शकर खाकर मीठी चाय भी फीकी लगती है।
आँवला खाने के बाद पानी पियो तो मीठा लगता है।
हीना का इत्र सुंघने के बाद किसी इत्र की भी सुगन्ध अनुभव नहीं होती।
राग भैरवी सुनने के बाद अच्छे से अच्छे गायन में भी वह रस नहीं मिलता जो होना चाहिए।
ये तो केवल पाँच हैं और भी सेकड़ों उदाहरण हैं।
अब कैसे मान लूँ कि, अनुभव गलत नही होता है।
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