बुधवार, 10 अप्रैल 2024

जातियाँ

आर्य जाति/ प्रजाति नही होती। वेदों में आर्य श्रेष्ठ, सदाचारी व्यक्ति को कहते हैं। किसी जाति विशेष को नहीं।
वास्तविक जातियाँ 

देव ---केस्पियन सागर क्षेत्र ताजिकिस्तान और चीन के शिंजियांग स्वायत्तशासी क्षेत्र उइग़ुर ख़ाङ्नत आदि के सीमांत प्रदेश, ,ईरानी बलोचिस्तान के कजान ख़ानत या ख़ाङ्नत, और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्रों,अफगानिस्तान का पाकिस्तान से लगा भाग नूरीस्तान ,पाकिस्तानी बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा,और भारत के पश्चिमोत्तर अर्थात आधूनिक नूरीस्तान के निवासी थे। 
संक्षेप में ताजिकिस्तान (कम्बोज), किर्गिज़स्तान, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कश्मीर, लद्दाख और तिब्बत के तरीम बेसिन और टकला मकान क्षेत्र में शिंजियांग उइगुर प्रान्त के निवासी थे 
मानव --- (स्वायम्भूव मनु- शतरुपा की सन्तान  मनुर्भरत), दृविड़ / दृविण (धर्म वसु की पत्नी दृविण की सन्तान), गन्धर्व (बलूच, अफगान), किन्नर (हिमाचल, उत्तराखण्ड के किन्नौर वासी), यक्ष (तिब्बत और पश्चिम चीन वासी), प्रमथ-मङ्गोल,  सूर (सीरिया वासी) असुर (इराक केअसीरिया) वासी, देत्य अरब प्रायद्वीप के निवासी, दानव (डेन्युब नदी तट वासी युरोपीय) और राक्षस (अफ्रीकी) जातियाँ थी।

ब्राह्मण -- प्रजापति ब्रह्मा-सरस्वती की मानस सन्तान (1) दक्ष (प्रथम)- प्रसुति, (2) मरीची-सम्भूति, (3) भृगु-ख्याति, (4) अङ्गिरा-स्मृति, (5) वशिष्ट-ऊर्ज्जा, (6) अत्रि-अनसुया, (7) पुलह-क्षमा, (8) पुलस्य-प्रीति, (9) कृतु-सन्तति नौ ब्रह्मा कहलाते हैं। 
प्रजोत्पत्ति करने के कारण ये सभी प्रजापति के तुल्य माने जाते हैं। सबसे प्राचीन ऋषि होने से इन्हें अगले मन्वन्तर में वैदिक ज्ञान अन्तरित करने का कार्यभार सोपा जाता है। इसलिए अलग-अलग मन्वन्तर में इनमें से कुछ ऋषि सप्तर्षि कहलाते हैं।
ये कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के आसपास के ऋषिदेश (मालवा प्रांत, गोड़ देश) के निवासी थे।

मानव क्षत्रिय --  गेहूँए रङ्ग वाले स्वायम्भूव मनु की सन्तान - स्वायम्भूव मनु - प्रियव्रत - आग्नीध्र - नाभि/ अजनाभ - ऋषभदेव - भरत चक्रवर्ती की सन्तान मनुर्भरत को हम आर्य समझते हैं ।

चान्द्र --  जबकि ब्रहस्पति की पत्नी तारा और चन्द्रमा के पुत्र बुध, वैवस्वत मनु की पुत्री इला और बुध के पुत्र एल पुरुरवा (एल, ईलाही/ अल्लाह), उर (इराक) की निवासी, तिब्बत-कश्मीर- लद्दाख, पूर्वी तुर्किस्तान (उइगुर) प्रान्त स्थित स्वर्ग के राजा इन्द्र की नर्तकी उर्वशी और एल पुरुरवा का पुत्र दक्षिण-पूर्वी टर्की (तुर्किये) के युफ्रेटिस घाँटि में ईलाझी शहर में जन्मे आयु (आदम) के वंशज औराजा खत्तुनस की प्रजा खत्ती (हित्ती) / खाती/ खत्री अर्थात चन्द्रवंशियों को मेक्समूलर ने आर्य माना।
पुरानी/ पश्चिमी आरामी भाषा में रचित तनख (बायबल ओल्ड टेस्टामेंट की पहली पुस्तक उत्पत्ति) के अनुसार यहोवा (एल पुरुरवा) ने आदम (आयु) को दक्षिण पूर्व टर्की के युफ्रेटिस घाँटि में ईलाझी शहर में अदन वाटिका में अकेले ही पाला था।
ये चन्द्रवंशी हैं, अनु, दुह, *यदु* , *पुरू* और तुर्वसु जिनने तृत्सु वंशीय मनुर्भरत - दिवोदास और उनके पुत्र सुदास पर आक्रमण किया था जिसे ऋग्वेद में दशराज युद्ध कहा गया है।
परिणाम स्वरूप पुरू वंशीय प्रयागराज में बसाये गए। तुर्वसु के वंशजों को आदित्यों के क्षेत्र तुर्किस्तान में बसाया, यदु वंशीय पूर्वी भारत में अङ्ग देश में बसे। ये चन्द्रवंशी गोरे और डेन्युब नदी किनारे बसे दानव (युरोपीयन) से मिलते-जुलते थे, इसलिए इन्हें आर्य कहा।

 असुर -- इराक के असीरिया प्रान्त के प्राणवान, बलिष्ट असुर  असीरिया (इराक), मेसापोटामिया, बेबीलोन, सऊदी अरब  में बसे। ये रुद्र भक्त शिवाई  (साबई), बालदेव (नन्दी) उपासक असुर हुए। इनने शुक्राचार्य को अपना गुरु माना। शुक्राचार्य के पुत्र त्वष्टा ने युनान के पास  क्रीट में शाक्तपन्थ की स्थापना की।
परशु--  असुरों के आचार्य जरथ्रुस्त्र ने ईरान के मीड और मगों को आसुरी मत में बदला। ये अग्नि को प्रतिक मानकर असुरमहत् (अहुरमज्द) के उपासक हो गये।

दैत्य -- महर्षि कश्यप और दिति के पुत्र दैत्यगण मिश्र और  अम्मानके पास जोर्डन की जेरिको सभ्यता, इज्राइल, स्वेज और लेबनान (फोनिशिया सभ्यता) में बसे। पश्चिम एशिया दैत्यों का क्षेत्र था ।
दक्षिण भारत पर कब्जा जमाये राजा बलि को वामन / विष्णु द्वारा केरल (भारत)  से निकालने पर  राजा बलि भी भारत के दास, दस्यु ,चोल, चालुक्यों को लेकर पहले लेबनान (फोनिशिया) ही गया था। फिर लेबनान से निकलकर  दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के बोलिविया बसा। 

दानव ---महर्षि कश्यप और दनु के पुत्र यानि  दनु (डेन्यूब नदी) के वंशज दानव  युगोस्लाविया  की लेपेन्स्की वीर सभ्यता (Lepennki Vir )  और प्राग(चेकोस्लोवाकिया) से जर्मनी  तक और युनान रोम की युरोपीय सभ्यता दानवों की है। सेल्ट या केल्ट लोग दानव थे ये इंग्लेण्ड में तप करते थे।
राक्षस -- राक्षस अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका महाद्वीप के निवासी थे जिन्हें वर्तमान में निग्रो कहते हैं। क्योंकि ये रक्षा का कार्य करते थे। विशेष कर अरब और युरोप में लोग इन्हें अङ्गरक्षक नियुक्त करते थे। रावण के नाना और उनके भाई मालि - सुमाली अफ्रीकी निग्रो थे। जबकि श्वसुर मयासुर मय संस्कृति का रेड इण्डियन था।
इसमें मानवों को छोड़कर अधिकांश विदेशी जातियाँ शिव परिवार की मूर्तियों को पूजने वाले थे।
रावण ने भी लक्षद्वीप स्थित रावण की लङ्का में उसकी कुलदेवी निकम्भला के बहुत से मन्दिर बनवा कर निकुम्भला की मूर्तियाँ स्थापित कर पूजा करता था और तान्त्रिक हवन करता था।
वाल्मीकी रामायण युद्ध काण्ड के अनुसार हनुमान जी ने निकुम्भला के कई मन्दिर और मुर्तियाँ तोड़ी।
लक्ष्मण जी ने मेघनाद का तान्त्रिक हवन ध्वन्स कर रोक दिया।
तो क्या रावण और मेघनाद सदाचारी वैदिक (धार्मिक) हो गये तथा हनुमान जी और लक्ष्मण नास्तिक, अनीश्वरवादी और दुराचारी अधर्मी हो गये?
पौराणिकों नें इसी भ्रम को फैला कर रावण और बली की प्रशंसा में भरपूर गीत गाए हैं। लेकिन वैदिक लोगों को सत्य समझता है। इसलिए वे इन दैत्य - राक्षसों को अधर्मी ही मानते हैं।

हमने ब्राह्म धर्म -> ब्राह्मण धर्म -> प्राजापत्य धर्म -> आर्ष धर्म -> मानव धर्म छोड़ कर हमारे धर्म का नाम सनातन धर्म रखा। तुर्क, अफगान, ईरान, इराक और कजाक मुस्लिम और युरोपीय ईसाइयों के चक्कर में हम हिन्दू और इण्डियन बन बैठे। और दासत्व की इस उपाधि पर गर्व करने लगे।

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