*दिवासा अर्थात हरियाली अमावस्या*
अमान्त आषाढ़/पूर्णिमान्त श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को हरियाली अमावस्या और दिवासा के नाम से जाना जाता है। *इस दिन भूत यज्ञ अर्थात पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदी-तालाब, कुए-बावड़ी आदि का संरक्षण किया जाता है। और रात्रि को पितरों के निमित्त दीप पूजा कर दीपदान करते हैं।*
देश के कई भागों विशेषकर उत्तर भारत में इसे एक धार्मिक पर्व के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन पितरों के निमित्त ग्यारह या एक्कीस (एकादश या एकवीश) आटे के दीपक बनाकर पूजा की जाती है, इसलिए इसे दीप अमावस्या भी कहते हैं। इसी का अपभ्रंश दीवासा है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसका विशेष प्रचार है। वहाँ कुछ लोग आटे के दीपकों तल कर फिर उनमें रूईं से बनी बत्ती घी या तेल मे डुबाकर दीपक में रखकर जलाकर पूजा करते हैं। कुछ पूरण के दीपक बनाते हैं। पूजा के पश्चात उन्ही दीपकों को प्रसाद के तौर पर सपरिवार खाया जाता है।
श्रावण मास में महादेव के पूजन की परम्परा है इसीलिए हरियाली अमावस्या पर विशेष तौर पर शिवजी का पूजन-अर्चन किया जाता है।
*इस दिन नदियों व जलाशयों के किनारे स्नान के बाद भगवान का पूजन-अर्चन करने के बाद शुभ मुहूर्त में वृक्षों को रोपा जाता है। इसके तहत शास्त्रों में विशेषकर आम, आंवला, पीपल, वटवृक्ष और नीम के पौधों को रोपने का विशेष महत्व बताया गया है।*
भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से ही पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूप को स्थान देकर उनकी पूजा का विधान बताया गया है। *जल में वरुण देवता की परिकल्पना कर नदियों व सरोवरों को स्वच्छ व पवित्र रखने की बात कही गई है। वायुमंडल की शुचिता के लिए वायु को देवता माना गया है।*
*वेदों व ऋचाओं में इनके महत्व को बताया गया है। शास्त्रों में पृथ्वी, आकाश, जल, वनस्पति एवं औषधि को शांत रखने को कहा गया है। इसका आशय यह है कि इन्हें प्रदूषण से बचाया जाए। यदि ये सब संरक्षित व सुरक्षित होंगे तभी हमारा जीवन भी सुरक्षित व सुखी रह सकेगा।*
*इस दिन गुड़ व गेहूं की धानी का प्रसाद दिया जाता है। स्त्री व पुरुष इस दिन गेहूं, जुवार, चना व मक्का की सांकेतिक बुआई करते हैं जिससे कृषि उत्पादन की स्थिति क्या होगी, इसका अनुमान लगाया जाता है।*
*मध्यप्रदेश में मालवा व निमाड़, राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तरप्रदेश के दक्षिण-पश्चिमी इलाकों के साथ ही हरियाणा व पंजाब में हरियाली अमावस्या को इसी तरह पर्व के रूप में मनाया जाता है।*
वृक्षों में देवताओं का वास -
धार्मिक मान्यता के अनुसार वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार पीपल के वृक्ष में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु व शिव का वास होता है।
आंवले के पेड़़ में लक्ष्मीनारायण के विराजमान होने की परिकल्पना की गई है। इसके पीछे वृक्षों को संरक्षित रखने की भावना निहित है।
पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए ही हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करने की प्रथा बनी।
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