सोमवार, 28 जुलाई 2025

भारत में वैदिक धर्म को सनातन धर्म के रूप में राजधर्म बनाए रखने का इतिहास।

भारत में जैन और बौद्ध मत के व्यापक प्रचार-प्रसार के बाद आचार्य श्री कुमारिल भट्ट ने बौद्ध मत का खण्डन कर बौद्धाचार्य को शास्त्रार्थ में हरा कर पुनः वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना की। उनके इसी कार्य को ईसापूर्व 509 से 477 के बीच आगे बढ़ाया भगवान श्री आद्य शंकराचार्य जी ने।
 
तत्पश्चात श्री विष्णु गुप्त चाणक्य ने बौद्ध मतावलम्बी धनानन्द को पदच्युत कर ईसा पूर्व 321 में चन्द्रगुप्त मौर्य को सत्तासीन करवा कर भारत की बिखरी राजसत्ता को केन्द्रीय सत्ता में परिवर्तित किया। वैदिक सनातन धर्म में बौद्धों और जैनों के प्रति सह अस्तित्व का भाव उपजा।
लेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य की आस्था जैन मत में थी। और उसका उत्तराधिकारी अशोक बौद्ध हो गया। इसी परम्परा में अशोक के उत्तराधिकारी वृहदृथ ने तो भी बौद्ध मत का पालन करते हुए यूनानी क्षत्रप के आक्रमण के विरुद्ध प्रतिकार करने से इन्कार कर समर्पण की मंशा प्रकट की तो ईसापूर्व 187 में सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कायर वृहदृथ की हत्या कर स्वयम् सत्ता सम्भाली। और अश्वमेध यज्ञ कर भारत में वैदिक धर्म की जाग्रति फैलाई।

शुंग वंश के बाद ईसापूर्व 73 से ईसा पूर्व 28 तक मगध में वासुदेव कण्व द्वारा स्थापित कण्व वंशीय राजाओं ने भी वैदिक धर्म को ही राजधर्म बनाया।

इसी समय कुरुक्षेत्र के आसपास हरियाणा के मालव प्रान्त के महाराज नाबोवाहन ने मध्यप्रदेश के सोनकच्छ के निकट आकर गंधर्वपुरी को राजधानी बनाया था। बाद में नाबोवाहन के पुत्र गन्धर्वसेन गन्धर्वपुरी के राजा हुए। जिन्हें महेन्द्रादित्य भी कहा जाता था। 
गन्धर्वसेन कट्टर वेदिक धर्मावलम्बी और विष्णु और शिव के भक्त थे। उनके पुत्र राजा भृतुहरि हुए। भृतुहरि को गोरखनाथ ने नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित कर उन्हें संन्यास दिला दिया।राजा भृतुहरि ने अपने छोटे भाई विक्रम सेन को राजपाट सौंप दिया। जो बाद में विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।
विक्रमादित्य सम्राट हुए। सम्राट के अधिनस्थ बहुत से छोटे- बड़े राजा होते हैं जो सम्राट को कर देते हैं। विक्रमादित्य का शासन प्रबन्ध टर्की, युनान, मिश्र और रोमन साम्राज्य (इटली) तक था। उन्होंने रोम के जुलियन सीजर को बन्दी बनाकर उज्जैन में घुमाया था। विक्रमादित्य ने वैदिक सनातन धर्म का मान पूरे एशिया महाद्वीप में बढ़ाया था।
सम्राट विक्रमादित्य के बाद ईसापूर्व 30 में महाराष्ट्र के जुन्नर नगर में सिमुक ने कण्व वंश से राजसत्ता छीनकर सात वाहन वंश की स्थापना की और शुङ्ग वंश को भी समाप्त कर दिया। बादमें गोतमिपुत्र सातकर्णी ने पेठण को राजधानी बनाया।
सनातन धर्म का वर्तमान पौराणिक स्वरूप सातवाहन वंश के समय ही विकसित हुआ।

फिर वैदिक धर्मी श्री गुप्त ने 240ईस्वी में गुप्त वंश की स्थापना कर वैदिक धर्म को और मजबूत बनाया। चन्द्रगुप्त प्रथम ने 320 ईस्वी में सम्राट की उपाधि धारण कर तथा समुद्रगुप्त ने विशाल साम्राज्य स्थापित कर तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सनातन धर्म को राजधर्म घोषित कर इस कार्य को आगे बढ़ाया।
फिर उज्जैन में मुञ्जराज हुए जिनके भतिजे राजा भोज ने 1010 ईस्वी में धारा नगरी (धार) को राजधानी बनाया। 
फिर राजपूत राजाओं का दौर चला जिसमें अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने 1166 से 1192 के बीच अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर सम्राट की उपाधि ग्रहण की। लेकिन मोह मद घोरी से परास्त होने से भारत में इस्लामिक राज्य प्राम्भ हुआ।

जिसे महाराष्ट्र के रायगढ़ दुर्ग में शिवाजी राजे भोसले ने 1674 ईस्वी में पुनः हिन्दू स्वराज्य की स्थापना कर चूनोति दी। लेकिन उनके पुत्र सम्भाजी राव भोसले ओरंगजेब से हार गये और मराठा साम्राज्य समाप्त हो गया।

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