शनिवार, 12 जुलाई 2025

हिरण्यगर्भ सूक्त


हिरण्यगर्भ सूक्त में हिरण्यगर्भ, प्रजापति, दक्ष , वृहति और आप ये पाँच ही सञ्ज्ञा आई है।
त्रिविक्रम विष्णु का नाम नहीं है। न प्रभविष्णु सवितृ का है ।
यदि हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने ही प्रजा का सृजन भी किया होता तो ऐसी भाषा आती कि, हिरण्यगर्भ ही प्रजापति है। लेकिन ऐसा वर्णन नहीं है।
और न ही ऐसा कहीं वर्णन है कि,
हिरण्यगर्भ ही दक्ष है। हिरण्यगर्भ ही वाचस्पति है, हिरण्यगर्भ ही ब्रह्मणस्पति है, हिरण्यगर्भ ही ब्रहस्पति है।
लेकिन ऐसा वर्णन नहीं है।
विष्णु सर्वव्यापी को त्रिविक्रम कहकर यह बतलाता गया कि, वह प्रत्येक स्थान, प्रत्येक लोक, प्रत्येक भुवन में पहले से है।
यही बात ईशावास्योपनिषद में भी कही है।
प्रभविष्णु जिससे सृजन प्रारम्भ हुआ। भू भव यानी होना। इस लिए प्रभ शब्द आया।
 प्रभा, प्रभात, प्रभु, प्रभुत्व, प्रभाव इन सभी शब्दों में वही होने का भाव है।
यही सवितृ में है, प्रसवित्र (जिसने सृष्टि को प्रसुत किया।) इसलिए जनक, प्रेरक और रक्षक अर्थ हैं।
हिरण्यगर्भ जिसका गर्भ (केन्द्र) हिरण्यमय है। गर्भ शब्द का प्रयोग कर जनक बतलाया गया। जो हिरण्य आदि भौतिक जगत का जनक है।
प्रजापति जिससे प्रजाएँ उत्पन्न हुई।
दक्ष जिसने धर्मसूत्र रचकर धर्म मर्यादा स्थापित कर प्रजा को धर्म में दीक्षित किया।
अपः तत्व (नार) प्रकृति (श्री-लक्ष्मी) का प्रतीक है जिसपर नारायण श्रीहरि आश्रित हैं।
वृहति वृहत के अर्थ में है।

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