बुधवार, 14 अगस्त 2024

कल्प अर्थात हिरण्यगर्भ ब्रह्मा का एक दिन या प्रजापति ब्रह्मा का जीवनकाल।

विष्णु पुराण के अनुसार हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की आयु ३१ नील, १० खरब, ४० अरब वर्ष होती है। इसमें उनकी आयु के सौ वर्ष पूर्ण हो जाते हैं। इसके बाद इतने ही समय का प्राकृत प्रलय होता है। प्राकृत प्रलय मे जीवात्मा अपरब्रह्म में भूतात्मा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा लय हो जाते हैं। फिर केवल जीवात्मा अपरब्रह्म (नारायण - नारायणी), प्रत्यगात्मा ब्रह्म (सवितृ-सावित्री  अर्थात प्रभविष्णु-श्री लक्ष्मी), प्रज्ञात्मा परब्रह्म (विष्णु-माया), विश्वात्मा प्रणव अर्थात ॐ और परमात्मा ही रह जाते हैं। शेष कुछ नहीं रहता। 
वर्तमान हिरण्यगर्भ ब्रह्मा अपनी आयु के पचास वर्ष पूर्ण कर चुके हैं और एक्कावनवें वर्ष के प्रथम दिन (कल्प) में चल रहे हैं।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा का एक अहोरात्र ८,६४,००,००,००० वर्ष (आठ अरब, चौंसठ करोड़) का होता है। जिसमें केवल ४,३२,००,००,००० वर्ष के दिन में (कल्प में ) ही सृष्टि रहती है। ४,३२,००,००,००० वर्ष की रात्रि में नेमित्तिक प्रलय ही रहता है।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं।  प्रत्येक कल्प में एक सुत्रात्मा प्रजापति होता है। प्रजापति की आयु एक कल्प अर्थात ४,३२,००,००,००० वर्ष होती हैं ।
प्रत्येक कल्प में ४,३२,००,००,००० वर्ष होते हैं । इसके बाद इतने ही समय का नैमित्तिक प्रलय होता है। नैमित्तिक प्रलय में भूतात्मा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा में सुत्रात्मा प्रजापति लय हो जाते हैं। ब्रह्माण्ड (आकाशगङ्गाएँ) नष्ट हो जाता है। और अगले कल्प में पुनः सृजित होता है। सुत्रात्मा प्रजापति की आयु भी अपने वर्षमान के अनुसार सौ वर्ष होती है। वर्तमान प्रजापति अपनी आयु के पचास वर्ष पूर्ण कर चुके हैं और एक्कावनवें वर्ष में चल रहे हैं।
लेकिन 
हर एक कल्प में एक सतयुग तुल्य १२,२८,००० वर्ष की पन्द्रह सन्धियों सहित ३०,६७,२०,००० वर्ष मान वाले १४ मन्वन्तर होते हैं‌।  एक मन्वन्तर में संधि संध्यांश सहित इकहत्तर महायुग होते हैं।
प्रत्येक मन्वन्तर में एक इन्द्र, देवगण और एक मनु होता हैमन्वन्तर समाप्ति पर इन्द्र, देवगण, और मनु सुत्रात्मा प्रजापति में लय हो जाते हैं। सतयुग तुल्य  १२,२८,००० वर्ष जैविक प्रलय रहता है। लेकिन  सौर मण्डल आदि रह जाते हैं। सन्धि व्यतीत होने पर अगले इन्द्र, देवगण और मनु उत्पन्न होते हैं और शतपथ ब्राह्मणोक्त जल प्रलय और वैवस्वत मन्वन्तर की कथा के अनुसार बचाये गए बीजों से पुनः जैविक सृष्टि करते हैं।
कुछ कर्मदेव आदि की आयु एक महायुग तुल्य अर्थात ४३,२०,००० वर्ष होती है। फिर वे इन्द्र मे लय हो जाते हैं। तो कुछ देवताओं की आयु युग विशेष तक ही रहती है। अर्थात १७,२८,००० वर्ष के सतयुग के देवता सतयुग में ही उत्पन्न होते हैं और मत्स्य, कुर्म, वराह और नृसिंह अवतारों की सहायता कर सतयुग समाप्ति पर इन्द्र में लय हो जाते हैं। १२,९६,००० वर्ष के त्रेता युग के देवता त्रेता युग पर्यन्त ही जीते हैं। और वामन, परशुराम और श्री राम की सहायता कर त्रेता युग समाप्ति पर इन्द्र में लय हो जाते हैं। ८,६४,००० वर्ष के द्वापर युग के देवता द्वापरयुग में ही रहते हैं और बलराम तथा श्रीकृष्ण अवतारों की सहायता कर द्वापर समाप्ति पर इन्द्र में लय हो जाते हैं। 
कलियुग का मान ४,३२,००० वर्ष होता है। 
कलियुग का प्रारम्भ ५१२५ वर्ष पहले हुआ। कलियुग में उत्पन्न देवता कलियुग समाप्ति के साथ ही इन्द्र में लय हो जाएंगे। ये देवता कलियुग समाप्ति के ८३१ वर्ष पहले जन्म लेने वाले कल्कि अवतार की सहायता कर के कलियुग समाप्ति के समय अर्थात आज के ४,२७,८७५ वर्ष बाद कलियुग समाप्ति पर इन्द्र में लय हो जाएंगे। 
इस प्रकार एक महायुग में ४:३:२:१ के अनुपात में चारों युग होते हैं इसलिए सतयुग में मत्स्य , कुर्म, वराह और नृसिंह ये चार अवतार होते हैं। त्रेता युग में वामन, परशुराम और श्री राम ये तीन अवतार होते हैं।द्वापरयुग में बलराम और श्री कृष्ण ये दो अवतार होते हैं और कलियुग में केवल एक ही कल्कि अवतार ही होता है।
पौराणिक मान्यता है कि, वेदों में उल्लेखित पुराणों की रचना विभिन्न कल्पों के प्रारम्भ में हुई।

सभी पुराणों में केवल तीस कल्प के नाम ही दिये गए हैं। जिन्हें हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के एक माह की तीस तिथियाँ मानी गई है। केवल वायु पुराण में तैंतीस कल्पों के नाम दिए हैं। शिव पुराण वायु पुराण का ही भाग है। 
मत्स्य पुराण के अध्याय 53 में लगभग सभी पुराणों के कल्पों का उल्लेख है। केवल ब्रह्म पुराण और मार्कण्डेय पुराण का ही उल्लेख नहीं है।
"मत्स्य पुराण में भी तीस कल्पों के नाम दिए हैं । जिनमें से प्रत्येक कल्प का नाम ब्रह्मा ने कल्प में हुई किसी महत्वपूर्ण घटना और कल्प की शुरुआत में सबसे गौरवशाली व्यक्ति या अवतार के नाम के आधार पर कल्प का नाम रखा है । 
ये तीस दिन या तीस कल्प तथा तीस रात्रि  या तीस नेमित्तक प्रलय मिलाकर हिरण्यगर्भ ब्रह्मा का तीस दिवसीय माह बनता हैं। ये तीस दिन तीस तिथियाँ मानी जाती है। 
तीस कल्पों के नाम ---

श्वेत (वराह) कल्प (वर्तमान)।
नीलालोहित कल्प
वामदेव कल्प
रथन्तर कल्प
रौरव कल्प
देव कल्प। (प्राण कल्प)
वृहत कल्प
कन्दर्प कल्प
साध्य कल्प। सत्य कल्प। साद्य कल्प
१० ईशान कल्प
११ तमाह कल्प। (व्यान कल्प)
१२ सारस्वत कल्प।
१३ उदान कल्प
१४ गरुड़ कल्प
१५ कौर्म कल्पकुर्म कल्प ।(हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की पूर्णिमा)
१६ नारसिंह कल्पनृसिंह कल्प ।
१७ समान कल्प
१८ आग्नेय कल्पअग्नि कल्प
१९ सोम कल्प
२० मानव कल्प
२१ तत्पुमान कल्प। (पुमान कल्प)
२२ वैकुण्ठ कल्प
२३ लक्ष्मी कल्प
२४ सावित्री कल्प
२५ अघोर कल्प। (घोर कल्प)
२६ वराह कल्प
२७ वैराज कल्प
२८ गौरी कल्प
२९ महेश्वर कल्प
३० पितृ कल्प । (हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की अमावस्या)

अन्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा के तीस दिनों के नाम ये हैं—
 (१) श्वेत (वाराह) कल्प। 
(२) नीललोहित कल्प।
(३) वामदेव कल्प।
(४) रथन्तर कल्प।
(५) रौरव कल्प। 
(६) प्राण कल्प। (देव कल्प)
(७) बृहत्कल्प। 
(८) कंदर्प कल्प। 
(९) सत्य कल्प या साध्यकल्प। 
(१०) ईशान कल्प ।
(११) व्यान कल्प। (तमाह)
(१२) सारस्वत कल्प। 
(१३) उदान कल्प। 
(१४) गारूड़ कल्प। 
( १५) कौर्म कल्प। (हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की पूर्णिमा)। 
(१६) नारसिंह कल्प। 
(१७) समान कल्प।
(१८) आग्नेय कल्प।
(१९) सोम कल्प।
(२०) मानव कल्प।
(२१) पुमान् कल्प। (तत्पुमान कल्प)
(२२) वैकुण्ठ कल्प ।
(२३) लक्ष्मी कल्प 
(२४) सावित्री कल्प।
(२५) घोर कल्प। (अघोर कल्प)
(२६) वाराह कल्प ।
(२७) वैराज कल्प ।
(२८) गौरी कल्प ।
(२९) महेश्वर कल्प। 
(३०) पितृ कल्प।(हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की अमावस्या) ।
 अन्य पुराण के अनुसार  भी कल्प ३० हैं : 
श्‍वेत, २ नीललोहित, ३ वामदेव, ४ रथन्तर, ५ रौरव, ६ देव, ७ वृहत, ८ कंदर्प, ९ साध्य, १० ईशान, ११ तमाह, १२ सारस्वत, १३ उदान, १४ गरूढ़, १५ कुर्म, १६ नरसिंह, १७ समान, १८ आग्नेय, १९ सोम, २० मानव, २१ तत्पुमन (पुमान), २२ वैकुंठ, २३ लक्ष्मी, २४ सावित्री २५ अघोर, २६ वराह, २७ वैराज, २८ गौरी, २९ महेश्वर,३० पितृ।

लेकिन पुराणकारों ने पांच प्रमुख कल्पों की गाथा का ही वर्णन किया है। 
ये पांच कल्प है- १.महत कल्प, २ हिरण्य गर्भ, ३ ब्रह्मकल्प, ४ पद्मकल्प और ५ वराहकल्प। 
 
पुराने किसी भी कल्प का पुरातात्विक प्रमाण और इतिहास इसलिए मिलना लगभग असम्भव है क्योंकि प्रत्येक कल्प के अन्त में नैमित्तिक प्रलय हो जाता है। पूरा ब्रह्माण्ड नष्ट हो जाता है। तो प्रमाण कहाँ बचेंगे।
१. महत कल्प -
  लेकिन पुराणकार मानते हैं कि, महत् कल्प में विचित्र-विचित्र और महत् (अंधकार से उत्पन्न) वाले प्राणी और मनुष्य होते थे। संभवत: उनकी आंखें नहीं होती थीं।

२. हिरण्यगर्भ कल्प --
हिरण्यगर्भ कल्प में भूमि का रंग सुनहरा था इसीलिए इसे हिरण्य कहते हैं। 
हिरण्य के तीन अर्थ होते हैं- एक जल और दूसरा स्वर्ण और तीसरा धतुरा। 
हिरण्यगर्भ कल्प में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ, हिरण्यवर्णा लक्ष्मी, देवता, हिरप्यानी रैडी (अरंडी), वृक्ष वनस्पति एवं हिरण ही सर्वोपयोगी थे। सभी पशु और पक्षी हिरण्यवर्ण के एकरंगी थे।
 माना जाता है कि हिरण्य कल्प में स्वर्ण के भंडार बिखरे पड़े थे। 

३. ब्रह्मकल्प --
ब्रह्मकल्प में मनुष्य जाति सिर्फ ब्रह्म (ईश्‍वर) की ही उपासक थी। क्रम विकास के तहत प्राणियों में विचित्रताओं और सुंदरताओं का जन्म हो चुका था। *जम्बूद्वीप में इस काल में ब्रह्मर्षि देश, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मलोक, ब्रह्मपुर, रामपुर, रामगंगा केंद्र आदि नाम से स्थल हुआ करते थे। यहां की प्रजाएं परब्रह्म और ब्रह्मवाद की ही उपासना करती थी।* ब्रह्म कल्प का ऐतिहासिक विवरण हमें ब्रह्मपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।
 
४. पद्मकल्प --
 पुराणों के अनुसार इस कल्प में १६ समुद्र थे। पुराणकारों अनुसार पद्म कल्प नागवंशियों का कल्प था। धरती पर जल की अधिकता थी और नाग प्रजातियों की संख्या भी अधिक थी। कोल, कमठ, बानर (बंजारे) व किरात जातियां थीं और कमल पत्र पुष्पों का बहुविध प्रयोग होता था। सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की नारियां पद्मिनी थीं। तब के श्री लंका की भौगोलिक स्थिति आज के श्रीलंका जैसी नहीं थी। पद्म कल्प का विस्तार से विवरण पद्म पुराण में है।
  
५. वराहकल्प -- (श्वेत वराह कल्प)
 वर्तमान में श्वेत वराह कल्प चल रहा है। श्वेत वराह कल्प में विष्णु ने वराह रूप में ३ अवतार लिए- 
पहला नील वराह,  दूसरा आदि वराह और तीसरा श्वेत वराह। 
वराह कल्प में ही विष्णु के चौबीस अवतार हुए और वराह कल्प में ही वैवस्वत मनु का वंश चल रहा है। वराह कल्प में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने नई सृष्टि की थी। वराह कल्प का विवरण वराह पुराण में मिलता है।
वर्तमान में चल रहे वराह कल्प में पूरी भूमि पर जल ही जल फैला था। भूमि जल में ही डूबी हुई लगती थी। पृथ्वी पर से जल हटाकर समुद्र में बहाने के लिए इस कल्प में विष्णु ने वराह रूप में तीन अवतार लिए- पहला नील वराह, दूसरा आदि वराह और तीसरा श्वेत वराह। इस कल्प में भगवान वराह और ऋषि मुनियों के अथक प्रयास से सात समुद्र हो गए।
 
 
वराह कल्प में छठा मन्वंतर अपनी संध्याओं सहित व्यतीत हो चुके हैं, अब  सातवां मन्वंतर काल चल रहा है जिसे वैवस्वत: मनु और उनकी संतानों का काल माना जाता है। 
ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में श्‍वेतवराह नाम के कल्प में १ स्वायम्भु मनु, २ स्वरोचिष मनु, ३ उत्तम मनु, ४ तामस मनु, ५ रेवत मनु और छटे चाक्षुष मनु व्यतीत हो चुके है।और 
सप्तम वैवस्वत मनु के मन्वंतर में सत्ताईस चतुर्युगी व्यतीत हो चुकी है। वर्तमान सप्तम मन्वन्तर  अर्थात वैवस्वत मन्वन्तर में यह अट्ठाईसवें चतुर्युग का १ कृतयुग, २ त्रेता और ३ द्वापर युग व्यतीत हो चुका है और चतुर्थ युग कलियुग चल रहा है।  वर्तमान में कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है।
एक मत के अनुसार श्वेत वराह कल्प के वैवस्वत मन्वन्तर में सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। सावर्णि मनु की अन्तर दशा विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से लगभग ५,५०० वर्ष पूर्व हुई। लेकिन इस मत का कोई शास्त्रीय आधार न होने के कारण यह मत सर्वसम्मत नहीं है ।

सुचना -  
पौराणिक मान्यता है कि, वेदों में उल्लेखित पुराणों की रचना विभिन्न कल्पों के प्रारम्भ में हुई।
मत्स्य पुराण के अध्याय 53 में लगभग सभी पुराणों के कल्पों का उल्लेख है। केवल ब्रह्म पुराण और मार्कण्डेय पुराण का ही उल्लेख नहीं है।

१ पद्म कल्प में पद्म पुराण रचा गया।
२ वर्तमान वराह कल्प में विष्णु पुराण रचा गया।
३ श्वेत कल्प में वायु पुराण रचा गया। शिव पुराण वायु पुराण का ही भाग है।
४ सारस्वत कल्प में भागवत पुराण रचा गया।
५ बृहत कल्प में नारद पुराण रचा गया।
६ इशान कल्प में अग्नि पुराण रचा गया।
७ अघोर कल्प भविष्य पुराण रचा गया।
८ रथन्तर कल्प मे ब्रह्म वैवर्त पुराण रचा गया।
९ आग्नेय कल्प में लिंग पुराण रचा गया।
१० मानव कल्प में वराह पुराण रचा गया।
११ सतपुरुष कल्प में स्कंद पुराण रचा गया।
१२ कूर्म कल्प में वामन पुराण रचा गया।
१३ लक्ष्मी कल्प में कूर्म पुराण रचा गया।
१४ वराह कल्प के वैवस्वत मन्वन्तर में मत्स्य पुराण रचा गया।
१५ भावी कल्प में ब्रह्माण्ड पुराण रचा गया। भावी कल्प का कोई विशिष्ट नाम नहीं बताया गया।

मीडिया पर प्राप्त सुचनाओं के अनुसार ---
जैन मत में कल्प ---
जैन सम्मेंप्रदाय में १२ कल्प बताए गए हैं:- १ सौधर्म, २ ईशान, ३ सानत्कुमार, ४ माहेन्द्र, ५ब्रह्म, ६ लांतव, ७ महाशुक्र, ८ सहस्रार, ९ आनत, १० प्राणत, ११ आरण और १२ अच्युत।

*बौद्ध मत में कल्प --* 

गौतम बुद्ध ने दावा किया कि पिछले कल्पों में असंख्य बुद्ध हुए हैं : विपस्सी बुद्ध ९१ कल्प पहले, सिख बुद्ध ३१ कल्प पहले, और वर्तमान कल्प में तीन पूर्व बुद्ध । वह अपनी शिक्षाओं को वर्तमान कल्प तक सीमित रखते हैं , जिसकी अवधि वे अंकगणितीय रूप से परिभाषित नहीं करते हैं, लेकिन एक समानता का उपयोग करते हैं। 
 कल्प की एक और परिभाषा है वह दुनिया जहाँ बुद्ध पैदा होते हैं। आम तौर पर कल्प के २ प्रकार होते हैं, सुन्न-कल्प और असुन्ना-कल्प । सुन्न -कल्प वह दुनिया है जहाँ कोई बुद्ध पैदा नहीं होता। असुन्ना-कल्प वह दुनिया है जहाँ कम से कम एक बुद्ध पैदा होता है। असुन्ना-कल्प के ५ प्रकार हैं ।

सारा-कल्प - वह विश्व जहाँ एक बुद्ध का जन्म हुआ।
मण्ड-कल्प - वह संसार जहाँ दो बुद्ध जन्म लेते हैं।
वर-कल्प - वह संसार जहाँ तीन बुद्ध जन्म लेते हैं।
सरमण्ड-कल्प - वह विश्व जहाँ चार बुद्धों का जन्म हुआ।
भद्द-कल्प - वह विश्व जहाँ पाँच बुद्धों का जन्म हुआ।
पिछला कल्प व्यूहकल्प (शानदार कल्प) था , वर्तमान कल्प को भद्रकल्प (शुभ कल्प) कहा जाता है, और अगला कल्प नक्षत्रकल्प (नक्षत्र कल्प) होगा ।


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