गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

भूत-प्रेत यक्ष-राक्षस-पिशाच योनि है।

ऋग्वेद में रक्षोहा सूक्त में यातुधान पिशाच और रक्षोहा से रक्षा हेतु उपाय बतलाए हैं। 
कौषितकी उपनिषद के अनुसार पतञ्जली की पत्नी को यक्ष आवेश होता था। पतञ्जली की पुत्री को गन्धर्व आवेश होता था।
इनसे लोग आत्मज्ञान विषयक प्रश्न पूछते थे।
महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर देकर यक्ष के हाथों बेहोश किए गए अपने भाइयों को बचाया था।
लेकिन किसी को भूत-प्रेत लगा यह पढ़ने में नहीं आया।
आसुरी प्रकृति के यातुधान, ताल- बैताल, विनायक , ब्रह्म राक्षस (रक्षोहा) नामक पिशाच योनि, यक्ष योनि, गन्धर्व योनि में जन्में लोगो को कृमशः असुर पिशाच , असुर राक्षस, असुर यक्ष योनि, गन्धर्व कहलाते थे। नर पिशाच (अफगानिस्तान- पाकिस्तान सीमा पर रहते थे।)
 नर यक्ष (चीन, जापान और मङ्गोलिया में रहते थे) और  नर गन्धर्व (बलुचिस्तान/ अफगानिस्तान में रहते थे), नर असुर असीरिया इराक में रहते थे और नर राक्षस नीग्रो अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, उत्तर अमेरिका दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में रहते थे।
ऐसे ही देव पिशाच (शिवगण- विनायक), देव गन्धर्व (तम्बुरा आदि बहुत से प्रसिद्ध हैं।), देव यक्ष (कुबेर, मणिभद्र आदि) और देव असुर वरुण आदि प्रसिद्ध हैं।
इनमें आसुरी प्रवृत्ति के गन्धर्व,यक्ष और पिशाच कमजोर लोगों को वैसे ही आवेशित करते थे जैसे हिप्नोटिस्ट सम्मोहित कर लेता है।
जैसे प्रायमरी कॉइल सेकेण्डरी कॉइल को बिना छुए आवेशित करती है। जैसे चुम्बक लोहे को बिना छुए आवेशित करता है। जैसे रक्त तप्त कोयला या लोहा निकट रखी वस्तुओं को बिना छुए गर्म कर देता है। और बर्फ गर्मी हर लेता है। वैसे ही ये योनियाँ बाहर रह कर ही व्यक्ति को आवेशित कर सकतीं हैं।
इस्लाम के आगमन के पहले न किसी को भूत-प्रेत दिखे, न लगे। अतः उतारने की विधि का आविष्कार होने का प्रश्न ही नहीं है।
लोक कथाओं के अनुसार भूत- प्रेत भोजन ग्रहण करते हैं, मदिरा पान करते हैं,  चीलम फूंकते हैं, बीड़- सिगरेट पीते हैं। अर्थात ग्रहण - उत्सर्जन करते हैं।
पुरुष भूत-प्रेत नारियों से सम्भोग या बलात्कार कर सन्तान उत्पन्न कर देते हैं। और चुड़ेल नर / पुरुषों के साथ सम्भोग करतीं हैं। और प्रजनन करती हैं।(बाईबल भी ऐसा मानती है।)
भूत-प्रेतो और चुड़ेलों में भी परस्पर रतिक्रिया होती है।
गर्भवती भूत- प्रेत के लिए मानव चिकित्सक और दाई को ले जाकर प्रसूति करवाते हैं। अर्थात प्रजनन होता है।
बिमार भूत-प्रेतो और चुड़ेलों की चिकित्सा भी मानव चिकित्सक से करवाते हैं। यहाँ तक कि, एलोपैथिक दवाइयाँ और इंजेक्शन भी लेते हैं। मतलब बिमार भी होते हैं।
प्रचलन अर्थात चलते-फिरते, नाचते-गाते भी हैं।
विवाह समारोह भी आयोजित करते हैं।
मतलब भूत-प्रेत मरे हुए व्यक्ति का देह रहित जीव आदि कुछ नहीं है; बल्कि सदेह योनि हैं।
जबकि, इब्राहीमी मजहब, यहुदी, ईसाई, इस्लाम और वहाबी के अनुसार व्यक्ति के मरते ही उसके प्राण (देही) अशरीरी भूत-प्रेत (जिन्न) बन जाता है। ड्रेकुला अपनी शव पेटी (कबर) लेकर ही घुमता रहता है। इन जिन्नों का आकार प्रकार, शक्ल- सूरत सब मृतक के देह के समान ही होती है। ये जीवित मानव के शरीर में घुस जाते हैं और उसे परेशान करते हैं। या दुसरों को भी परेशान करते हैं। फिर जिसके शरीर में घुस जाते हैं उसकी मृत्यु हो जाती है और वह भी जिन्न (भूत-प्रेत) बन जाता है। दासत्व से पीड़ित भारतीय हिन्दू भी भूत-प्रेत मानने लगे।
सनातन वैदिक धर्म के लोगों को समझना चाहिए कि, हमारे वैदिक शास्त्रों में गन्धर्व यक्ष, राक्षस और पिशाच योनि का उल्लेख है। ऐसे जिन्नों का नहीं। अर्थात वास्तव में गन्धर्व यक्ष, राक्षस और पिशाचों को हम कुसङ्गति से भ्रमित होकर अपना ज्ञान भूलकर इन्हें भूत-प्रेत मान लेते हैं।

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