वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धाकाण्ड काण्ड में सर्ग 64 श्लोक बीस में उल्लेख है कि, हनुमान जी का जन्म गुफा में हुआ था जबकि तिरुमला में कोई गुफा नहीं है। और केसरी जी का राज्य किष्किन्धा के निकट माल्यवान पर्वत पर था।
कर्नाटक के कोप्पल जिले के गंगावती तहसील में हम्पी से लगभग 25 किलोमीटर दूर अनेगुड़ी गाँव (अञ्जनी गाँव) ही किष्किन्धा नगरी है।
जहाँ तुङ्गभद्रा नदी (प्राचीन पम्पा नदी), पम्पा सरोवर, तारा पर्वत और बाली-सुग्रीव का किला भी है। यहाँ गुफाओं में पाँच से सात हजार वर्ष पुराने वानर जाति के लोगों द्वारा निर्मित बाली-सुग्रीव के युद्धरत चित्र और पर्वत में उकेरी प्रतिमाएँ मिलती है।
पास ही बाली के खजाने वाली गुफा बाली भण्डार और वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धाकाण्ड सर्ग बारह में उल्लेखित मतङ्ग वन जहाँ हनुमानजी ने बाल लीलाएँ की, मतङ्ग ऋषि के आश्रम के पास ही शबरी माता की कुटिया भी है।
निकट ही ऋष्यमूक पर्वत भी है। जहाँ हनुमानजी की सलाह पर बाली से बचने के लिए सुग्रीव ने शरण ली थी।
अनेगुड़ी गाँव के बीचोंबीच सूर्योदय सूर्यास्त के समय स्वर्णमय दिखने वाले आञ्जनेय पर्वत पर पत्थरों का किला है। जहाँ हनुमानजी का जन्मस्थान मन्दिर है। जिसमें स्थापित पर्वत के पाषाण से बनी प्रतिमा स्वायम्भूव मानी जाती है ।
प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आञ्जनेय पर्वत को किसी भी कोण से देखने पर सुनहरी रङ्ग का दिखता है।
वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी की जन्मस्थली सुनहरे रङ्ग का पर्वत बतलाया गया है।
लेकिन
आन्ध्र प्रदेश के तिरुमला तिरुपति देवस्थान के सात सदस्यीय कमेटी और कर्नाटक के रा.स्व.से.संघ जिन्होंने कर्नाटक के कोप्पल जिले के गंगावती तहसील में हम्पी से लगभग 25 किलोमीटर दूर अनेगुड़ी गाँव (अञ्जनी गाँव) अर्थात किष्किन्धा नगरी में हनुमान जन्मस्थली मन्दिर निर्माण के लिए 120 करोड़ रुपए का कोष तैयार किया है इन दोनों संस्थाओं के बीच हनुमान जन्मस्थली विवाद तो माननीय न्यायालय में विचाराधीन है। जो कभी न कभी हल हो ही जाएगा और सिद्ध हो जायेगा कि, वास्तविक हनुमान जन्म स्थान कौनसा है?वराह पुराण में तिरुमला की सात पहाड़ियों में से एक वैंकटाचल के बीस नामों में से एक सुमेरु भी बतलाया है।
वाल्मीकि रामायण उत्तर काण्ड में हनुमान जी का जन्म स्थान सुमेरुशिखराञ्चल बतलाया है।
वास्तविक सुमेरु पर्वत तो उत्तरी ध्रुव या हिमालय पर होगा ।
ब्रह्म पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण और वराह पुराण में तिरुमला की सात पहाड़ियों में से एक अञ्जनाद्री पहाड़ी का उल्लेख है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि, माता अञ्जनी ने हनुमान जी के जन्म से पहले अञ्जनाद्री पहाड़ी पर तपस्या की थी, उसके बाद ही हनुमान जी का जन्म हुआ। इसी कारण इस पहाड़ी का नाम अञ्जनाद्री पड़ा।
तिरुमला में माँ अञ्जनी का मन्दिर अञ्जनाद्री पहाड़ी पर है।
वैकटाचल महात्म्य में बतलाया है कि, मतङ्ग ऋषि के आदेश पर माता अञ्जनी तिरुमला आई थी और पुष्कररणी में स्नान करने के बाद माता अञ्जनी ने हनुमान जी के जन्म के पहले आकाशगङ्गा नामक स्थान पर तपस्या की थी। आकाशगङ्गा नामक स्थान आज भी तिरुमला में स्थित है।
वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि, सूर्य के आदेश पर हनुमान जी ने सुग्रीव से मित्रता कर सुग्रीव को परामर्श दिया कि, वे बाली से बचने के लिए ऋष्यमूक पर्वत पर शरण ले।
श्री रामचन्द्र जी से मित्रता के पश्चात जब सुग्रीव, हनुमान जी और श्रीराम जब ऋष्यमूक पर्वत से किष्किन्धा लौटे तो उन्होंने बीच में कई प्रदेशों, अरण्यों और नदियों को पार किया था। मतलब ऋष्यमूक पर्वत किष्किन्धा से काफी दूर था। आज भी तिरुमला से किष्किन्धा पैदल पहूँचने में तीन-चार दिन लग जाते हैं।
उक्त प्रमाण सिद्ध करते हैं कि, हनुमान जी का जन्म तिरुमला में अञ्जनाद्री पहाड़ी पर हुआ था।
इसके अलावा कुछ बे-सिर-पैर के दावे भी किये जा रहे हैं जिनमें प्रमुख है -
महाराष्ट्र में नासिक से 28 किलोमीटर दूर त्र्यंबकेश्वर के पास अञ्जनेरी मन्दिर।
शिवमोंगा मठ ने कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले गोकर्ण नामक स्थान पर भी दावा किया है।
झारखण्ड के गुमला से बीस किलोमीटर दूर आञ्जन गाँव में स्थित पहाड़ी की चोंटी पर स्थित गुफा में भी हनुमान जन्म स्थान का दावा किया गया है।
गुजरात के डाँग जिले में अञ्जनी पर्वत की गुफा में भी हनुमान जन्म स्थान का दावा किया गया है।
और सबसे विचित्र बात यह है कि, हरियाणा के कैथल में भी हनुमान जन्म स्थान का दावा किया गया है।
महाभारत के अनुसार तिब्बत में हिमालय के कैलाश शिखर के उत्तर में स्थित कुबेर के राज्यक्षेत्र अलका पुरी में महर्षि कश्यप की तपोभूमि गन्धमादन पर्वत पर हनुमान जी का वास है, जहाँ कमल सरोवर पर हनुमान जी से भीमसेन की भेंट हुई थी।
यह स्थान भी खोज का विषय है।
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