जीव और प्राण *अधिकरण* है। अर्थात मुख्य या आधारभूत करण हैं।
(प्राण अर्थात चेतना अर्थात देही।)
"ओज और तेज *अभिकरण* है। अर्थात निकटस्थ या अधिनस्थ करण हैं।
चित्त, बुद्धि, अहंकार और मन *अन्तःकरण* चतुष्ठय हैं ही। अर्थात आन्तरिक करण हैं।
और
१ श्रोत (कान), २ त्वक (त्वचा), ३ नैत्र (आँखें), ४ रसना (जीह्वा), ५ घ्राण (नाक) ये पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ।
तथा
१ वाक (कण्ठ), २ हस्त (हाथ), ३ पाद (पैर), ४ उपस्थ (जननेन्द्रिय/ मुत्रेन्द्रिय), ५ पायु (गुदा) ये पाँच कर्मेंद्रियाँ
ये दसों बहिर्करण हैं। अर्थात बाहरी करण हैं।
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