आदरणीय कवीश्वर जी ने ही गहन अध्ययन कर महाभारत के गुड़ रहस् और महाभारत के तेरह वर्ष एवम् गीता तत्व मीमान्सा जैसी कालजयी पुस्तकों में महाभारत के ऐसे बहुत से रहस्यों पर से पर्दा उठायाइसमें महाभारत युद्ध में वास्तविक युद्धारम्भ के एक दिन पहले प्रथम बार को व्यह रचनाकर तैयार कर युद्धाभ्यास अमान्त कार्तिक पुर्णिमान्त मार्गशीर्ष कृष्ण अमास्या को सेना खड़ी की गई थी । बिना युद्ध वाले उस प्रथम युद्ध दिवस को गीताप्रवचन हुआ था।
उसके अगले दिन मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से युद्ध आरम्भ हुआ। (न कि मार्गशीर्ष शुक्ल.एकादशी को। )
युद्ध एक दिन छोड़ कर होता था। अपवाद तेरहवें दिन की लड़ाई में जयद्रथ वथ के बाद रात्रि में मशालों के प्रकाश मेंं युद्ध जारी रहा और कुछ देर विश्राम पश्चात चन्द्रोदय के बाद पुनः युद्धारम्भ हुआ जो दुसरे दिन भी चलता रहा।ऐसे ही दुर्योधन वध के बाद भी अन्तिम दिन रात्रि में भी युद्ध चला।कुल मिलाकर अठारह लड़ाइयाँ पैंतीस दिन में लड़ी गई।
पाण्डव सेना का मुख पश्चिम की ओर तथा कौरव सेना का मुख पुर्व की ओर था। जयद्रथ मृत्युपर्यन्त पीछे मुड़ कर सुर्य देखता रहा।उसे मायीक या ऐन्द्रजालिक या जादुई सुर्यास्त कभी भी नही दिखा। इसलिये वह चिन्तित था। जबकि पुरी कौरव सेना को जयद्रथ वध के पहले वह मायीक सुर्यास्त दिखा। कौरव सेना द्वारा सुर्यास्त के भ्रम मे जयद्रथ की सुरक्षा करना छोड़ दी। उसी समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी सुर्य दर्शन कराकर युद्ध जारी रखते हुए असुक्षित जयद्रथ के वध का निर्देश दिया।
उसदिन कोई सुर्य ग्रहण नही हुआ था। वह सुर्यास्त माया रचकर किया था जैसे जादुगर लोग चलती ट्रेन गायब कर देते हैं या ताज महल गायब कर देते हैं वैसी ही माया श्रीकृष्ण ने रची थी।
महाभारत काल में हर अट्ठावन माह पश्चात दो अधिक मास रखकर पाँच वर्ष की युग गणना का रहस्य सुलझा कर तेरह वर्ष पुरे होनें का गणित, हल किया। और महाभारत युद्ध के पैंतीस दिनों की शुद्ध गणना की।
श्रीमद्भगवद्गीता के भी कई कूट स्पष्ट किये जैसे अर्जुन को लग रहा था कि, इस महायुद्ध के अन्तमें लगभग सभी पुरुवंशी पुरुषों का वध होजायेगा।तब उनकी विधवाओं में व्यभिचार पनपेगा। और संकर / वर्णसंकर जन्मेंगे जो पितरों के भी पतन का कारण बनेंगें। इस कारण उसके स्वयम् सहित सभी योद्धा इस पाप के दोषी होंगे। इस पाप से बचने के लिए युद्ध नही करना चाहता था। जिसे श्रीकृष्ण नें यह कह कर युद्ध के लिए तैयार किया कि, यदि युद्ध में तेरे भाइयों का वध होगा और तुमपर भय वश युद्ध से विरत होनें का आक्षेप लगेंगे तब तुम विवश होकर और उत्तेजित होकर युद्ध में उतरोगे ही अतः क्षत्रिय धर्म पालन कर कर्तव्य पालनार्थ युद्ध कर।
ऐसे बहुत से कुट स्पष्ट किये हैं। किन्तु पता नही क्यों कविश्वर जी के वंशजों ने इन महान रचनाओं का प्रकाशन बन्द कर दिया।फल स्वरूप इस यथार्थ ज्ञान का प्रसार नही हो पाया।
कृपया विद्वतजन पहल करें।
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