कश्मीर से कैस्पियन सागर तट के बीच तप करने वाले कश्यप ऋषि की सन्तान आदित्य तिब्बत, तुर्किस्तान और कश्मीर क्षेत्र में शासन करते थे। जिसे वे सुवर्ग (स्वर्ग) कहते थे। यह ब्रह्मावर्त क्षेत्र में आता था।
विवस्वान आदित्य की सन्तान श्राद्धदेव (वैवस्वत मनु) जल प्रलय के उपरान्त अयोध्या में बस गये।
टर्की के हित्ति साम्राज्य से आये चान्द्र चन्द्रवंशी (खत्ती / खत्री / खाती) जब भारत में प्रवेश करने लगे तब उनमें और भारतवंशी मनुर्भरतों में शतवर्षीय दशराज युद्ध हुआ। अन्त में मनुर्भरत राजा दिवोदास को समझोता कर चान्द्रों को प्रयाग और कश्मीर में स्थान देना पड़ा। इसे शेक्सपियर ने आर्यों का भारत आगमन कहा है क्योंकि चन्द्रवंशी गौरे थे और मनुर्भरत गेहूएँ रंग के तथा सूर्यवंशी हल्के काले (सांवले)थे।
सूर्य वंश के मनु की पुत्री इला की सन्तान होने से चन्द्रवंशियों के प्रति सूर्यवंशियों में सॉफ्ट कार्नर था। ऐसे ही चन्द्रवंशियों के मन में अपने पड़ोसी सीरिया के सूर, असीरिया के असूरों के प्रति प्रतिस्पर्धा पूर्ण लगाव था।
बाद में सीरिया के सूर ने भारत में कश्मीर में नाग वंश स्थापित किया। और समय समय पर असीरिया (इराक) के असुर भी आते रहे और नागों और चन्द्रवंशियों के सहयोग से असुर असम तरफ सेटल हो गये।
महाभारत में पूरा वर्णन चन्द्रवंशियों का ही है।
टर्की के सम्राट एल पुरुरवा नें स्वर्ग की इन्द्र सभा की नर्तकी उर (इराक) निवासी उर्वशी से सशर्त अस्थाई विवाह (मुता निकाह) किया था। जिसने आयु को जन्म देकर उस शिशु को पालनार्थ एल पुरुरवा को सोपा और पुनः इन्द्र सभा में अपना कार्यग्रहण कर लिया।
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