ध नहीं है। 25778 वर्ष के चक्र में यह नव वर्ष पर्व प्रत्येक ऋतु में आयेगा।23 सितम्बर 13174 ईस्वी में को युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ शरद सम्पात से प्रारम्भ होगा।

अर्थात *तुर्क, अफगान, ईरान और कजाकिस्तान के आक्रमण झेलने वाले मध्य क्षेत्र को छोड़कर शेष भारत में चारों ओर आज या कल निरयन मेष संक्रान्ति से नव संवत्सर प्रारम्भ माना जाता है।* 
 *लम्बी अवधि की दासता ने मध्य क्षेत्र में सनातनी संस्कृति के साथ सनातनी नव संवत्सर भी लुप्त हो गया और तुर्क/ कुषाणों द्वारा चलाया निरयन सौर चान्द्र वर्ष शकाब्द प्रचलित हो गया।* 

वैदिक और पूर्णतः वैज्ञानिक युगाब्द कलियुग संवत 5125 का प्रारम्भ वसन्त से सम्पात 21 मार्च 2024 गुरुवार के सूर्योदय के साथ हो चुका है। इसी दिन वैदिक मधुमास, ब्रह्मावर्त में वैदिक वसन्त ऋतु और उत्तरायण प्रारम्भ हुआ।
इस दिन दिन रात बराबर रहते हैं। देवताओं का सूर्योदय होता है। उत्तरी ध्रुव पर सूर्योदय होता है। वैदिक उत्तरायण प्रारम्भ, वैदिक वसन्त ऋतु प्रारम्भ और वैदिक मधुमास का प्रारम्भ होता है।
यह नव वर्ष महाभारत युद्ध के बाद प्रायः अप्रचलित हो गया। क्योंकि, महाभारत युद्ध में सभी विद्वान, ज्ञाता, वीर योद्धा समाप्त हो गये थे। 


*अवैदिक और पूर्णतः अवैज्ञानिक पौराणिक शकाब्द 1946 का प्रारम्भ दिनांक ०९ अप्रेल २०२४ मङ्गलवार को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय से हो चुका है।*
*इस दिन वैदिक कलियुग संवत जैसी कोई विशेषता नहीं होती और नाक्षत्रीय सौर संवत प्रारम्भ दिन जैसी कोई विशेषता भी नहीं होती।*
इसकी एकमात्र विशेषता है - अपने शक राजा को खुश करने के लिए पौराणिकों ने इसे भरपूर समर्थन देकर प्रचार किया।

बल्कि इस पौराणिक नववर्ष का वास्तविक इतिहास यह है कि,⤵️
 *वर्तमान चीन के प्रान्त पूर्वी तुर्की के शिंजियांग उइगु़र प्रान्त के निवासी उइगुर मुस्लिमों के पूर्वज शक-कुषाणों द्वारा प्रवर्तित और प्रचलित १९ वर्षीय, १२२ वर्षीय और १४१ वर्षीय चक्र वाले निरयन सौर चान्द्र वर्ष को अपनाया और पेशावर (पाकिस्तान) के क्षत्रप कुषाण वंशीय कनिष्क द्वारा मथुरा विजय के उपलक्ष्य में उत्तर भारत में प्रचलित निरयन सौर चान्द्र वर्ष शकाब्द प्रचलित किया और आन्ध्र प्रदेश के सातवाहन वंशीय गोतमीपुत्र सातकर्णी द्वारा नासिक के पास पैठण (महाराष्ट्र) पर विजयोपलक्ष्य मे दक्षिण भारत में निरयन सौर चान्द्र वर्ष शकाब्द के नाम से प्रचलित किया।*
*इस कारण उत्तर भारत में कुषाण वंश शासित क्षेत्र एवम् दक्षिण भारत में सातवाहन वंशीय शासित क्षेत्र में एवम् मराठा शासित भारतीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तेलङ्गाना में नव चान्द्र वर्ष शकाब्द के नाम से प्रसिद्ध है। आन्ध्र प्रदेश में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा युगादि या उगादि कहते हैं ।जबकि महाराष्ट्र में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं।*  

*निरयन सौर वर्ष आधारित होने के कारण पौराणिक चान्द्र-सौर शकाब्द नववर्ष पर्व (वैदिक नव संवत्सर पर्व के समान) ऋतु बद्ध नहीं है। 25778 वर्ष के चक्र में यह नव वर्ष पर्व प्रत्येक ऋतु में आयेगा। सितम्बर 13174 ईस्वी में को युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ शरद सम्पात से प्रारम्भ होगा। अर्थात शरद ऋतु में प्रारम्भ होगा।*
*इसलिए निरयन सौर चान्द्र वर्ष पूर्णतः अवैज्ञानिक है। वेदों में इसका उल्लेख होने तो सम्भव ही नहीं है अतः अवैदिक है।*
इसलिए मैरी श्रद्धा नहीं है।

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