सनातन वेदिक धर्म कभी चमत्कार को नमस्कार करना नही सिखाता।
तन्त्र, जैन और बौद्ध मत ने सर्वप्रथम यह मुर्खता भारत में आरम्भ की। सनातन धर्म में दत्त सम्प्रदाय के रुप में तन्त्र का प्रवेश हुआ। जिसके झाँसे में सनातन धर्म के शिव परिवार से सम्बद्ध तीनों सम्प्रदाय शैव,शाक्त और गाणपत्य आगये।
सौर तो लगभग रहे नही और वैष्णव भक्ति के नाम पर कहीँ प्रतिमा प्रकट होने जैसे चमत्कार को नमस्कार करने लगे। और नृसिंह के नाम पर चमत्कार तथा कृष्ण की बाल लीलाओं के नाम पर चमत्कार को नमस्कार करना सिखाया गया।
इसमें कम्बन जैसे कवियों से प्रभावित हो तुलसीदास जी ने तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को भी नही छोड़ा। केवल श्वसन करते हुए निराहार, राख लपेटकर गुप्त (छुपी हुई), पाषाणवत स्थिर रहकर तपकरने वाली गोतम पत्नी अहल्या की चरण वन्दना करते हुए अहल्या के चरण छुकर प्रणाम करने वाले श्री राम को लात मारकर (चरण छुआ कर) पाषाण से जीवित नारी बनाने का चमत्कार दिखा दिया।
जब चमत्कार को नमस्कार संस्कार हमारी संस्कृति में प्रवेश करगये तो फिर स्वाध्याय और तप कौन करे। फिर क्या था चमत्कार आधारित ईसाई मुस्लिम सम्प्रदाय को धर्मपरिवर्तन का बड़ा आसान नुस्खा मिल गया।
जबतक विश्व में मुर्ख लोग रहेंगे धुर्त कभी भुखे नही मरेंगे।
ज्ञानि बनो मुर्खों को सुधारो और धर्मरक्षा करो।
आवश्यकता तो तब से है जब से *महाभारत में भारत वीर पुरुषों का सामुहिक संहार होगया। वीरों का नितांत अभाव हो गया* फिर थोड़े बहुत सम्भले तो *बुद्ध और महापीर ने भारत का निशस्त्रीकरण करदिया।*
*बौद्धों का चीनियों से लगाव और उज्जैन से अफगानिस्तान जाकर जैनाचार्य द्वारा शकराज कनिष्क को बुला कर लाना जैसे देशद्रोही कर्मठ कार्यकर्ता बड़ गये थे।*
*इन्ही के परिणाम स्वरूप शक, हूण, खस, ठस, बर्बर, म्लेच्छ, यवन सब घुस गये। फिर इनको राजपूत बना कर देश की कमान दी तो उनने घरेलु युद्ध और धर्मयुद्ध के नियम विदेशी आक्रांताओं पर लागु कर उनको निष्कण्टक प्रवेश दे दिया।*
*वह युग आज की तुलना में कितना भयङ्कर होगा।कल्पना कठिन है।*
पर उस युग में भक्तों की बहुतायत होगई वे जनता को तो मरहम लगा गये पर *तप के अभाव में रक्षक अवतार नही हूआ।*
सृजन कैसे करुँ कि जिज्ञासा पर ब्रह्मा को उत्तर मिला तप कर। ब्रह्म जिज्ञासु इन्द्र और विरोचन को प्रजापति ने कहा तप कर। गङ्गावतरण के लिये सगर वंशियों ने तप किया। परम पद के अभिलाषा में ध्रुव ने तप किया।
मेने कहीँ नही पड़ा कि, पुर्वकाल में किसी को ताल- मृदङ्ग लेकर नाचने गाने को कहा हो। *मध्य युग में सब नाचने गाने वाले ही हुए।तपस्वी नही हुए।*
*अभी भी नगण्य ही हैं। स्वधर्म पालन का उपदेश केवल दयानन्द सरस्वती नें ही दिया* बाकी सब तो सर्वधर्म समभाव वाले सेक्यूलर ही हुए।
*तो अवतार क्यो आये?*
हम सडे गले मूल्यों का बोझ अपनी संस्कृति समझ कर ढोते रहें और उनके *दुष्परिणाम देख कर ना तो पहले कोई सीख ली ना अब तक ठीक जग सके है । हमारे शत्रु हम स्वयं ही है* ।जापान
और इजरायल ( इजरायल सबसे ज्यादा ) हम से ज्यादा अच्छे है । *ऐसा नहीं की हम लोगों में पोटेंशियल कम है परंतु कोई बात अवश्य है जो रोकती है ।* वह अवरोध और उनके निर्माण में सहायक लोगो से पहले लोहा लेना होगा । परंतु ऐसे ही लोगों का महिमामंडन हुआ , इन्हीं की सोच को अपनाया गया ।ये ही लोग ऐसे थे की खुद तो सब समझते थे परंतु अपना और अपने आकाओं का स्वार्थ सिद्ध कर प्रजा को मूर्ख बना गए । दूसरी तरफ जागरूक नेता और महापुरुष भी थे परंतु प्रजा ने उनकी उपेक्षा की ,उनकी बात नहीं मानी गई ,अबतक उनकी उपेक्षा ही होती गई ,अब तो परिणाम जिसका भय था सामने दिख रहा है । फिर बलिदान होंगे , फिर उन्ही शहीदों का गुण गान होगा , कुछ सामान्य सा होते हुवे लगने पर फिर उन्ही सड़े गले मूल्यों का आदर होने लगेगा ,हम फिर वहीं लौट आयेंगे । अपने इतिहास से नहीं तो कम से कम वर्तमान से समझ लेना चाहिए ।उपरोक्त दोनों देश यह गलती नहीं करते ।
*कहा जाता है कि, विश्व में चला वो ४३०० है । इतने सब धर्म एक जैसे कैसे हो सकते है ? इनकी शिक्षाएं अगर एक समान है तो इतने धर्मो का औचित्य क्या है ?
ये सभी धर्म एक ही शिक्षा देते है ऐसा जो कहते है क्या उन्होंने इन सभी धर्मो का गहराई से अध्ययन किया है ?
सब धर्म समान है कहने का अधिकार इन्हें किसने दिया ?
विश्व को छोड़िए भारत में ही कितने धर्म है और उनके शाखा प्रशाखा भेद कितने है ?
इन सब की आपस में नहीं बनती और ये सब एक दूसरे को नीचा दिखाते है । जब आपस में ही नहीं बनती तो सम भाव कहा रहा ? दूसरे धर्म की तो बात ही दूर है ।*
*सब धर्मों की शिक्षा एक है यह कोरी गप्प है। जो केवल भारतीय सनातनधर्मियों के सिर चढ़ कर बोल रही है। उनमें भी विशषकर सेक्युलरों के दिमाग में बहुत बड़ा भूत है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब अपने देश को छोड़ कर और कोई इस बात को नहीं मानता । दुख तो यह है कि हमारे धर्माचार्य भी एक तरफ तो अन्य धर्म की बातों का विरोध करते है और दूसरी तरफ सब धर्म समान है ऐसी शिक्षा भी देते है ।*
नेता तो अभी सौ साल से पैदा हुए।*सिकन्दर आक्रमण के पहले लगभग पुरा भारत बौद्ध या जैन हो गया था। केवल कश्मीरी और काशी में सनातन धर्मी बचे थे। या थोड़े बहुत दक्षिण भारत में। पर वे वेदिक नही थे।*
*राजन्य भी शक (गुर्जर), हूण (जाट), पारसी आदि थे।*
*चाणक्य का शिश्य चन्द्रगुप्त मोर्य जैन होकर मरा। चाणक्य भी जैन बौद्धों का विरोध करने से बचे।*
*उसके वंशज मोर्य बौद्ध होगये।*
*केवल पुष्यमित्र शुङ्ग, समुद्रगुप्त,और गुप्त वंश, विक्रमादित्य के* दादा जी,पिताजी आदि, *मुञ्जराज और राजा भोज*, के बाद *राजपूत और मराठा लोग सनातन धर्मी शासक हुए।*
*शेष पहले बौद्ध जैन राजा थे और बादमें मुस्लिम।*
*कुमारील भट्ट और शङ्कराचार्य ने पहली बार जैन बौद्धाचार्यों को शास्त्रार्थ में हरा कर इज्जत बचाई।*
*पृथ्वीराज ने आखरी अश्वमेध यज्ञ किया।* पर गृहयुद्ध और धर्मयुद्ध के नियम गौरी पर भी लागू कर मारा गया।
*शिवाजी ने दक्षिणी हिन्दुत्व अपनाया। पर यज्ञादि नही।*
*कबीर , नानक, ग्यारहों सिक्ख गुरु ने सेक्युलरिज्म सिखाया।*
*रामकृष्ण परमहन्स, विवेकानन्द ने सेक्युलरिज्म सिखाया।*
*1857 का प्रथम स्वातन्त्र्य संग्राम बहादुर शाह जफर के नैत्रत्व में लड़ा गया।*
अब इतनी तगड़ी नीव पर गान्धी का चलना कौनसी अनोखी बात है।
*दयानन्द सरस्वती अकेले ही सबसे लड़े। अधिकांश क्रान्तिकारी और स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी आर्य समाजी थे।*
स्वदेशी, सत्याग्रह आर्य समाज की ही देन है।
*शङ्कराचार्य जी के बाद श्रद्धानन्द जी पहले आर्यवीर हुए जिनने शुद्धि कर सनातन धर्म में वापसी करवाई। और भारत तथा सनातन धर्म में पहले व्यक्ति हुए जिनने वैश्यलयों को शुद्ध कर मुख्यधारा में लाये।*
*गान्धी नेता थे। न कि, कोई ऋषि- मुनि या साधु - सन्यासी।*ऐसी आशाएँ करना ही गलत है।
*आज आशाराम बापु, राम रहीम, आदि ज्यादा प्रभावशाली थे या कोई नेता?*
*कौनसा नेता इन लोगों की बराबरी कर सकता है?*
*जितन प्रभाव धार्मिक नेता का होता है उसका दशांश भी नेता का नही होता।* आज जो सेक्यलरिटि जनता में दिख रही है वह अकेले गान्धी का प्रभाव मानना तो महिमामण्डन की सभी सीमाएँ पार करने वाली स्थिति है।
सर्वोच्च सत्ता मानलेना तो अन्ध विरोध की भी पराकाष्ठा है। *यदि गान्धी अकेले ही इतने प्रभावशाली थे तो यह उनकी योग्यता और विरोधियों की कमजोरी कहलायेगी।*
मैं तो किसी शर्त पर माननें को तैयार नही की सनातन धर्मियों में सेक्युलरिज्म गान्धी की देन है। क्यों कि एक तो वह गान्धी के जन्म के सेकड़ों वर्ष पहले से मौजूद था।और दुसरा मैं किसी भी एक तो दूर दस नेता मिलकर भी इतना प्रभावशाली नही मानता कि, वह समाज बदलदे।
*जाति प्रथा नही हटी,क्षछुआत नही हटी ऐसी ही कई चीजें जो गान्धी अजेण्डे में थी वे सब मौजूद है ।* तो सेक्युलरिज्म गान्धी की दैन कैसे मानलें।
फिर यदि सावरकर सिमित रहे, हेडगेवार सिमित रहे, गोलवरकर सिमित रहे तो इसमें उनके एफर्ट्स की कमी है न कि, दुसरों की।
*जिसमें दम था वह तो विदेशों में भी आजाद हिन्द सेना बना लेता है।*
*नेताजी ने तो कभी रोना नही रोया कि, गान्धी की बाधा के कारण मैं सफल नही हो पाया। सुभाष चन्द्र बोस भी तो राजनेता ही थे ना?*
*गान्धी का व्यर्थ में महिमामण्डन मुझे तो सावरकर वादियों और हेडगेवार वादियों की गान्धी के प्रति नकारात्मक अन्धभक्ति ही लगती है। या अपनी कमजोरियों को दुसरों पर ढोलनें की मनोवृत्ति हो सकती है।
शत वर्षीय दशराज युद्ध में स्वायम्भुवमनु से लेकर ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती की सन्तान मनुर्भरतों के विरुद्ध वशिष्ठ को नीचा दिखाने के चक्कर में विश्वामित्र द्वारा चन्द्रवंशियों को सहयोग देना देशद्रोह की प्रथम घटना थी।
रावण द्वारा कुबेर के विरुद्ध माली, सुमाली, और मयासुर को लड़नें के लिए बुलाना भारतीय इतिहास की देशविरोधी राष्ट्र विरोधी दुसरी घटना है।
कृष्ण से लड़नें के लिये यमन के राजा कालयमन को बुलाना देशद्रोह की तीसरी घटना थी।
सिकन्दर को सहयोगदेनें वाले राजाओं का इतिहास चाणक्य में देखा ही होगा।
विक्रमादित्य के पिताजी के विरुद्ध उज्जैन के जैनाचार्य द्वारा कुषाणों को निमन्त्रण देनें अफगानिस्तान जाना, चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़ेभाई रामगुप्त के विरुद्ध बोद्धों द्वारा शकराज को समर्थन देना ।
(और भाभी ध्रुवस्वामिनी के स्थान पर सेना सहित चन्द्रगुप्त द्वितीय ने पालकी में बेठकर शकराज के पास जाना और उसका वध करना भी पढ़ा ही होगा। इसी घटना से प्रेरणा लेकर दो-तीन ऐसे अभियान और हुए जिसमे आगरा में केद शिवाजी राजे को मुक्त कराने वाला अभियान भी है।)
ये सब हमारे वे अपराधी पुर्वज थे जिनने हुए जिनने भारत को दास बनानें में सहयोग देकर हमारे मूल वेदिक धर्म और संस्कृति का नाश करवाया।
और भविष्य पुराण द्वारा प्रशंसित जयचन्द्र को तो भूल ही गया था। जिसने भविषपुराण द्वारा निन्दित अन्तिम अश्वमेध यज्ञकर्ता, भारत के अन्ति सम्राट पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मोह मद गौरी को आमन्त्रित किया। और सहयोग दिया।
इसविषय में भविषपुराण में उस समय का वर्णन जोड़नें वाले व्यक्ति को जयचन्द्र से बड़ा अपराधी मानता हूँ।
ये सभी वेद शत्रु, तक्षशिला और नालन्दा विध्वन्सकों से मेक्समूलर और मेकाले तथा वामपंथियों तक के पूर्वज हैं।
वेद , वेदिक धर्म और वेदिक संस्कृति, तथा भारतवर्ष प्राणों में बसते हैं। वेद, विष्णु,सवितृ, नारायण, हिरण्यगर्भ, प्रजापति,दक्ष प्रजापति (प्रथम),रुचि प्रजापति, करदम प्रजापति, धर्, अग्नि, पितरः, महारुद्र,देवर्षि नारद, महर्षि मरीचि,महर्षि भृगु,महर्षिअङ्गिरा, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि अत्रि, महर्षि क्रतु, महर्षिपुलह,महर्षि पुलस्य, स्वायम्भुव मनु,
ब्रहस्पति, इन्द्र, ब्रह्मणस्पति, आदित्य गण,वाचस्पति वसुगण,पशुपति ,रुद्रगण आदि देवगण,भरत चक्रवर्ती / जड़भरत, और , वेदिक धर्म और वेदिक संस्कृति, तथा भारतवर्षके प्रति अत्यधिक अनुराग है। स्वाभाविक है इनके शत्रुओं के प्रति उतना ही द्वेष भी है।
इसलिए इस इतिहास को नही भूल पाता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें