शनिवार, 10 अगस्त 2024

सत्कार्य वाद के अन्तर्गत विवर्तवाद

मैं किसी भी वाद- विवाद में श्रद्धा नहीं रखता।  सांख्य कारिकाओं में उल्लेखित सत्कार्यवाद और उसके अन्तर्गत विवर्तवाद वेदान्त लगता है लेकिन है नही।
किसी व्यक्ति का विवाह हुआ और उस पुरुष ने स्वयम् को पति मान लिया और स्त्री ने स्वयम् को पत्नी मान लिया। यह कौन सा वाद है?
उसी युगल में पत्नी की दो सन्तान हुई, पहली पति से और दुसरी किसी अन्य पुरुष से।
पुरुष स्वयम् को दोनों सन्तान का पिता मानता है। उसमें दुसरी सन्तान का पिता मानना कौनसा वाद हुआ?
अर्थात संसार मान्यता का फेर है। यह भी एक मत है।
स्वप्न में स्वयम् को किसी स्त्री से विवाह होना देखकर स्वयम् को उसका पति मानना, लेकिन जागने पर सत्य ज्ञान होने पर भ्रम निवारण होना। 
यह माया वाद है तो पहला क्या है?
ऐसे कितने वाद विवाद में पढ़ें?

ऐसे ही हॉस्पिटल में बच्चे बदल दिए जाते हैं। जिस माता- पिता को इसका ज्ञान नहीं हो, वे स्वयम् को उस बच्चे के माता-पिता मानते हैं और दोनों बच्चे अपने पालक माता-पिता को ही अपने वास्तविक माता-पिता मानते हैं।
यहाँ एक माता-पिता को सत्य का ज्ञान है, लेकिन बच्चे को नहीं है। और दुसरे माता-पिता और बच्चे तीनों को ही सत्य का ज्ञान नहीं है। इस सम्बन्ध को कौनसा वाद कहेंगे?
जैसे नन्द-यशोदा और श्रीकृष्ण का सम्बन्ध। इस सम्बन्ध मानने को कौनसा वाद कहेंगे?
ये सब विवर्तवाद के अन्तर्गत आने वाले उप वाद हैं। जबकि विवर्तवाद स्वयम्  सत्कार्य वाद का उप वाद है।
कुल मिलाकर ये सब न्याय प्याज के छिलके निकालकर सत्य/ केन्द्र तक पहूँचने का वैज्ञानिक प्रयास है।

 एक बड़े खाली हॉल के बीचोंबीच में पूर्ण अन्धकार में एक निद्रा मग्न व्यक्ति को छोड़ दिया। जागने पर उसे न कुछ दिखाई दिया और फर्श को छोड़कर और  कुछ छू भी पाया। निराश हो बैठ गया।
कुछ देर बाद थोड़ी दूर होलोग्राम से चार व्यक्ति झगड़ते दिखाई देते हैं। वह उन गुत्थमगुत्था युद्ध रत लोगों अलग-अलग कर शान्ति स्थापित करने गया। तो वहाँ कुछ भी छू नहीं पाया। और कुछ ही देर में पूरा हॉल प्रकाशित हो गया।
उस घटना को वह व्यक्ति अलग-अलग बार अलग-अलग दृष्टिकोण से सोचता समझता है। लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहूँचता है।
फिर उसे अल्ट्रारेड केमरे से खीँची गई पूरी रील उसे दिखाई जाती है। वह सत्य जान लेता है। फिर भी उसे रह-रहकर  स्मृतियों के कारण बार-बार भ्रम होता है।
इसे क्या कहेंगे?

विष्णु की कल्पना से कल्प, दिवा स्वप्न (मनो राज्यम्), रात्रि स्वप्न, तन्द्रा, स्व सम्मोहन, सम्मोहन और सम्मोहन अवस्था में में दी गई भावना, इन्द्रजाल (जादू), रस्सी सर्प भ्रम, या रजत शुक्ति भ्रम, आकाश कुसुम, जैसे अनेक रूपों में माया को समझाया जाता है।
दूसरा प्रकार सूर्य और उसके प्रकाश के रूप में विष्णु और माया को समझा जाता है। अर्थात शक्तिमान और शक्ति के रूप में। लेकिन यहाँ शक्ति का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। न ही किसी भी अवस्था में शक्तिमान निशक्त होता है। शक्ति शक्तिमान के अधीन और पूर्ण नियन्त्रण में रहती है । जिसे जब चाहे शक्तिमान समेट सकता है, जो चाहे करवा सकता है।

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