भुवन --- जहाँ पिण्ड (ग्रह) हो, भूतल हो वह भुवन कहलाता है तथा
लोक ---- जहाँ जीवन का आलोक होता है उसे लोक कहते हैं। सभी भुवन में लोक नही होते किन्तु सभी लोक किसी न किसी भुवन में ही होते है।
जैसे मृत्युलोक, भू में है। नागलोक अतल में बतलाया गया है।
एक ही भुवन में कई लोक हो सकते हैं।
चौदह भुवनों के उपर / उत्तर में चार उर्ध्व लोक हैं।
1 वैकुण्ठ जो भुवन भी है और लोक भी है। वैकुण्ठ में ही दो और लोक है, 2 साकेत लोक, 3 गोलोक ।
4 ब्रह्मलोक भी स्वयम् भुवन भी है और लोक भी है।
हम जिस भुवन में रह रहे हैं उसमें ही सप्त उर्व लोक - 1 भूः , 2 भुवः, 3 स्वः, 4 महः, 5 जनः, 6 तपः,7 सत्यम्। ये भूः
सप्त अधोलोक --- 1 अतल ,2 वितल ,3 सुतल ,4 तलातल ,5 महातल ,6 रसातल और 7 पाताल।
इस प्रकार कुल सोलह भुवन ⤵️
1 वैकुण्ठ, 2 ब्रह्मलोक, 3 सत्यम् , 4 तपः,5 जनः, 6 महः, 7 स्वः, 8 भुवः, 9 भूः , 10 अतल, 11 वितल ,12 सुतल, 13 तलातल ,14 महातल , 15 रसातल और 16 पाताल
और अठारह लोक हुए।⤵️
1 वैकुण्ठ 2 गोलोक 3 साकेत लोक, 4 ब्रह्मलोक, 5 सत्यम् , 6 तपः,7 जनः, 8 महः, 9 स्वः, 10 भुवः, 11 भूः , और
सप्त अधोलोक--- 12 अतल, 13 वितल ,14 सुतल, 15 तलातल ,16 महातल , 17 रसातल और 18 पाताल लोक ।
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