मंगलवार, 29 जुलाई 2025

आजकल प्रचलित कर्मकाण्ड केवल दिखावा मात्र हो गया है।

आजकल तो सत्यनारायण कथा तक बन्द हो गई।
पहले मन्दिरों में ही भागवत सप्ताह चलता था।
अब पाण्डालों में नाचने-गाने के कार्यक्रम को भागवत कथा कहते हैं।
अब तो वह भी बन्द हो गई और प्रदीप मिश्रा और उनके अनुयाइयों द्वारा शिव पुराण के नाम पर टोने-टोटके सिखाये जाने लगे हैं।
अब एक चपेट पत्थर पर एक बेलनाकार पत्थर रखकर (स्थापित कर) उसपर दूध, घी, शहद, इत्र आदि रगड़ मसलकर पानी से बहाकर फिर उसपर भाँग-धतुरे का लेप कर बाद में उसे प्रसाद कहकर सेवन करने और चीलम में गाँजा भरकर धुम्रपान करते हुए पैदल यात्रा निकाल कर सड़कें जाम कर एक स्थान का पानी दुसरे स्थान पर लाकर उस पत्थर पर ढोल देने को ही धर्म-कर्म घोषित कर दिया गया है।
न किसी को वेद मन्त्रों का, न शिक्षा का, न विधि का ज्ञान है केवल पुस्तकों में देख-रेख कर रेसिपी से भोजन बनाने जैसे कर्मकाण्ड की क्रियाएँ करवा देते हैं। तो उसका फल क्या होगा?

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