रविवार, 13 जुलाई 2025

देवताओं की वरीयता क्रम।

परमात्मा के इस ॐ संकल्प के साथ ही परमात्मा स्वयम् परब्रह्म स्वरूप में प्रकट हुए। मानवीय स्वभाव वश हम इस स्वरूप का एकात्मक स्वरूप नहीं समझ पाते हैं इसलिए इसे परमेश्वर परम पुरुष विष्णु और परा प्रकृति माया के रूप में जानते समझते हैं।
ऋग्वेद में कहा है, विष्णु परमपद को देखने के लिए देवता भी तरसते हैं।
यहाँ से ईश्वर - शासक की अवधारणा प्रारम्भ होती है। जो उत्तरोत्तर नीचे की ओर ब्रह्म (महेश्वर प्रभविष्णु-श्रीलक्ष्मी अर्थात सवितृ- सविता ) हुए फिर 
अपर ब्रह्म (जगदीश्वर नारायण श्री हरि-कमला लक्ष्मी) हुए। फिर 
पञ्च मुखी हिरण्यगर्भ ब्रह्मा - वाणी ( ईश्वर त्वष्टा-रचना और अर्धनारीश्वर महारुद्र)। फिर 
चतुर्मुख प्रजापति-सरस्वती ब्रह्मा (दक्ष प्रथम-प्रसूति, रुचि-आकुति और कर्दम देवहूति) हुए। उधर महा रुद्र से रुद्र- रौद्री हुए। फिर 
वाचस्पति (इन्द्र- शचि) हुए। फिर 
इसके बाद देवताओं की उत्पत्ति हुई।
ब्रह्मणस्पति (द्वादश आदित्य और उनकी शक्तियाँ) हुए। फिर 
ब्रहस्पति (जिसके नाम पर ब्रहस्पति ग्रह का नाम करण हुआ) (अष्ट वसु और उनकी शक्तियाँ) हुए। फिर 
पशुपति (एकादश रुद्र और उनकी शक्तियाँ) हूए। इन एकादश रुद्रों में एक शंकर-शंम्भु भी है। फिर  
गणपति (सोम राजा और वर्चा) हुए। यह गणपति उमा-शंकर सुत गजानन विनायक नहीं है।
फिर सदसस्पति हुए , सदसस्पति की शक्ति मही हुई। फिर 
मही से भारती, सरस्वती और इळा (इला) हुए।

(> यह चिह्न बड़ा है का है। अर्थात बढ़ा से > छोटा हुआ।)
कहने का तात्पर्य परमात्मा> परब्रह्म, परमेश्वर विष्णु> ब्रह्म महेश्वर प्रभविष्णु > अपरब्रह्म जगदीश्वर नारायण श्री हरि>  ईश्वर हिरण्यगर्भ त्वष्टा और महारुद्र से > प्रजापति  दक्ष > वाचस्पति इन्द्र > ब्रह्मणस्पति आदित्य > ब्रहस्पति वसु > पशुपति रुद्र (जिससे ग्यारह रुद्र हुए जिसमें एक कैलाश वासी शंकरजी भी हैं।) > गणपति (सोम-वर्चा) > सदसस्पति > मही > भारती > सरस्वती > इळा।

तैंतीस देवता - (1) प्रजापति (2) इन्द्र (3 से 14) तक द्वादश आदित्य (15 से 22) तक अष्ट वसु और (23 से 33) तक एकादश रुद्र। ये तैंतीस देवता हैं।

ग्रेडेशन का एक सूत्र है --- नारायण श्रीहरि के बाँये पेर के अङ्गठे से निकली गङ्गा ब्रह्मा जी के कमण्डलु में रही। वहाँ से निकल कर इन्द्र के स्वर्ग लोक में रही। स्वर्ग से निकलकर शंकर जी के सिर की जटा में समाई।
मतलब नारायण बड़े हैं ब्रह्मा से। 
ब्रह्मा बड़े हैं इन्द्र से
इन्द्र बड़े हैं शंकर जी से

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