पहले एकादशी उद्यापन, तीर्थ यात्रा में गोदान , भूमि दान, स्वर्ण दान, अन्नदान, वस्त्र दान, कन्या दान सब कर लेना चाहिए।
तीर्थ में, पुण्यप्रदा नदी किनारे, या घर में पञ्चगव्य से स्नान कर शुद्धोदक स्नान कर पञ्चगव्य पान कर गङ्गा जल से आचमन कर, देशी गाय की कुंवारी केड़ी या देशी गाय के गोबर से लीपकर गौमुत्र छिड़ककर, पद्मासन लगाकर कर तुलसीदल मुख मे रखकर गङ्गा जल से आचमन कर प्राणायाम करके ॐ का उच्चारण करके ईशावास्योपनिष का पाठ कर ॐ का जप करते हुए शुद्ध अन्तःकरण से परमात्मा की धारणा खर परमात्मा के ध्यान करते हुए समाधिस्थ हो कर प्राणों को ब्रह्मरन्ध्र में स्थापित कर परमात्मा में लीन हो जाना कर्तव्य है।
इतना न हो सके तो जितना हो सके उतना तो करे ही।
गोबर से लीपकर गौमुत्र छिड़ककर, पद्मासन लगाकर कर तुलसीदल मुख मे रखकर गङ्गा जल से आचमन कर जलप्राणायाम करके ॐ का उच्चारण करके दक्षिण दिशा में पेर करके पीठ के बल लेट जाएँ। और परमात्मा कोदक्षिण दिशा में पेर करके स्मरण करते हुए प्राणोत्सर्ग करना चाहिए।
यह भी न हो तो मरने के पहले मुख में गङ्गा जल और तुलसीदल रखकर गोबर से लीपकर गौमुत्र छिड़ककर, दक्षिण दिशा में पेर करके पीठ के बल लिटा दिया जाए।
मृत्योपरान्त कर्मकाण्ड में ये सब नहीं कर पाने का प्रायश्चित करवाया जाता है।
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