गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

हनुमान जयन्ती की विविध तिथियों के शास्त्र प्रमाण।

हनुमान जयन्ती
हनुमान जयन्ती की वास्तविक तिथि के विषय में बहुत भ्रम है।

उड़ीसा में निरयन मेष संक्रान्ति (वर्तमान में 13/14 अप्रेल) को मनाते हैं। इस दिन सूर्य केन्द्रीय ग्रहों में (मध्यम ग्रह) में भूमि चित्रा नक्षत्र पर रहती है।

मासिक धार्मिक पत्रिका कल्याण के हनुमान अङ्क के अनुसार छत्तीसगढ़ में आदिवासी जनजाति के लोग  चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को रामनवमी के दिन श्री राम और हनुमान जी दोनों की जयन्ती पर्व मनाते हैं।

उत्तर भारतीय चैत्र पूर्णिमा को सूर्योदय के समय हनुमान जयन्ती मनाते है। इस दिन प्रायः चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर रहता है।
स्कन्द पुराण वैष्णव खण्ड 40/ 42-43
प्रादुरासीत्तदातम् वै भाषमाणो महामतिः।
मेष संक्रमणम् भानौ सम्प्राप्ते मुनिसत्तमाः।।
पूर्णिमाख्ये तिथौ पुण्ये चित्रानक्षत्रसंयुते।

आनन्द रामायण सारकाण्ड 13/162-163 
चैत्रे मासे सिते पक्षे हरिदिन्याम् महाभिदधे।
नक्षत्रे स समुत्पन्नो हनुमान् रिपुसूदनः।।
महाचैत्रीपूर्णिमायाम् समुत्पन्नोऽञ्जनीसुतः।
वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन।।
के अनुसार हनुमानजी चैत्र शुक्ल एकादशी को मघा नक्षत्र में जन्मे थे। लेकिन कल्प भेद से चैत्र पूर्णिमा को भी हनुमान जयन्ती मनाते हैं। 

तन्त्र सार ग्रन्थ के 
चैत्रे मासि सिते पक्षे पौर्णमास्याम् कुजेऽहनि।
मौञ्जीमेखलया युक्तः कौपीनपरिधारकः।।
कर्णयो कुण्डले प्राप्तस्तथा यज्ञोपवीतकः।। 
प्रवालसदृशो वर्णो मुखे पुच्छे च रक्तकः।।
एवम् वानररूपेण प्रकटोऽभूत क्षुधातुरः।
अनुसार भी भी हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को हुआ था।
राजस्थान में सालासर बालाजी मन्दिर में भी चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयन्ती मनाते हैं।

*आन्ध्र* प्रदेश और *तेलङ्गाना* मे चैत्र पूर्णिमा से दीक्षा आरम्भ कर 41 से दिन पश्चात *अमान्त वैशाख पूर्णिमान्त ज्येष्ठ कृष्ण दशमी* को हनुमान जयन्ती मनाते हैं। और पर्व का समापन करते हैं।
ध्यातव्य है कि, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम तिरुमला स्थित अञ्जनाद्री पर्वत पर स्थित अञ्जनी मन्दिर को हनुमान जन्मस्थली मानता है।

श्रावण पूर्णिमा - 
 प्रजापति ब्रह्मा जी (श्री विखानस जी) के पुत्र महर्षि मरीचि रचित विमानार्चनकल्प ग्रन्थ के आधार पर वैखानस सम्प्रदाय वाले श्रावण पूर्णिमा को हनुमान जयन्ती मनाते हैं।-
श्रावण मासि श्रवणजातः।।
अर्थात - श्रावण पूर्णिमा को श्रवण (हनुमानजी) का जन्म हुआ।
सुचना - हनुमान जी का श्रवण नाम और कहीँ पढ़ने में नहीं आया। अतः प्रमाण सिद्ध है या नहीं कहना कठिन है।


अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि, स्वाति नक्षत्र सायंकाल में मेष लग्न में  हनुमान जयन्ती। ऐसी मान्यता हैकि, इस दिन माता सीता जी ने हनुमान जी को अमरत्व का वरदान दिया था। ---
अयोध्या के हनुमान गड़ी मन्दिर में अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (काली चौदस/ रूप चौदस) को सूर्यास्त के समय हनुमान जयन्ती मनाते हैं। इस दिन भी प्रायः चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर रहता है।
मतलब चित्रा तारे का हनुमान जन्म से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
अगस्त संहिता --
ऊर्जे कृष्णे चतुर्दश्याम् भौमे स्वातात्यायाम् कपीश्वरः।
मेष लग्नेऽञ्जनागर्भात् स्वयम् जातो हरः शिवः।।
वायु पुराण के अनुसार अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र, मेष लग्न में स्वयम् शङ्करजी माता अञ्जना के गर्भ से जन्में।
आश्विनस्यासिते पक्षे स्वात्याम् भौमे च मारुतिः।
मेष लग्नेऽञ्जनागर्भात् स्वयम् जातो हरः शिवः।।

आद्य रामानन्दाचार्य रचित श्री वैष्णवमताब्जभास्कर 81 के ग्रन्थानुसार 
स्वात्यायाम् कुजे शैवतिथौ तु कार्तिके। कृष्णेऽञ्जनागर्भात् एव साक्षात्।।
मेषे कपिर्प्रादुर्भभूच्छिवः स्वयम्।
व्रतादिना तत्र तदुत्सवम् चरेत्।।
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में अञ्जना के गर्भ से साक्षात शिव प्रादुर्भूत हुए।
शम्भुश्चायम् ननु पवनतनयोऽप्यऽञ्जनायाम् प्रजये। प्रातः स्वातत्याम् कनकवपुषा मङ्गले मङ्गलाढ्यः।।

पण्डित मदनमोहन मालवीय जी द्वारा प्रवर्तित विश्व पञ्चाङ्ग तथा हृषीकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार हनुमान जी का जन्म अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी), मंगलवार को सायं काल में मेष लग्न में हुआ था।
हृषीकेश पञ्चाङ्ग वाराणसी के अनुसार-
शुक्लादि मासगणनया आश्विनकृष्णः कार्तिक कृष्ण तुलार्के मेषलग्ने सायंकालेअतश्चतुर्दश्यांसायंकाले जन्मोत्सवः।

लेकिन; कर्नाटक में तीन परम्परा है। 
1 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा।
2 आन्ध्र प्रदेश की परम्परा पालन।
3 मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी
कर्नाटक में मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को हनुमान व्रतम् मनाते हैं। 
मान्यता है कि, महाभारत किसी संसकरण में उल्लेख है कि, हनुमान जी का अपमान करने के कारण पाण्डवों को बाहर वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ा। अतः इस दोष के प्रायश्चित स्वरूप और दोष परिहरणार्थ श्री कृष्ण ने द्रौपदी को मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को हनुमान व्रतम् करने का निर्देश दिया था। तब से यह व्रत चल रहा है। लेकिन गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत में इस प्रसङ्ग का उल्लेख नहीं है।

विशेष सुचना--- हनुमान जी का कार्यक्षेत्र कर्नाटक के हम्पी क्षेत्र में ही रहा। सम्भवतः हनुमान जी का जन्म हम्पी से 15 किलोमीटर दूर अनेगुड़ी (अञ्जनी) गाँव में स्थित अञ्जनाद्री पर्वत पर पर्वतीय किलेनुमा स्थान पर स्थित मन्दिर में हुआ हो। कर्नाटक में रा.स्व.से.संघ इस स्थान पर हनुमानजी का जन्मस्थान मानते हैं। रा.स्व.से.संघ नें वहाँ हनुमान जन्मस्थली मन्दिर बनाने हेतु एक सौ बीस करोड़ रुपए का फण्ड तैयार कर रखा है।

तमिलनाडु में निरयन सौर धनुर्मास में मूल नक्षत्र के दिन या मार्गऴी मास में मूल नक्षत्र के दिन अमान्त मार्गशीर्ष अमावस्या मूल नक्षत्र में* हनुमथ जयन्ती पर्व मनाया जाता है। यह कर्नाटक के हनुमत् उत्सव से ही सम्बन्धित है।

अस्तु;
हनुमानजी का जन्म के समय चित्रा नक्षत्र महत्वपूर्ण माना जा रहा है अतः जिस समय मध्यम ग्रह (सूर्य केन्द्रीय ग्रहों) में भूमि चित्रा नक्षत्र पर रहती है अर्थात उड़ीसा मतानुसार निरयन मेष संक्रान्ति को हनुमान जी का जन्म दिन माना जा सकता है। या अयोध्या के हनुमान गढ़ी मन्दिर के अनुसार निरयन तुला संक्रान्ति को हनुमानजी का जन्म दिन मान सकते हैं जिस दिन सूर्य चित्रा तारे पर रहता है। काली चौदस/ रूप चौदस इसी समय पड़ती है। इस दिन माता सीता ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया था।
या फिर उत्तर भारतीय परम्परानुसार चैत्र पूर्णिमा तो है ही, जिस दिन चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर रहता है। या
वसन्त सम्पात के समय सायन मेष संक्रान्ति (20/21 मार्च) को हनुमानजी का जन्म हुआ  ऐसा माना जा सकता है। और सम्भवतः श्री रामचन्द्र जी का जन्म भी वसन्त सम्पात के समय सायन मेष संक्रान्ति (20/21 मार्च) को हुआ होगा।  
उसदिन सूर्य भूमध्य रेखा पर होनें से दिनरात बराबर होते हैं। उत्तरीध्रुव पर सूर्योदय होता है, दक्षिण ध्रुव पर सूर्यास्त होता है।

सूर्य क्रान्तिवृत्त में भचक्र में जिस तारे से आरम्भ होता है अगले वर्ष उस तारे से 50.3' पीछे (पश्चिम में) आता है। इस अयन चलन के कारण 25778 वर्ष में सूर्य क्रान्तिवृत्त में पूरा 360° घूम जाता है। इससे निरयन मेष संक्रान्ति और सायन मेष संक्रान्तियों में  लगभग 71 वर्ष में एक अंश का अन्तर होने से लगभग एक दिन का अन्तर पड़ जाता है। ग्रेगोरियन केलेण्डर सायन मान से चलता है अतः निरयन संक्रान्ति एक दिन बाद होती है। सन 285 ई. में 22 मार्च को वसन्त सम्पात अर्थात् सायन मेष संक्रान्ति और निरयन मेष संक्रान्ति एक साथ पड़ी थी। जिसमें अब 24° अर्थात 24 दिन से अधिक का अन्तर पड़ गया। 
चूँकि, चैत्र वैशाखादि निरयन सौर संस्कृत चान्द्रमास भी निरयन संक्रान्तियों पर आधारित है अतः वर्तमान में सायन संक्रान्तियों की तुलना में 24 दिन का अन्तर पड़ता है। इसी अन्तर के परिणाम स्वरूप सायन मेष संक्रान्ति कभी चैत्र पूर्णिमा को तो कभी मार्गशीर्ष अमावस्या को पड़ती रही है। इस कारण हनुमान जयन्ती कि तिथियों में बहुत अन्तर देखनें को मिलता है।

हनुमान जी का जन्म समय ---
हनुमान जी का जन्म यदि त्रेता युग समाप्त होने के मात्र सौ वर्ष पहले भी माना जाए तो;
 त्रेता के अन्तिम सौ वर्ष+ द्वापर युग के आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष + वर्तमान कलियुग संवत 5125 वर्ष कुल मिलाकर आठ लाख उनहत्तर हजार दो सौ पच्चीस वर्ष (8,69,225 वर्ष) से अधिक समय पहले हनुमान जी का जन्म हुआ होगा

फिर भी आन्ध्र प्रदेश का तिरुमला तिरुपति हो या कर्नाटक में हम्पी के निकट अनेगुड़ी (अञ्जनी) गाँव कोई एक स्थान में हनुमानजी का जन्मस्थान निर्धारित कर और निरयन मेष संक्रान्ति (14 अप्रैल) या सायन मेष संक्रान्ति (21 मार्च)या चैत्र पूर्णिमा को जन्मदिन नियत किया जावे।

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